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फाइलेरिया नहीं भी है तब भी खानी है दवा

• 10 अगस्त से शुरू हो रहे एमडीए राउंड को लेकर जिला स्तरीय प्रशिक्षण आयोजित

• सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अभियान में रैपिड रिस्पांस टीम रहेंगी सक्रिय

• स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर खिलाएंगे फाइलेरिया से बचाव की दवा

औरैया। फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत आगामी 10 अगस्त से 28 अगस्त तक प्रस्तावित फाइलेरिया के सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अभियान को लेकर मंगलवार को ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षकों के जिला स्तरीय प्रशिक्षण आयोजित हुआ। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सुनील कुमार वर्मा की अध्यक्षता में दो अलग अलग बैच में ब्लॉक स्तरीय प्रशिक्षकों के साथ साथ शहरी क्षेत्र के प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों को एमडीए अभियान के अलावा 17 जुलाई से प्रस्तावित दस्तक पखवाड़े के बारे में भी प्रशिक्षित किया गया।

फाइलेरिया नहीं भी है तब भी खानी है दवा

फाईलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के नोडल व उप मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ राकेश सिंह ने बताया की फाइलेरिया जिसे हाथीपांव के नाम से भी जानते हैं एक लाइलाज बीमारी है। इसके संक्रमण से लिम्फोडिमा (हाथ, पैर, स्तन में सूजन) और हाइड्रोसील (अंडकोष में सूजन) हो जाता है। प्रबंधन के जरिये लिम्फोडिमा को नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है।

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इस बीमारी से बचाव के लिए पांच साल तक लगातार साल में एक बार फाइलेरिया रोधी दवा का सेवन आवश्यक है। बीमारी से बचाव के लिए दवा के सेवन और इसका संक्रमण फैलाने वाले मच्छरों से बचाव आवश्यक है। उन्होंने बताया की सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) अभियान के दौरान एएनएम, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को फाइलेरिया से बचाव की दवाएं अपने सामने ही खिलाएंगी। दवा खाने के बाद अगर जी मिचलाये या चक्कर आए तो घबराना नहीं है। यह लक्षण फाइलेरिया के परजीवी समाप्त होने के कारण सामने आते हैं जो स्वतः ठीक हो जाते हैं। जिले की शत प्रतिशत आबादी को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

फाइलेरिया नहीं भी है तब भी खानी है दवा

डॉ सिंह ने कहा कि अभियान से जुड़े प्रत्येक स्वास्थ्यकर्मी को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण दिया जाए। फाइलेरिया विश्व में दिव्यांगता का दूसरा सबसे बड़ा कारण है । एमडीए अभियान को मजबूती प्रदान कर सुनिश्चित किया जाए कि जिले में एक भी नया संक्रमण न फैलने पाए। दो वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को (गर्भवती और अति गंभीर बीमार लोगों को छोड़ कर) फाइलेरिया से बचाव की दोनों दवाएं खिलानी हैं। एक से दो वर्ष के बीच के बच्चों को सिर्फ पेट के कीड़े मारने की दवा दी जाएगी।

किसी को भी खाली पेट दवा नहीं खिलाई जाएगी। अभियान के लिए बनाई गई प्रत्येक टीम प्रतिदिन 25 घरों का विजिट कर कम से कम 125 लोगों को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाएगी। दवा सेवन कराने के पश्चात दायें हाथ की अंगुली पर मार्कर से निशान भी लगाया जाएगा। प्रत्येक दिन खिलाई गई दवा का विवरण ई कवच पोर्टल पर फीड करना अनिवार्य है। उन्होंने बताया की सभी ग्रामीण क्षेत्र के समस्त सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और शहरी क्षेत्र में रैपिड रिस्पांस टीम भी सक्रिय रूप से कार्य करेंगी।

फाइलेरिया नहीं भी है तब भी खानी है दवा

इस अवसर पर एसीएमओ आरसीएच डॉ शिशिर पुरी, वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के नोडल अधिकारी डॉ मनोज कुमार, डीपीएम, डीसीपीएम, पाथ संस्था के प्रतिनिधि डॉ अनिकेत कुमार, यूनीसेफ के डीएमसी नरेंद्र शर्मा और पीसीआई संस्था के प्रतिनिधि सुनील कुमार मुख्य तौर पर मौजूद रहे।

ढूंढे जाएंगे नये रोगी

डॉ सिंह ने बताया कि पहली बार 17 से 31 जुलाई तक प्रस्तावित दस्तक पखवाड़े के दौरान नये फाइलेरिया रोगी भी ढूंढे जाएंगे। नये हाथीपांव के मरीजों को एमएमडीपी किट दी जाएगी और रोग प्रबन्धन के तरीके सिखाए जाएंगे, जबकि हाइड्रोसील के मरीजों को सर्जरी की सुविधा दिलवाई जाएगी। एमडीए अभियान के दौरान पर नये रोगियों को ढूंढने पर जोर होगा।

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