सरकार देश के इंजीनियरिंग निर्यात को तेजी से बढ़ाने पर जोर दे रही है. इंजीनियरिंग निर्यात बढ़ने से न केवल विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ेगा बल्कि देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर, खासतौर पर एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार के मौका भी उपलब्ध कराए जा सकेंगे. यही कारण है कि सरकार अगले पांच साल में इंजीनियरिंग निर्यात को दोगुना व वर्ष 2030 तक इसे 200 अरब डॉलर तक पहुंचाने पर जोर देगी.
स्टील उद्योग की चिंताओं व चुनौतियों पर विचार विमर्श के दौरान वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल व स्टील मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने उद्योग को आश्वस्त किया कि घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने संबंधी कदम उठाये जाएंगे. हिंदुस्तान संसार में दूसरा सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश है. लेकिन इसके उल्टा वह स्टील का बड़ा आयातक भी है. उद्योग की दिक्कतों पर विचार के लिए बुलाई गई इस मीटिंग में व्यक्तिगत व सार्वजनिक क्षेत्र की स्टील कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
दुनिया के कई राष्ट्रों की तरफ से संरक्षणवादी कदम उठाये जाने के बाद स्टील उत्पादों का निर्यात प्रभावित होने का अंदेशा बढ़ता जा रहा है. साथ ही देश में स्टील उत्पादन की क्षमता का भी पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है. दोनों ही मंत्रियों ने विचार विमर्श के दौरान स्थिति में सुधार के तरीकों पर चर्चा की. मंत्रियों का जोर गैर महत्वपूर्ण स्टील आयात को कम करने वनिर्यात को बढ़ावा देने पर रहा.
साल 2018-19 में देश से होने वाले इंजीनियरिंग निर्यात में 6.36 फीसद की वृद्धि हुई थी. इस अवधि में 83.7 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जबकि वर्ष 2017-18 में 78.7 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था.इंजीनियरिंग उद्योग का मानना है कि अगर उसे रियायती मूल्यों पर स्टील उपलब्ध कराया जाए तो वह अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में आ जाएगा.