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सोलापुर में कांग्रेस की बदलती तस्वीर

सोलापुर जिले, खासकर सोलापुर शहर में कांग्रेस पार्टी की स्थिति कमजोर होती दिख रही है। लोकसभा चुनावों के बाद से ही पार्टी में आपसी मतभेद की बातें सामने आ रही थीं, जो महाविकास अघाड़ी (MVA) की असंगठित और कमजोर चुनावी रणनीति के साथ और बढ़ गईं। दशकों से कांग्रेस और शिंदे परिवार का गढ़ माने जाने वाला यह क्षेत्र अब बिखरता हुआ नजर आ रहा है, जिससे पार्टी और परिवार के भीतर तनाव बढ़ गया है।

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इसी बीच, सोलापुर की सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रणिति शिंदे पर पार्टी मामलों को सही तरीके से न संभालने और कार्यकर्ताओं को दूर करने के आरोप लगे हैं। कुछ कार्यकर्ताओं ने खुलकर उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए हैं। वहीं, शिंदे परिवार के पोते शिखर पहारिया ने हाल के महीनों में नई अटकलों को जन्म दिया, और महायुति के शपथ ग्रहण समारोह में उनकी मौजूदगी ने चर्चाओं को और तेज़ कर दिया है।

सोलापुर में कांग्रेस की बदलती तस्वीर

कांग्रेस के लिए यह सब एक खराब चुनावी प्रदर्शन के बाद हुआ है। चुनावों से पहले यह चर्चा थी कि शिखर सोलापुर सिटी सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं। बताया जा रहा है कि इस विचार को शुरू में शिंदे परिवार और पार्टी का समर्थन था, लेकिन बाद में किसी कारण यह बात आगे नहीं बढ़ पाई।

चुनाव के महत्वपूर्ण समय में शिखर की अनुपस्थिति ने उनके परिवार और ज़िले की राजनीति में उनकी भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। सूत्रों का कहना है कि प्रणिति और उनके करीब माने जाने वाले ज़िले के एक प्रमुख राजनेता ने शिखर की उम्मीदवारी और उनकी बढ़ती भूमिका का विरोध किया था इस कथित विरोध ने परिवार के भीतर तनाव बढ़ा दिया है।

कई स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रणिति के इस रुख पर नाराजगी जताई है। वहीं, महाविकास अघाड़ी (MVA) के सहयोगी दल शिवसेना (UBT) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी प्रणिति पर MVA के उम्मीदवारों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया है। हालांकि, इन विवादों के पीछे का असली कारण साफ नहीं है, लेकिन यह सोलापुर में कांग्रेस और शिंदे परिवार के राजनीतिक प्रभुत्व और प्रभाव को लेकर संघर्ष जैसा लगता है।

इसके बावजूद, सुशील कुमार शिंदे के करीबी सूत्रों का कहना है कि शिखर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच एक युवा और ऊर्जावान नेता के रूप में लोकप्रिय हो रहे हैं। लेकिन परिवार के झगड़े इस संभावना को कमजोर कर सकते हैं और सोलापुर में पहले से ही कमजोर पार्टी में गहरी फूट डाल सकते हैं।

5 दिसंबर को शपथ ग्रहण समारोह में शिखर की उपस्थिति ने सवाल खड़े कर दिए। खासकर इसलिए क्योंकि MVA और कांग्रेस ने पहले ही घोषणा की थी कि उनका कोई प्रतिनिधि इस समारोह में शामिल नहीं होगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या शिखर ने यह उपस्थिति एक आम नागरिक के तौर पर दी या यह महाराष्ट्र की राजनीति में किसी बड़े बदलाव का संकेत है, जैसे कि चव्हाण और राणे परिवारों में हुआ था?

इस घटनाक्रम का व्यापक प्रभाव साफ है – सोलापुर में कांग्रेस का प्रदर्शन अब तक का सबसे खराब है। नई अफवाहें और संभावित बदलाव इस तस्वीर को और जटिल बना सकते हैं। हो सकता है कि 5 दिसंबर का शपथग्रहण समारोह सोलापुर के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो। यह देखना बाकी है कि इन घटनाओं के पीछे कोई नई राजनीतिक रणनीति है या सिर्फ परिस्थितियों का संयोग।

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