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दिल्ली के जामिया और शाहीन बाग़ इलाक़े में कैब के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन में हुई गोलीबारी

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के जामिया और शाहीन बाग़ इलाक़े में गोलीबारी की घटनाएं हुईं. दोनों जगहों पर गोली चलाने वाले लोग इस विरोध प्रदर्शन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे और प्रदर्शन करने वालों की ओर पिस्तौल लहराई.

जामिया इलाक़े में हुई घटना में एक छात्र को गोली लगी. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. देश के दूसरे कई हिस्सों में भी विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा और प्रदर्शनकारियों को जबरन हटाने की घटनाएं हुई हैं.

हिंसा की ये घटनाएं जिस तेज़ी से सामने आई हैं और देश में ऐसे घटनाक्रम जिस तरह बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए यह चिंता जताई जा रही है कि आख़िर इसके पीछे कौन है?

जामिया और शाहीन बाग़ में गोली चलाने वाले दोनों शख़्स युवा हैं. ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या देश के युवा किसी राजनीतिक दबाव में यह क़दम उठा रहे हैं या यह उनकी सामाजिक और मानसिक स्थिति का असर है जो उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करता है? समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक इसे आइडेंटिटी क्राइसिस और भड़काऊ भाषणों से भी जोड़ रहे हैं.

केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर

भड़काऊ भाषण किस हद तक ज़िम्मेदार?

पेशे से वकील और साइकोलॉजी पर काम करने वाली डॉ. अनुजा कपूर का मानना है कि भड़काऊ भाषणों का इन घटनाओं पर बड़ा असर है. उनका मानना है कि भड़काऊ भाषणों से ही साम्प्रदायिक हिंसा भड़कती है.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ”भड़काऊ भाषण राजनीतिक पार्टियां ही पैदा करती हैं. इसी से फ़ेक न्यूज़ भी पैदा हुई है. ये ऐसी बातें हैं जो मॉब लिंचिंग से लेकर सांप्रदायिक हिंसा तक को बढ़ावा देती हैं और लोगों को इस हद तक उकसाती हैं कि वो किसी एक शख़्स या समुदाय के ख़िलाफ़ खड़े हो जाएं. उन्हें देश या समाज के ख़िलाफ़ समझने लगें. कोई शख़्स या समुदाय उन्हें ख़तरा लगने लगे. फूट डालो और राज करो, ये अंग्रेज़ों के वक़्त से चला आ रहा है.”

“ये बातें किसी शख़्स के दिलोदिमाग़ में बस जाती हैं और उसके मन में यह भावना आ जाती है कि मैं कितना तुच्छ हूं जो किसी की बात सुन रहा हूं या किसी ऐसे शख़्स को बर्दाश्त कर रहा हूं जो सही नहीं है, यहीं से उसके मन में बदले की भावना जागती है और वो मरने मारने पर उतर आता है.”

समाजशास्त्री हेमलता श्रीवास्तव का मानना है कि आज का युवा चाहे 14 साल का हो या 30 साल का हो, पूरी दुनिया में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कभी-कभी हिंसा का सहारा ले लेता है. उसकी ये हिंसा मनोवैज्ञानिक हो सकती है, कुंठा हो सकती है या राजनीतिक दलों की बातों से भी प्रेरित हो सकती हैं.

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