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अभिषेक को अभिनय से ब्रेक लेने की जरूरत, दो कदम पीछे जाकर नई छलांग की करें तैयारी

रेमो डिसूजा की बतौर निर्देशक मिथुन चक्रवर्ती अभिनीत बांग्ला फिल्म शायद ज्यादा लोगों को पता नहीं और लोग यही मानते आए है कि वह फिल्म निर्माता वाशू भगनानी की अपनी बेटे को सुपरस्टार बनाने की जिद वाली फिल्म ‘फालतू’ से ही निर्देशक बने। रेमो ने हिंदी सिनेमा को ‘एबीसीडी’ (एनी बडी कैन डांस) और ‘एबीसीडी 2’ जैसी पैर थिरकाने वाली फिल्में भी दी और कहानी के जिस नींबू को वह इन दो फिल्मों में निचोड़ चुके थे, उसका छिलका मसल कर दर्शकों का स्वाद कसैला कर देने वाली फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ बनाकर खुद ही हाशिये पर चले गए। वहीं कहीं उसी हाशिये पर उन्हें अभिषेक बच्चन सुस्ताते मिले जो इन दिनों एक अच्छा अभिनेता बनने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। लेकिन, उनका गुरूर, उनकी देहभाषा और उनका नए वातावरण या परिवेश में काम करने से बचते रहने का डर, उन्हें इसमें सफल नहीं होने दे रहा। अभिषेक की नई फिल्म ‘बी हैपी’ एक औसत से भी कमतर फिल्म है और इसे प्रसारित करने वाले ओटीटी अमेजन प्राइम की अपनी हिंदी लाइब्रेरी बढ़ाने भर की एक और कोशिश।


अभिषेक को खुद को परखने की जरूरत
अभिषेक बच्चन ने अपनी पिछली फिल्म ‘आई वॉन्ट टू टॉक’ में तमाम समीक्षकों को हिला दिया था। फिल्म में अभिषेक ने खूब तारीफें बटोरीं, लेकिन मनोरंजन के पैमाने पर फिसड्डी रही। ऐसी फिल्मों को वैधानिक चेतावनी के साथ रिलीज किया जाना बेहतर होता है। अब वैसी ही एक गलती अभिषेक फिर दोहरा रहे हैं अपनी नई फिल्म ‘बी हैपी’ में। हिंदी फिल्मों के अंग्रेजी नाम रखने से अच्छा ये होता कि ये दोनों फिल्में अंग्रेजी में ही बनाई जातीं क्योंकि ये दोनों फिल्में हिंदी के आम दर्शक की संवेदनाओं को समझने की कतई कोशिश नहीं करती हैं। रेमो डिसूजा कोरियाग्राफर थे, हैं और शायद आगे भी रहेंगे लेकिन बतौर फिल्म निर्देशक परदे पर पांच साल बाद वापसी करके भी वह वहीं खड़े हैं जहां पांच साल पहले फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ के समय थे।

पिता-पुत्री के रिश्ते पढ़ना, समझना जरूरी
फिल्म ‘बी हैपी’ होने को पिता और पुत्री के रिश्तों की एक बेहतरीन फिल्म हो सकती थी। इन रिश्तों पर ‘पीकू’ जैसी फिल्में भारत में और बननी चाहिए। रिश्तों को दायरों में न बांधकर, दो पीढ़ियों के बीच होने वाली बातचीत को परंपरागत रूढ़ियों से बाहर लाकर ही एक ऐसे नए पढ़े लिखे समाज की संरचना हो सकती है, जहां होली जैसे त्योहारों पर किसी धार्मिक स्थल को तिरपाल से न ढकना पड़े। याद है अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण के बीच के वे संवाद जहां पिता अपनी बेटी के कौमार्य के बारे में एक अनजान शख्स से बेटी के सामने ही बोले जा रहा है। या जहां बेटी ऐसे किसी रिश्ते को बस ‘इट इज ए नीड’ कहकर आगे बढ़ जा रही है। अभिषेक बच्चन को पिता के रूप में देखना ही अपने आप में कौतूहल जगाता है, लेकिन पिता होने का कौतूहल क्या है, ये अभिषेक को अभी रिश्तों के इस पानी में और गहरे उतरकर नापना बाकी है।

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