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2 महीने पहले से होती है तैयारी, कैसे बनता है मुहर्रम के लिए ताजिया…

आज का दिन इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत की याद में मनाया जाता है। मुहर्रम का मौका इस्लामिक नए साल की पहली अहम तारीख मानी जाती है। इस महीने के शुरुआती 10 दिनों को आशुरा कहा जाता है। इस दिन शिया समुदाय के लोग धूमधाम से ताजिया निकालते हैं। आइए जानते हैं कैसे बनाते हैं ताजिया और कैसे हुई थी ताजियादारी की शुरुआत-

मुहर्रम से 2 महिने पहले ही ताजिया बनाने की शुरुआत हो जाती है। इस बड़ी बारीकी से बनाया जाता है। ये बांस, लकड़ियों और कपड़ों से गुंबदनुमा मकबरे के आकार का होता है। इस पर रंग-बिरंगे कागज और पन्नी लगाई जाती है। आजकल लोग लंबे और नए-नए तरीके से ताजिए को सजा रहे हैं। कही जगहों पर ताजिए बांस से नहीं बल्कि शीशम और सागवान की लकड़ी से बनाए जाते हैं। इन पर कांच और माइका का काम भी किया जाता है।

लोग ताजिए को झांकी की तरह सजाते हैं। मुस्लिम मुहर्रम की नौ और दस तारीख को रोजा रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत करते हैं। ये इस्लामी इतिहास की बहुत खास तारीखें हैं। मुहर्रम के दिनों में शिया लोग ताजिए के आगे बैठकर मातम करते हैं और मर्सिये पढ़ते हैं। ग्यारहवें दिन जलूस के साथ ले जाकर ताजिया को कर्बला में दफन करते हैं। शिया लोग बहुत शान से ताजियादारी करते हैं।

कई क्षेत्रों में हिन्दू भी, इस में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते है और ताजिया बनाते है। भारत में सब्से अच्छी ताजियादारी जावरा मध्यप्रदेश प्रदेश में होती है। यहां जावरा में 12 फिट के ताजिया बनते हैं। बादशाह तैमूर लंग ने 1398 इमाम हुसैन की याद में एक ढांचा तैयार कर उसे फूलों से सजवाया था। बाद में इसे ही ताजिया का नाम दिया गया। इस परंपरा की शुरुआत भारत से ही हुई थी।

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