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1984 सिख दंगा: सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस ढींगरा की रिपोर्ट को स्वीकारा, दोषी पुलिस वालों पर होगी कार्रवाई

1984 सिख दंगा से जुड़े 186 मामलों की SIT जांच पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को जस्टिस ढींगरा की रिपोर्ट को आधार बनाकर पीड़ितों ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाते हुए कहा कि पुलिस ने इस मामले में दंगाइयों का साथ दिया है। साथ ही इस मामले में जस्टिस ढिंगरा की सिफारिश के अनुसार अपील दाखिल होनी चाहिए और पुलिसवालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में कानून के हिसाब से कार्रवाई करेंगे।

CJI जस्टिस बोबड़े ने कहा कि पीड़ित पक्ष अपनी अर्जी दाखिल कर सकते हैं और उसमें वो अपनी मांगों को रख सकते हैं। SG तुषार मेहता ने कहा कि हमने जस्टिस ढिंगरा की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है और इस संबंध में कार्रवाई करेंगे।SIT की जांच रिपोर्ट सौंपने और जांच पूरी होने के बाद पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस SIT को खत्म करने का आग्रह किया था। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों की जांच के लिए SIT का गठन किया गया था।

केंद्र सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया था कि एसआईटी की जांच पूरी हो चुकी है और उसने कोर्ट में रिपोर्ट दखिल कर दी है। SIT अब खाली है, लिहाजा इसे खत्म कर दिया जाए। इस पर पीड़ितों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का ने पीठ ने गुहार लगाई थी कि उन्हें एसआईटी रिपोर्ट को देखने की इजाजत दी जाए, लेकिन एएसजी आनंद ने रिपोर्ट को गोपनीय और सीलबंद लिफाफे में होने के चलते इसका विरोध किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था वि वह इस पर आदेश देगा। जस्टिस ढींगरा आयोग की रिपोर्ट की जांच करने के बाद सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर फैसला लेना है कि इस रिपोर्ट को याचिकाकर्ताओं के साथ सीलबंद लिफाफे में साझा किया जाना चाहिए या नहीं।

बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से जुड़े 186 मामलों की करीब तीन दशक से लंबित पड़ी जांच को पूरा करने के लिए SIT का गठन किया गया था। SIT के गठन का आदेश गत वर्ष जनवरी महीने में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दिया था। SIT की अध्यक्षता दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस शिव नारायण ढींगरा को सौंपी गई थी।

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