आज प्रपंच चबूतरे पर मैं पहुंचा तो चतुरी चाचा के साथ मुंशीजी और कासिम चचा कुर्सियों पर जमे थे। नदियारा भउजी चबूतरे से थोड़ी दूर पर खड़ी थीं। तीनों जन नदियारा भउजी से देश-दुनिया की बातें सुन रहे थे। नदियारा भउजी कोरोना महामारी के साथ आँधी, पानी, पाथर, हालाडोला व तूफान इत्यादि आपदाओं और आतंकवाद की बात कर रही थीं। वह काफी चिंतित थीं।
चतुरी चाचा बोले-बहुरिया, तुम ज्यादा टीवी न देखा करो। कुछ न्यूज चैनल वाले चिंता बढ़ा देते हैं। नदियारा भउजी कनवा-घूंघट के ओट से बोली-आगि लागय टीवी मा। टीवी तौ हम रामायण अउ महाभारत केरी खातिर देखित रहय बस। हमरे उई न्यूज लागवत हयँ। समाचार मा बैठय वाले बहुत चीखत-चिल्लात हयँ। हमार मुड़य पिराय लागत हय। यही खातिर हम रोजु दुई दांय अख़बार पढ़ित हय। हमका सगरी दुनिया केरी खबर रहत हय। अइसन नाय बीए पास कय लिया रहय। बसि, ई गांव वाले हमका कुछु नाहीं समझत हयँ। तबहीं तौ हमका परधानी मा सब मिलिकय हराय दिहिन रहय।
कासिम चचा बोले-नदियारा, तुम आने वाले पंचायत चुनाव में फिर खड़ी होना। इस बार तुम्हारी ही जीत होगी। घूरेलाल की प्रधानी से सब ऊब गए हैं। ग्राम पंचायत के तीनों गांव में उनका अंदरखाने में विरोध है। सब ऊपर-ऊपर उनकी जय-जयकार कर रहे हैं। मुंशीजी ने कासिम मास्टर की बात से सहमत होते हुए कहा- पिछले पंचायत चुनाव में घूरेलाल ने पानी की तरह रुपया बहाया था। उसने तीनों मजरों में महीने भर गोश्त-दारू की दावतें दी थीं। वोट पड़ने के पहले रात में नकद-नारायण बांटा था। उसने चार साल में सबकुछ बना लिया। इस बार उसकी पराजय तय है। नदियारा, तुम अभी से से जुट जाओ। हम लोग पूरी ताकत झोंक देंगे, जिससे हमारे मजरे में प्रधानी आ जाए।
नदियारा बोली-अरे भइय्या! पहिले सब जने कोरउना से निबटत जाव। सबके मुंह से मुशिक्का खुलय अउ छिन-छिन पय हाथ धोऊब बन्द होय। दुनिया भरिकी आफत यही साल आई हय। द्याखव, ई सबसे को-को बचति हय। परधानी कय अबहीं कौनिव बात न करव। इतना कहकर नदियारा भउजी अपने मायके रवाना हो गईं। उनका मायका गोमती नदी के उस पार है। इसी वजह से हम सब उनको नदियारा भउजी कहते हैं। तभी चंदू बिटिया गुनगुना नींबू पानी और तुलसी, अदरक, कालीमिर्च का काढ़ा लेकर आ गई।
हमने काढ़ा पीते हुए चतुरी चाचा से ककुवा व बड़के दद्दा के प्रपंच में शामिल न होने का कारण पूछा तो चतुरी चाचा बोले- आज दोनों जन तरबूज और लौकी बेचने मंडी गए हैं। अगली बतकही में वो लोग रहेंगे। कोरोना संकट और लॉकडाउन में खेती को बड़ा नुकसान हो गया। गेंहू, अरहर सहित अन्य फसलें बड़ी मुश्किल से कटकर घर आ सकीं। वहीं, बाजार बंद होने के कारण फल-सब्जियों की नकदी फसलें खेत में ही बर्बाद हो गईं। किसान पूरी तरह टूट गया। उधर, गांवों में अलग-अलग राज्यों से भारी मात्रा में मजदूर भी वापस आ रहे हैं। इनसे कोरोना संक्रमण की आशंका है। दूसरे इनकी रोजी-रोटी की समस्या खड़ी होगी। मनरेगा में कितने लोग खप जाएंगे?
हमने कहा-चाचा, कोरोना से भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में रोजी-रोटी का दिक्कतें पेश आ रही हैं। हर जगह लंबे समय तक लॉकडाउन रखना मजबूरी थी। अबतक दुनिया भर में करीब 60 लाख लोग कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं। साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोग बेमौत मारे जा चुके हैं। भारत में भी पौने दो लाख लोग कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं। अबतक करीब 5 हजार लोग मारे जा चुके हैं। कोरोना के चलते मोदी सरकार एक वर्ष पूरे करने का जश्न भी नहीं मना पा रही है। चतुरी चाचा ने मेरी बातों पर अपनी सहमति देते हुए बोले- निकट भविष्य में सब बहुत बढ़िया हो जाएगा। इसी के साथ आज की बतकही का समापन हो गया। मैं अगले रविवार को फिर प्रपंच चबूतरे की बतकही के साथ हाजिर रहूँगा। तबतक के लिए पँचव राम-राम!