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अंकों को अंतिम लक्ष्य ना बनाएं

    विजय गर्ग

सभी माता-पिता (All Parents) चाहते हैं कि उनका बच्चा टॉप करे, उनका नाम रोशन करे। एक अभिभावक यह चाहेगा ही, इसमें गलत कुछ नहीं है। गलत तब है, जब अंकों की यह भूख (Hunger For Marks) बच्चे की क्षमता से आगे (Beyond the Child’s Ability) निकल जाए। अगर पता है कि बच्चा ज्यादा अंक नहीं ला पाएगा, फिर भी दबाव बनाते हैं तो यह बहुत ही खतरनाक है। बच्चा क्या बनना चाहता है, उसे क्या पसंद है, वह क्या करना  चाहता है, माता-पिता सिर्फ इसी पर अपना फोकस करें। देखिए, नतीजे आपकी उम्मीदों से भी कहीं बेहतर आएंगे। आइए जानते है एक्सपर्ट्स से बच्चों में तनाव के कारण और इसके समाधान।

अंकों के तनाव को दिमाग से हटा दें, बेहतर आएंगे नतीजे परीक्षाओं का मौसम आ चुका है। इस समय विद्यार्थियों में तनाव का होना लाजिमी है, लेकिन जब यह मान लिया जाता है कि अंक न हों तो कुछ नहीं तब यह तनाव खतरनाक मोड़ पर पहुंच जाता है। अंक महत्वपूर्ण जरूर हैं, पर जिंदगी नहीं।

अंक जिंदगी का आधार नहीं हो सकते हर बच्चा चाहता है कि वह टॉप करे जो अच्छी बात है, लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि हर बच्चा तो टॉप नहीं कर सकता। तो फिर कहीं ऐसा तो नहीं है कि अंकों की इस अंधी दौड़ में आप कुछ खो रहे हैं? क्या खो रहे हैं, इसका आपको शायद अंदाजा भी नहीं है। विद्याथियों और उनके अभिभावकों, दोनों को यह समझना जरूरी है कि अंक ही जीवन का आधार नहीं हो सकते। जीवन बहुत बड़ा है और बहुत कुछ देता है। इस दौड़ को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने देना है। बस मन और शांत दिमाग से पढ़ाई करनी है और हमेशा सकारात्मक रहना है। आपका खुद पर विश्वास होना बहुत जरूरी है और यह विश्वास तभी बनेगा जब आप अच्छी तरह से पढ़ाई कर पाओगे, अंकों को दिमाग़ में रखे बगै़र।

‘गोलपोस्ट’ तो कहीं और है अंकों का संबंध शैक्षणिक प्रदर्शन से जरूर है। हो सकता है अच्छे अंकों से आपको किसी अच्छे संस्थान में दाखिला मिल जाए, लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि इसका संबंध आपकी प्रतिभा से बिल्कुल भी नहीं है। इसके मायने यह हैं कि कम अंक आपकी उस प्रतिभा को नहीं रोक सकते, जिसके लिए आप बने हैं। दुनिया के सभी सफल और महान लोगों को देखिए। कोई भी ऐसा नहीं है, जिसने टॉप किया है बल्कि कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो अपनी पढ़ाई ही पूरी नहीं कर सके, फिर भी दुनिया के अमीरों की सूची में शीर्ष पर आए। ऐसा इसलिए क्योंकि उनका लक्ष्य अंकों पर नहीं था, उनके अपने गोल पर था। इसलिए अच्छे अंक लाने की कोशिश जरूर करें, लेकिन यही अंतिम लक्ष्य न हो।

अपनी क्षमता पर ध्यान दें हर बच्चा पढ़ने में अच्छा ही हो, जरूरी नहीं है। हर बच्चा अच्छे अंक ला सके, यह भी जरूरी नहीं है। हर बच्चा आईआईटी, मेडिकल एग्जाम या इसी तरह की एग्जाम क्रैक कर सके, यह भी जरूरी नहीं। तो ऐसे बच्चे क्या करें? ध्यान रहे, ईश्वर ने हर व्यक्ति को एक अद्वितीय क्षमता के साथ पैदा किया है, जो अंकों पर आधारित नहीं होती। बस, अपनी उस क्षमता को पहचानकर आगे बढ़ने की जरूरत है। शुरुआती परीक्षा का परिणाम आपके भविष्य को निर्धारित नहीं करता, इसलिए अंक कैसे भी आएं, आप क्या करना चाहते हैं, इस पर पूरा फोकस होना चाहिए।

अंकों के तनाव को पहचानें ताकि मदद कर सकें छात्र जीवन और परीक्षा का साथ तो हमेशा-हमेशा का है और इसे अलग भी नहीं किया जा सकता। लेकिन आजकल ‘परीक्षा का भय’और ‘अंकों का तनाव’बढ़ता ही जा रहा है। अकादमिक प्रदर्शन को लेकर बच्चे के साथ उनके अभिभावक भी बहुत चिंतित दिखाई देते हैं। दसवीं और बारहवीं की परीक्षा को तो जीवन-मरण के रूप में देखा जा रहा है। बच्चे के ऊपर अपनी पढ़ाई के दबाव और अपने भविष्य से जुड़े अनेक सवालों के साथ ही माता-पिता की अपेक्षाओं का ज्यादा दबाव रहता है। सालों से सीबीएसई की काउंसलर होने के कारण मुझे परीक्षा और अंकों के कारण बच्चों व अभिभावकों में होने वाले तनाव को काफी नजदीक से देखने का मौका मिला है।

कैसे पहचानें कि बच्चा तनाव में है? तनाव एक मानसिक अनियमितता है, जिसमें बच्चे में उदासीनता, हीन विचार, किसी भी कार्य को करने में अरुचि, नींद में गड़बड़ी, भूख की कमी, थकावट और एकाग्रता का अभाव देखने को मिलता है। यदि बच्चा किसी काम में दिलचस्पी नहीं ले रहा, उसकी ऊर्जा का स्तर लगातार घटता जा रहा है और उसकी रोजमर्रा की जिंदगी बिल्कुल अस्त-व्यस्त हो रही है तो यह सब तनाव के लक्षण हो सकते हैं। तनाव ग्रस्त बच्चे अक्सर क्रोधित रहते हैं, बात-बात पर गुस्सा करना उनकी आदत में शामिल हो जाता है। तनाव के कारण इनका मूड अक्सर खराब रहता है और ये किसी से बात करने से कतराते हैं। बच्चे में नकारात्मक सोच बढ़ने लगती है और उसका आत्मविश्वास भी कम होने लगता है।

ऐसा क्या करें कि बच्चों पर अंकों का तनाव न हो? बच्चे में अंकों का तनाव न हो, इसकी जिम्मेदारी अभिभावक की है। जब बच्चे परीक्षा के कठिन दौर से गुज़र रहे हों तब अभिभावकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। प्रत्येक अभिभावक को अपने बच्चे के व्यवहार को समझना आवश्यक है और यदि बच्चे में तनाव के लक्षण दिखाई दें तो उचित समाधान करें। यदि तनाव के शुरुआती समय में इसकी पहचान कर ली जाए और आवश्यकतानुसार मनोवैज्ञानिक अथवा विशेषज्ञ की सलाह ले ली जाए तो बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है।

अभिभावक इस बात का दबाव नहीं बनाएं कि बच्चा हर समय पढ़ता ही रहे। बच्चे के मनोरंजन का भी ध्यान रखें। खासकर बच्चे को अपने दोस्तों से मिलने के लिए प्रेरित करें।
कई अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि फिजिकल एक्टिविटीज तनाव को कम करने में मददगार होती है। तो पढ़ाई के बीच भी बच्चे को शाम के समय कुछ देर के लिए घर से बाहर निकलकर शारीरिक व्यायाम करने के लिए प्रेरित करें।

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