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नवाज और इमरान को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने ‘आजीवन’ अयोग्यता के खिलाफ सुनाया फैसला

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को सांसदों के लिए आजीवन अयोग्यता को रद्द कर दिया और फैसला सुनाया कि सांसदों को पांच साल के लिए पद धारण करने से रोक दिया जाएगा। इसे आठ फरवरी को होने वाले आम चुनाव से पहले पूर्व प्रधानमंत्रियों नवाज शरीफ और इमरान खान समेत प्रमुख राजनेताओं के लिए बड़ी राहत मानी जा रही है।

शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने 2018 में एक फैसले में कहा था कि अनुच्छेद 62 (1) (एफ) के तहत अयोग्यता जीवनभर के लिए है। लेकिन, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार द्वारा 26 जून, 2023 को चुनाव अधिनियम 2017 में किए गए बदलावों ने इसे केवल पांच साल के कार्यकाल तक सीमित कर दिया। मुख्य न्यायाधीश (सीजेपी) काजी फैज ईसा की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय पीठ ने सोमवार को फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 62 (1) (एफ) के तहत अयोग्य करार दिए जाने पर किसी भी व्यक्ति को आजीवन चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता।

मुख्य न्यायाधीश ईसा और न्यायमूर्ति सैयद मंसूर अली शाह, न्यायमूर्ति याह्या अफरीदी, न्यायमूर्ति अमीनुद्दीन खान, न्यायमूर्ति जमाल खान मंदोखैल, न्यायमूर्ति मुहम्मद अली मजहर और न्यायमूर्ति मुसर्रत हिलाली की पीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद शुक्रवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायमूर्ति अफरीदी अन्य छह न्यायाधीशों से अलग थे और उन्होंने आजीवन अयोग्य ठहराए जाने के पक्ष में असहमति नोट लिखा था। इस फैसले ने संविधान के अनुच्छेद 62 (1) (एफ) और चुनाव अधिनियम 2017 के तहत अयोग्यता की अवधि के आसपास के सभी विवादों को एक बार फिर निर्धारित किया है।

पूर्व प्रधानमंत्री और आठ फरवरी को होने वाले आम चुनाव में चौथी बार राष्ट्रपति बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे शरीफ को 2017 में पनामा पेपर्स मामले में अयोग्य ठहराया गया था। उनके प्रतिद्वंद्वी इमरान खान भी उसी कानून की चपेट में आ गए थे। इमरान खान को पिछले साल तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में अयोग्य ठहराया गया था।

अदालत के फैसले ने नवाज शरीफ और इमरान खान दोनों के साथ-साथ कई अन्य राजनेताओं के राजनीतिक भविष्य का फैसला किया है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के नेता और पूर्व कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह लंबे समय से लंबित था। उन्होंने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय ने एक विसंगति को दूर किया क्योंकि आजीवन प्रतिबंध मौलिक अधिकारों के खिलाफ था।’

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