प्रचलित लोक कथा के अनुसार पुराने समय में एक संत गांव से बाहर झोपड़ी बनाकर रहते थे. वे बहुत ज्यादा मशहूर थे, दूर-दूर से लोग उनसे मिलने आते व अपनी समस्याओं का निवारण पूछते थे. उनकी झोपड़ी गांव से बाहर होने की वजह से कई बार अनजान लोग भी वहां रुकते थे. कभी-कभी वहां से निकलने वाले राहगीर उनसे पूछते थे कि गांव की बस्ती तक कैसे पहुंच सकते हैं? संत उन्हें सामने की ओर संकेत करके रास्ता बता देते थे. कुछ लोग पूछते कि क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो संत कहते थे कि नहीं बस्ती जाने का यही एक रास्ता है.
- यात्री जब संत द्वारा बताए रास्ते पर जाते तो आगे चलकर वे श्मशान पहुंच जाते थे. वहां पहुंचकर यात्रियों को बहुत गुस्सा आता था. कुछ लोग संत को बुरा-भला कहते व कुछ लोग चुपचाप दूसरा रास्ता खोजने लगते थे.
- एक दिन यात्री के साथ ऐसा ही हुआ तो उसे संत पर बहुत गुस्सा आया. क्रोधित यात्री संत को बुरा-भला कहने के लिए संत के पास पहुंच गया. संत से बोला कि तुमने गलत रास्ता क्यों बताया?
- यात्री ने संत को खूब गालियां सुनाई, जब यात्री चिल्लाते-चिल्लाते थक गया तो वह शांत हो गया. तब संत ने बोला कि भाई क्या श्मशान बस्ती नहीं है? तुम लोग जिसे बस्ती कहते हो, वहां रोज किसी न किसी की मौत होती है, रोज किसी न किसी का घर उजड़ जाता है, लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन श्मशान ही एक ऐसी बस्ती है, जहां कोई एक बार आता है तो वह फिर कहीं व नहीं जाता. श्मशान भी एक बस्ती है, यहां जो एक बार बस गया, वो हमेशा के लिए यहीं रहता है. मेरी नजर में तो यही बस्ती है.
- हर इंसान का यही अंतिम लक्ष्य है, सभी को मौत के बाद यहां आना है. इसीलिए हमें गलत कामों से बचना चाहिए. यही सब बातें सोचकर मैं बस्ती का यही रास्ता बताता हूं. संत की ये बात सुनकर यात्री को अहसास हो गया कि उसने संत पर चिल्लाकर गलती की है. उसने संत से क्षमा याचना की व गांव की ओर चल दिया.
प्रसंग का ज़िंदगी प्रबंधन
इस प्रसंग का ज़िंदगी प्रबंधन ये है कि मौत अटल सत्य है. जिसने जन्म लिया है, उसे एक दिन मौत को अवश्य प्राप्त होगी. संदेश यह है कि सभी लोगों को अंतिम सत्य का ध्यान रखते हुए कार्य करना चाहिए, तभी हम बुराइयों से बच सकते हैं. जो लोग मौत को अंतिम सत्य मानकर कार्य करते हैं, वे गलत कामों से बचे रहते हैं.