कतर और भारत के रिश्ते दिलचस्प हैं. कारोबार और मानव संसाधन को लेकर दोनों देशों के बीच जितनी समरसता दिखती है, उतनी ही जियो पॉलिटिकल और इस्लामिक मुद्दों के मोर्चे पर दुश्मनी. भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाकर खाड़ी के इस देश ने भारत के प्रति अपना जहरीला रवैया उजागर किया है.इन नौसेना अधिकारियों का केस काफी कुछ पाकिस्तानी जेल में बंद कुलभूषण जाधव के मामले से मिलता-जुलता है.
हमास को समर्थन देने के लिए लगातार आलोचना का शिकार हो रहे कतर ने भारतीय नौसेना के 8 पूर्व अफसरों को मौत की सजा सुनाकर नया मोर्चा खोल दिया है. इजरायल-गाजा युद्ध के दौरान आए इस फैसले की टाइमिंग इसलिए भी खास हो जाती है, क्येांकि इन अफसरों पर कतर की कंपनी में काम करते हुए इजरायल के लिए जासूसी करने का आरोप था. कतर के मंसूबों पर इस फैसले की टाइमिंग के अलावा कोर्ट की गुपचुप कार्रवाई को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. पूरी कार्रवाई बेहद गोपनीय ढंग से हुई. आरोपी भारतीयों को असाधारण रूप से लंबे अरसे तक अलग-अलग कैद किया गया. इन अफसरों पर सभी आरोप कतर की इंटेलिजेंस एजेंसी ने ही लगाए. इस बारे में न कतर की बाकी कानूनी एजेंसियों को कुछ पता था, न भारत को.
अब भारत के पास बचे हैं ये रास्ते:
1. भारतीय नौसेना के पूर्व अफसरों को राहत दिलाने के लिए सबसे सहज और सरल तरीका तो यही है कि भारत कतर की अथॉरिटी को अपील करके इस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहे. इस फैसले का बारीकी से अध्ययन करके उसकी कमजोरी को नए सिरे से पेश किया जा सकता है.
2. कतर की जिस अदालत ने बेहद गोपनीय ढंग से इस मामले की सुनवाई की और फैसला दिया, उसे इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चैलेंज किया जा सकता है. ठीक वैसे ही, जैसे कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तानी मिलिट्री कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी. भारत को यहां ICJ से राहत भी मिली थी.
3. इस मामले में भारत अपनी कूटनीति का फायदा उठा सकता है. मिडिल ईस्ट में भारत के कई देशों से बहुत गहरे संबंध हैं. सऊदी अरब और यूएई की मध्यस्थता से भारत इन नौसेना अधिकारियों की रिहाई संभव करवा सकता है.
4. कतर की आबादी में 25 फीसदी हिस्सा भारतीय समुदाय का है. यह भारत की सॉफ्ट पावर ही है जो कतर जैसे देश की इकोनॉमी से लेकर देश के कई हिस्सों की गाड़ी में पहिये का काम कर रही है. वहां अहम पदों पर बैठे भारतीयों का दबाव भी कतर अथॉरिटी को पुनर्विचार के लिए मजबूर कर सकता है.
5. खाने-पीने की चीजों से लेकर कई जरूरी साजो-सामान के लिए कतर भारत पर ही निर्भर है. इस कारोबारी रिश्ते का हवाला देकर भी उसे अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
6. यदि सारे अनुरोध और आवेदन कतर की ओर से नामंजूर कर दिये जाएं तो इजरायल वाली नीति अपनाकर भारत अपनी अंगुली टेढ़ी भी कर सकता है. हमास को शरण देने और उसके प्रोपोगेंडा को आगे बढ़ाने के आरोप में इजरायल ने कतर के सरकारी मीडिया चैनल अल-जजीरा पर कार्रवाई की है. अल-जजीरा पर भारत की छवि खराब करने के भी आरोप लगते रहे हैं.
7. जिस तरह हाल ही में कनाडा सरकार ने भारत के प्रति अक्रामक रवैया अपनाया है, कुछ-कुछ वैसा ही कतर के केस में भी होता दिख रहा है. नौसेना अफसरों के केस में सुनवाई न होने पर भारत राजनयिक संबंधों की भी बांह मरोड़ सकता है.
भारतीय नौसेना के बड़े युद्ध पोतों के सम्मानित अफसर साजिश का शिकार!
जिन अफसरों को मौत की सजा सुनाई गई है, वे हैं- कैप्टन नवतेज सिंह गिल, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर अमित नागपाल, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता और सेलर रागेश गोपाकुमार. इनमें से कई अधिकारी भारतीय नौसेना के प्रमुख युद्धपोतों का नेतृत्व कर चुके हैं. कमांडर पूर्णेंदु तिवारी को 2019 में प्रवासी भारतीय सम्मान से भी नवाजा गया था, जो कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. उस दौरान दोहा में भारतीय दूतावास ने X पर पोस्ट किया था कि ‘कमांडर तिवारी विदेश में रहकर लगातार भारत की छवि को उत्कृष्ट बनाने के लिए काम कर रहे हैं.’
क्या है पूरा मामला:
ये सभी भारतीय अधिकारी कतर स्थित दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज़ एंड कंसल्टेंसी सर्विसेस के लिए काम कर रहे थे. रॉयल ओमान एअरफोर्स के रिटायर्ड स्क्वॉड्रन लीडर खामिस अल-अजमी की यह कंपनी कतर की सेना को ट्रेनिंग और अन्य सर्विसेस मुहैया कराती है. भारतीय नौसेना अधिकारियों के साथ अजमी को भी गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उन्हें नवंबर 2022 में रिहा कर दिया गया. भारतीय अफसर यहां इटली की स्टेल्थ क्षमताओं वाली पनडुब्बी पर काम कर रहे थे. इन्हें जासूसी के आरोप में 30 अगस्त 2022 को गिरफ्तार किया गया. तब से अब तक इनकी जमानत याचिका कई बार खारिज हुई. इसी साल मार्च में इन अफसरों के खिलाफ कतर के कोर्ट ऑफ फर्स्ट इंस्टेंस में चार्जशीट दाखिल हुई. कुछेक तारीखों पर सुनवाई के दौरान अफसरों के वकील को कोर्ट में आने दिया गया. भारत की ओर से काउंसलर एक्सेस बढ़ाने का आवेदन कोर्ट ने नामंजूर कर दिया. और आखिरकार गुरुवार को इन्हें मौत की सजा सुना दी गई.