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लॉकडाउन के दौरान किसानों की सुधि ले केंद्र एवं राज्य सरकारें : वी.एम. सिंह

नई दिल्ली। सुरसा के मुंह की तरह लगातार अपना मुंह बढ़ाता जा रहा कोरोना इन दिनों पूरे देश दुनिया में दहशत का पर्याय बन गया है। हर व्यक्ति वायरस से अपनी जान बचाने के बारे में सोच रहा है। हर शहर में सन्नाटा है, गांव की हर चौपाल सूनी है। डर है कि अगर यह शहर से देहात में फैल गया तो संभालना मुश्किल हो जाएगा। केंद्र सरकार ने जहां एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये का राहत पैकेज घोषित किया है वहीं, राज्य सरकारें घरों में राशन भेजने का इंतजाम करने का एलान कर रही हैं। हालांकि इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि किसान किसी की भी चिंता का विषय नहीं हैं। यह कहना है देश के जाने माने राजनीतिक रणनीतिकार, पॉलिसी मेकर व किसान नेता तथा अखिल भारतीय प्रधान संगठन के राष्ट्रीय संयोजक कृष्ण झा का।


कृष्ण झा ने राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी.एम. सिंह की मांगों का समर्थन करते हुए कहा कि सरकारों को लॉकडाउन की वजह से बद से बदतर होती किसानों की स्थिति पर भी सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए। क्या हमने कभी ये जानने की कोशिश की है कि अपनी बाजुओं की ताकत से देश का पेट भरने वाले अन्नदाता के पास खुद के खाने के लिए अन्न है या नहीं?यह एक कड़वा सच है कि देश के 85 फीसदी किसानों के पास तीन एकड़ से भी कम जमीन है और उनकी फसल का पूरा पैसा ब्याज समेत कर्ज लौटाने में ही खत्म हो जाता है।


हाड़ कंपाने वाली सर्दी, मुसलाधार बारिश और चिलचिलाती धूप की परवाह न कर अनाज पैदा करने के बावजूद ये किसान मजदूरी करके अपने घर का राशन दुकान से खरीदते हैं। अब जब देश भर में लॉकडाउन है तो अन्य देशवासियों के साथ छोटे और मंझोले किसानों और मजदूरों को भी अनिवार्य रूप से राशन देना चाहिए। साथ ही कोरोना संकट को देखते हुए सरकार को ऋण अदायगी को छह महीने के लिए टाल देना चाहिए और ब्याज माफ कर देना चाहिए।


श्री झा ने कहा कि लॉकडाउन खत्म होने से पहले ही कटाई का वक्त आ जाएगा लेकिन किसानों के सामने सबसे बड़ा धर्मसंकट यह है कि अगर वे फसल हाथों से कटवाएंगे तो मजदूरों में कोरोना का संक्रमण फैलने का खतरा है और हार्वेस्टर से कटाई कराएंगे तो फिर मवेशियों के लिए भूसा कैसे मिलेगा। ऐसे में झा ने मांग की कि सरकार को एक साल के लिए दूध पर पांच रुपये प्रति लीटर अनुदान देने की घोषणा करनी चाहिए। साथ ही गेहूं की फसल खरीद कर किसानों को तत्काल भुगतान करवाने की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा सरकार को 100 रुपये प्रति क्विंटल अनुदान घोषित करना चाहिए।

झा ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किसान श्रम योगी योजना की राशि किसानों के खाते में ट्रांस्फर किये जाने की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अच्छी पहल है। इस सहायता राशि से किसानों को थोड़ी राहत जरूर मिली है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि  किसान सचमुच संकट में हैं। सरकार को ईमानदारी से किसानों को बकाया गन्ना मूल्य दिलवाने पर विशेष ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को पूज्य बापू के सपने ग्राम स्वराज को पूरा करने की दिशा में कारगर पहल करनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि खेती करना लगातार घाटे का सौदा होता जा रहा है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों से देहात के 90 फीसदी नौजवान खेती छोड़कर शहरों की ओर पलायन करने पर मजबूर हैं। सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए ताकि युवाओं को स्थानीय स्तर पर रोजगार दिया जा सके।

देश के जाने माने इंडस्ट्रीयलिस्ट एवं जैविक खेती का परचम लहराने वाले नोएडा के एल्कॉमपोनिक्स ग्रुप के एमडी एवं सीईओ सत्येंद्र नारायण द्विवेदी से अपनी बातचीत का जिक्र करते हुए कृष्ण झा ने पत्रकारों से कहा कि द्विवेदी की सलाह पर केंद्र सरकार को गौर करना चाहिए। किसान स्वस्थ तो देश स्वस्थ को मूल मंत्र मानकर सारा विकास उसी को धुरी मानते हुए होंगे तो देश का हर शहर, हर गांव एक साथ विकास की धारा में बहेंगे। झा ने कहा कि लॉकडाउन में सभी कल कारखाने बंद हैं लेकिन किसान आज भी अपने कर्मपथ पर डटा हुआ है। सोचिए अगर वह भी अन्न उपजाने के बजाय घर में बैठ जाय तो देश का क्या हाल होगा।

उन्होंने द्विवेदी की इस मांग का समर्थन किया कि देश में बाबुओं, डाक्टरों, इंजीनियरों, एमपी, एमएलए आदि को मिलने वाली सारी सुविधाएं किसानों को भी मिलनी चाहिए। उन्हें उनके उत्पाद का एमएसपी (MSP) इन बातों को ध्यान में रखकर रखना चाहिए कि खेती ही उनकी जीविका है और उनका भी अपना परिवार है। जिस दिन हम किसानों को धुरी मानकर अपनी नीतियां बनाने लगेंगे उसी दिन से देश एक नये प्रगति पथ पर बढ़ चलेगा।

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