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इन वजहों से जिद्दी बन जाता है बच्चा, आप भी रखें ध्यान

बच्चों का जिद्दी होना एक आम समस्या है, जिससे कई माता-पिता जूझते हैं। बचपन में अगर बच्चों की इस आदत पर ध्यान न दिया जाए, तो यह भविष्य में बड़ी चुनौती बन सकती है। बच्चों का व्यवहार उनके विकास, माहौल और परवरिश पर निर्भर करता है। बच्चों का जिद्दी स्वभाव उनके माहौल और परवरिश का परिणाम होता है। माता-पिता का धैर्य, समझ और प्यार बच्चे के व्यवहार को सुधारने में मदद कर सकता है। बच्चे के साथ दोस्ताना व्यवहार करें, उसकी भावनाओं का सम्मान करें और अनुशासन के महत्व को सिखाएं। आइए जानते हैं कि किन कारणों से बच्चे जिद्दी बन जाते हैं और माता-पिता को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

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इन वजहों से जिद्दी बन जाता है बच्चा, आप भी रखें ध्यान
अत्यधिक लाड़-प्यार

जब बच्चे की हर बात मानी जाती है तो वह धीरे-धीरे जिद करने लगता है। उसे यह विश्वास हो जाता है कि जिद करने से उसकी हर मांग पूरी हो जाएगी। जरूरत से ज्यादा बच्चों को छूट देने से भी वह जिद्दी हो जाते हैं। माता पिता को चाहिए कि वह बच्चों को अनुशासन का महत्व समझाएं। प्यार के साथ सीमाएं तय करें। साथ ही बच्चों की हर बात पर हां कहने के बजाए ना कहना भी सीखें।

माता-पिता की असहमति और मतभेद

अगर माता और पिता किसी बात पर एकमत नहीं होते और बच्चे के सामने एक-दूसरे की बात काटते हैं, तो बच्चा इस स्थिति का फायदा उठाकर जिद्दी बन सकता है। वह जैसा अपने अभिभावक के बीच जिद का स्तर देखता है, वैसा ही अपने जीवन में भी अपनाता है। माता-पिता को बच्चों के सामने एकजुट रहना चाहिए और एक जैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए।

अत्यधिक प्रतिबंध और कठोरता

कुछ माता-पिता बच्चों पर जरूरत से ज्यादा सख्ती बरतते हैं, जिससे बच्चे का स्वभाव जिद्दी हो जाता है। बच्चा सोचता है कि उसे अपनी बात मनवाने के लिए और जिद करनी होगी। हर बात पर बच्चे को नकारात्मक प्रतिक्रिया देने से वह जिद्दी बन जाता है। माता-पिता को चाहिए कि वह प्यार और अनुशासन के बीच संतुलन बनाएं। कठोर होने की बजाय बच्चे को समझा कर चीजें सिखाएं।

बच्चे की भावनाओं की अनदेखी

जब बच्चे की भावनाओं और इच्छाओं को लगातार नजरअंदाज किया जाता है, तो बच्चा जिद करना शुरू कर देता है। कई बार बच्चे माता-पिता का ध्यान आकर्षित करने के लिए जिद करते हैं। यह तब होता है जब माता-पिता बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दे पाते। अभिभावक बच्चे की भावनाओं को समझें, उनसे संवाद करें। उनकी बातों को ध्यान से सुनें और रोजाना बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं।

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