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अखिल भारतीय परिसंघ ने संविदा सफाई कर्मचारियों को नियमित ना करने को असंवैधानिक बताया

लखनऊ। वंचित शोषित सामाजिक संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष चंदन लाल वाल्मीकि ने नगर पालिका, नगर पंचायतों और नगर निगमों में सफाई व्यवस्था को सुचारू रूप से करने के लिए 2006 से तैनात संविदा सफाई कर्मचारियों को नियमित ना किये जाने पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार में कर्मचारियों के रिक्त सृजित पदों पर संविदा के रूप में तैनाती की गई थी।

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सरकार बदलने के बाद किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। उन्होंने कहा है कि मुलायम सिंह यादव की मंशा थी कि सफाई कर्मियों की भर्ती नियमित होते रहना चाहिए। बावजूद इसके नगर निगम मेरठ और नगर पालिका परिषद पीलीभीत को छोड़ कर पूरे प्रदेश की नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में नगर आयुक्त और जिला अधिकारी द्वारा गठित कमेटी द्वारा अनुभवी और योग्य सफाई कर्मचारियों की आरक्षण व्यवस्था का पूर्ण पालन कर संविदा भर्ती की गई। इस भर्ती को हुए 18 वर्ष हो जाने के बाद भी उन्हें अभी तक नियमित नहीं किया जा सका। उन्होंने इसे राज्य सरकार का असंवैधानिक कार्य बताया है।

चन्दन लाल वाल्मीकि ने कहा है कि भारत का संविधान लोक कल्याण के लिए कार्य करता है। संविधान में उल्लेखित है कि केन्द्र व राज्य सरकारें लोक कल्याण के लिए कार्य करेंगी। किसी बेरोजगार व्यक्ति का उसकी बेराजगारी का लाभ उठा कर उसको कम वेतन पर अर्थांत संविदा के रूप में रख कर एक लम्बे समय तक कार्य कराना संविधान के विरूद्ध है। इससे उसकी आयु भी प्रभावित होती है, कम वेेतन के कारण उसकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति भी असुरक्षित होती है। संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है।

वंचित शोषित सामाजिक संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष चंदन लाल वाल्मीकि ने कहा है कि साफ सफाई का काम बारामासी काम है। सफाई के काम में संविदा प्रथा बन्द होनी चाहिए। नियमित प्रकृति के कार्यों के लिए नियमित भर्ती की जानी चाहिए। जो पूर्व में संविदा कर्मी भर्ती हुए है उन्हें 18 वर्ष की निरन्तर सेवा करने के बाद नियमित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। जिससे हम सच्चे लोक कल्याण देश के रूप में हम भारत का निर्माण कर सकें।

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श्री वाल्मीकि ने कहा कि नगर विकास विभाग उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2006 में शासनादेश संख्या 4140/9-1-2005 -66सा/01/टीसी 26 अगस्त 2005 एवं शासनादेश संख्या 133/(1)/ नौ-1-2006-66सा 2001 टीसी 9 मई 2006 द्वारा स्थानीय निकाय में नियुक्तियां की हैं। संविदा सफाई कर्मचारियों की भर्ती जिला अधिकारी के माध्यम से गठित समिति के माध्यम से नियमित भर्ती की भांति ही समाचार पत्रों में भर्ती का विज्ञापन प्रकाशित करा कर उत्तर प्रदेश की नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में सफाई कर्मचारियों की भर्ती की गई। जो आज भी अनवरत सभी सफाई कर्मचारी नगरों को स्वच्छ करने का कार्य कर रहे हैं।

पूर्व में हुई भर्ती 

  • संविदा कर्मियों की भर्ती निकायों के रिक्त सृजित पदों पर हुई है।
  • भर्ती के लिए निकायों ने अपने स्तर से विज्ञापन प्रकाशित कराया था।
  • जिला अधिकारी के माध्यम से नियुक्ति की प्रक्रिया के बाद योग्य एवं अनुभवी सफाई कर्मचारियों का चयन हुआ।
  • चयन के बाद संविदा सफाई कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र दिये गये।
  • पूरे वर्ष अच्छी सेवा करने के उपरांत वेतन वृद्धि की गई और सेवा को अगले सालों तक अनवरत रखा।
  • संविदा सफाई कर्मचारियों ने लगातार 240 दिनों की सेवा, 3 वर्ष की सेवा और 10 वर्ष की सेवा भी अधिक समय पूर्ण कर लिया है। 
  • स्थानीय निकाय के संविदा सफाई कर्मचारियों ने लगभग 18 वर्ष की सेवा पूर्ण कर ली है।

लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने विभिन्न सर्वाेच्च न्यायलयों एवं उच्च न्यायलायों के पारित आदेशो का अनुपालनार्थ कोई ऐसी पॉलिसी नहीं बनाई, जिससे इन 18 वर्षों से कार्य करने वाले संविदा सफाई कर्मचारियों को नियमित किया जा सके। श्री वाल्मीकि ने कहा कि नगरों की सफाई का कार्य नियमित प्रकृति का और बारामासी काम है।

जिसे प्रदेश के सफाई कर्मचारी प्रतिदिन कार्य करते हैं और इन संविदा सफाई कर्मचारियों का वेतन प्रतिमाह नगर निगम, नगर पालिका परिषद तथा नगर पंचायत, उत्तर प्रदेश सफाई कर्मचारियों के बैंक खातों में प्रतिमाह डालते हैं। शहरों का विस्तार तेजी से बढ रहा है लेकिन शहर को स्वच्छ रखने बाले नियमित सफाई कर्मचारियों की उत्तर प्रदेश में नियुक्तियों पर रोक लगी है। इस लिए सफाई कर्मचारियों की नई भर्तियां एक लम्बे समय से बन्द हैं। सफाई कर्मचारियों के सेवानिवृत होने के कारण नियमित सफाई कर्मचारियों की संख्या उत्तर प्रदेश के नगर निकायों में प्रतिमाह कम होती जा रही है।

सफाई कर्मचारियों की पूर्ति के लिए पहले दैनिक मजदूरी पर भर्ती होती थी जो निकाय के अधिकारी ही रखते थे जिन्हें समय-समय पर शासनादेशों के तहत नियमित कर दिया जाता था। 2006 में संविदा सफाई कर्मचारी के रूप में सफाई कर्मचारियों की भर्ती की गई। अब तो आउट सोर्सिंग के माध्यामों से सफाई कर्मचारियों की पूर्ति की जाती हैं। जो सर्वोच्च न्यायलय के 12 मार्च, 2024 के आदेशों का उल्लंघन है।

सरकार की पॉलिसी जन कल्याण के विपरीत और असंवैधानिक है। आउट सोर्सिंग के ठेका सफाई कर्मचारियों का वेतन संविदा के सफाई कर्मचारियों से भी कम है। एक ही नगर निकाय में तीन तरह के सफाई कर्मचारी जैसे- नियमित सफाई कर्मचारी, संविदा सफाई कर्मचारी, और ठेका सफाई कर्मचारी हैं। जब कि इन सभी प्रकार के सफाई कर्मचारियों के काम के घण्टे और दायित्व एक समान ही है। लेकिन इनके वेतन में असमान्य विसंगति है जो न्योचित नहीं है। इन्हीं सब विसंगतियों को समाप्त करने के लिए सर्वोच्च न्यायलय का दिनांक 12 मार्च 2024 का पारित आदेश एक नजीर के रूप में है। अर्थात
सर्वोच्च न्यायलय ने सफाई कार्य को नियमित प्रकृति के बारामासी काम होने के कारण ही इन आदेशों में संविदा सफाई कर्मचारियों को विनियमितकरण करने के आदेश दिये हैं।

सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायलय के आदेश

  • उमादेवी बनाम कर्नाटक राज्य सर्वोच्च न्यायलय केस, सुप्रीम कोर्ट सिविल अपील संख्या 3595-3612 वर्ष 1999 आदेश दिनांक 10-4-200
  • नरेन्द्र कुंमार तिवारी बनाम झारखण्ड राज्य, उच्च न्यायलय केस, सिविल अपील नं0-7423-7429/2018 तथा आदेश पारित दिनांक 1 अगस्त, 2018
  • गुजरात राज्य बनाम पी0डब्ल्यूडी फौरेस्ट इम्पलाई यूनियन व अन्य, सुप्रीम कोर्ट सिविल अपील संख्या 1687-1689,2017 तथा आदेश परित दिनांक- 15 फरवरी 2019
  • भारतीय कामगार कर्मचारी महासंघ बनाम जेट एयरवेज लि0, सर्वोच्च न्यायालय, सिविल अपील नं0-4404/2023, तथा आदेश पारित दिनांक- 25 जुलाई 2023
  • पुरूषोत्तम साहू, सरोज तोमर बनाम छत्तीसगढ राज्य केस,
  • कुन्दन सिंह बनाम उत्तराखण्ड राज्य केस
  • चन्द मोहन नेगी बनाम हिमाचल राज्य, सर्वाेच्च न्यायलय केस, सिविल अपील संख्या 2813 वर्ष 2017 पारित आदेश 17 अप्रैल 2020 आदि आदेशों में संविदा कर्मचारी को नियमितीकरण का उल्लेख है।

लेकिन सरकारें इसका संज्ञान नहीं लेकर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही हैं। वाल्मीकि ने बताया कि उत्तर प्रदेश में संविदा सफाई कर्मचारियों की एक लम्बे समय से की जा रही सेवाओं और बढती मंहगाई को दृष्टिगत करते हुए, और सफाई कार्य नियमित प्रकृति और बारामासी कार्य है, और अत्यंत आवश्यक सेवा के कार्य भी हैं। सर्वोच्च न्यायलय के आदेशों के अनुपालन में उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकायों में कार्यरत संविदा कर्मचारियों जो 2006 से अनवरत अपनी सेवा दे रहे हैं, उन्हें नियमितीकरण के आदेश बहुत पहले ही कर देना चाहिए।

रिपोर्ट-दया शंकर चौधरी

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