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13 करोड़ भारतीय बेहद गरीब, रोज की कमाई 181 रुपये से भी कम; विश्व बैंक की रिपोर्ट में दावा

करीब 12.9 करोड़ भारतीय वर्ष 2024 में अत्यधिक गरीबी में जीवन बसर कर रहे हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, इन भारतीयों की प्रतिदिन की आमदनी 181 रुपये (2.15 डॉलर) से भी कम है। वर्ष 1990 में यह संख्या 43.1 करोड़ थी। रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा रफ्तार से दुनिया में गरीबी खत्म करने में एक सदी से भी अधिक समय लग सकता है। विश्व बैंक की मंगलवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च गरीबी मानक के साथ मध्य आय वाले देशों के लिए गरीबी की तय सीमा प्रतिदिन 576 रुपये (6.85 डॉलर) है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि के चलते 1990 की तुलना में 2024 में अधिक भारतीय गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। इससे पहले विश्व बैंक ने कहा था कि भारत में अत्यधिक गरीबी पिछले दो वर्षों में बढ़ने के बाद 2021 में 3.8 करोड़ घटकर 16.74 करोड़ रह गई।

भारत का योगदान वैश्विक चरम गरीबी में घटेगा
विश्व बैंक के मुताबिक, अगले दशक में वैश्विक अत्यधिक गरीबी में भारत का योगदान काफी कम होने का अनुमान है। यह अनुमान अगले दशक में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि के साथ-साथ ऐतिहासिक विकास दरों पर आधारित है। भारत में 2030 में चरम गरीबी दर शून्य करने पर भी इस अवधि में दुनियाभर में अत्यधिक गरीबी दर 7.31 फीसदी से गिरकर 6.72 फीसदी ही रहेगी जो अभी भी तीन फीसदी के लक्ष्य से काफी ऊपर है।

दुनिया में 70 करोड़ लोग अत्यधिक गरीब

  • गरीबी, समृद्धि और पृथ्वी
    बहुसंकट से बाहर निकलने के रास्ते नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि आज भी दुनिया की 44 फीसदी आबादी प्रतिदिन 576 रुपये से कम पर जीवनयापन करती है। जनसंख्या वृद्धि के कारण 1990 के बाद से इस गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कोई खास बदलाव नहीं आया है। 2020-2030 एक खोया हुआ दशक होने वाला है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रगति की मौजूदा रफ्तार के हिसाब से अत्यधिक गरीबी को मिटाने में दशकों लगेंगे और लोगों की प्रतिदिन की कमाई 576 रुपये से ऊपर लाने में एक सदी से अधिक समय लगेगा। वैश्विक आबादी का 8.5 फीसदी या 70 करोड़ लोग आज भी 181 रुपये से कम पर जीवनयापन कर रहे हैं। अनुमान है कि 2030 में 7.3 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीबी में रह रही होगी।
  • अफ्रीका में बढ़ेगी गरीबी
    रिपोर्ट में कहा गया है कि इन नए डाटासेट को हाल ही में जारी 2022-23 के घरेलू उपभोग और व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) में शामिल नहीं किया गया था, क्योंकि आवश्यक विश्लेषण समय पर पूरे नहीं किए जा सके। रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष मजबूत हैं जैसे उप-सहारा अफ्रीका और विकासशील देशों में अत्यधिक गरीबी का बढ़ना और 2030 तक अत्यधिक गरीबी के खात्मे का पहुंच से बाहर होना।

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