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अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद व लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जयंती पर दी श्रद्धांजलि

औरैया। भारतीय नागरिक परिषद के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दो सबसे देदीप्यमान नक्षत्रों अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को जन्म जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा प्रत्यक्ष है कि राजनीतिक स्वतंत्रता 15 अगस्त 1947 को प्राप्त हो गई किंतु यह स्वतंत्रता वह नहीं है, जिसके लिए चंद्रशेखर आजाद ने अपना बलिदान दिया था और उनके कई सहयोगी फांसी के फंदे पर लटके थे अनेकों क्रांतिकारियों को अंडमान की कालकोठरी में अपार कष्ट सहने पड़े थे।

उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर आजाद का स्वप्न जनता का राज्य स्थापित करना था जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण न हो। यह सपना तो अभी कोसों दूर है। शैलेंद्र दुबे ने कहा आज जब हम चंद्रशेखर आजाद और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का स्मरण कर रहे हैं तो हमें अपने ध्यान में उनके विचारों और उनके सपनों के भारत का निर्माण करना विस्मृत नहीं करना चाहिए। इस दृष्टि से स्वतंत्रता का युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है और यह युद्ध तब तक चलाना होगा जब तक पूर्णतया आम जनता, किसानों, मेहनतकशों और मजदूरों का राज्य स्थापित न हो जाए। सबको संकल्प लेना होगा कि चंद्रशेखर आजाद और स्वतंत्रता संग्राम के लाखों अनाम बलिदान व्यर्थ न जाने पाये।

उन्होंने कहा चंद्रशेखर आजाद का व्यक्तित्व काकोरी क्रांति के चार शहीदों पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खान और रोशन सिंह तथा शहीद ए आजम भगत सिंह के साथ इतना जुड़ा हुआ है कि इन पांचों की जीवनी जब भी लिखी जाएंगी तो उनकी जीवनी में चंद्रशेखर आजाद की जीवनी स्वतः आ जाती है। चंद्रशेखर आजाद उन थोड़े से महान क्रांतिकारियों में है जो बहुत अच्छे संगठनकर्ता थे। उनके साथी उनकी त्याग की भावना से पूर्ण रूप से प्रभावित होते थे। यह एक आश्चर्य की बात है कि अपने त्याग और निष्ठा की बदौलत वे किस प्रकार भगत सिंह, डॉक्टर भगवानदास माहौर, वैशम्पायन, विजय कुमार सिन्हा आदि विद्वान क्रांतिकारियों का नेतृत्व करते थे यद्यपि वे स्वयं ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। चन्द्र शेखर आजाद का नाम ब्रिटिश तख्त के लिए किसी खौफ से कम नही था।

भारतीय नागरिक परिषद के संस्थापक ट्रस्टी व वरिष्ठ अधिवक्ता रमाकांत दुबे ने कहा लोकमान्य तिलक एक राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें “भारतीय अशान्ति के पिता” कहते थे। उन्हें, “लोकमान्य” का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत।


लोकमान्य तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ और क्रांतिकारियों का आदर्श लक्ष्य बन गया।

भारतीय नागरिक परिषद के अध्यक्ष चंद्र प्रकाश अग्निहोत्री ने कहा कि चंद्रशेखर आजाद और लोकमान्य तिलक के स्वतंत्र भारत के सपने अभी भी अधूरे हैं और हम सबको उनके बताए हुए मार्ग पर आगे चलना होगा।आज के अवसर पर यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी। संगोष्ठी का संचालन भारतीय नागरिक परिषद की महामंत्री रीना त्रिपाठी ने किया और संगोष्ठी में मुख्य रूप से एच.एन. पांडे, एच.एन. मिश्रा, देवेन्द्र शुक्ल, प्रभात सिंह, कमलेश मिश्रा , प्रथमेश दीक्षित, निशा सिंह, प्रेमा जोशी, रेनू त्रिपाठी, राघवेंद्र सिंह, डीपी मिश्र, , डी.के. मिश्र, अजय तिवारी, कौशल किशोर वर्मा, शिव प्रकाश दीक्षित, सुशील शुक्ला, रामजी त्रिपाठी, अखंड प्रताप सिंह, अक्षत सिंह, सम्मिलित हुए।

रिपोर्ट-अनुपमा सेंगर

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