मसालों में मिलावट की खबरें आपने खूब पढ़ी सुनी होंगी, मगर नकली जीरा बनाने की फैक्ट्री के बारे में शायद इससे पहले न सुना हो. जी हां, बवाना पुलिस ने जीरा बनाने की फैक्ट्री पकड़ी है. इसे जंगली घास (जिससे फूल झाड़ू बनती है), गुड़ का शीरा और स्टोन पाउडर से बनाया जा रहा था. नकली जीरा दिल्ली ही नहीं बल्कि गुजरात, राजस्थान, यूपी व अन्य शहरों में बड़ी मात्रा में सप्लाई किया जाता था. बवाना पुलिस ने फैक्ट्री चला रहे पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया है.
आरोपियों की पहचान यूपी के जलालाबाद निवासी हरिनंदन, कामरान उर्फ कम्मू, गंगा प्रसाद, हरीश और पवन के रूप में हुई है. पुलिस ने फैक्ट्री से 19,400 किलो नकली जीरा, 5250 किलो स्टोन पाउडर, 1600 किलो फूल झाड़ू (जंगली घास) और 1225 किलो गुड़ का शीरा बरामद किया है. नकली जीरे को असली जीरे में 80:20 के अनुपात में मिलाकर लाखों रुपये में बेच दिया करते थे. नकली जीरे का पूरा नेटवर्क यूपी के जिला शाहजहांपुर के जलालाबाद से जुड़ा था.
डीसीपी गौरव शर्मा के मुताबिक, बवाना थाने में तैनात हेड कॉन्स्टेबल प्रवीण को इलाके में पूठखुर्द गांव में नकली जीरा बनने के बारे में जानकारी मिली थी. प्रवीण ने अफसरों को मामले की जानकारी दी. पुलिस ने खाद्य विभाग अफसरों को मामले की जानकारी दी. एसएचओ धर्मदेव की देखरेख में सब इंस्पेक्टर विजय दाहिया, विनोद, हेड कॉन्स्टेबल प्रवीण, देवेन्द्र कॉन्स्टेबल नितिन और दिनेश को गैंग का पर्दाफाश करने का जिम्मा सौंपा गया.
जांच टीम ने खसरा नंबर-154 गांव पूठखुर्द में छापेमारी कर सभी आरोपियों को नकली जीरा बनाते हुए गिरफ्तार कर लिया. मौके से भारी मात्रा में नकली जीरा और उसे बनाने वाला सामान भी जब्त कर लिया. आरोपियों ने खुलासा किया कि जलालाबाद व उसके आसपास एरिया में नकली जीरा बनाने का बड़ा नेटवर्क है.
आरोपियों से पूछताछ करने पर पता चला कि हरिनंदन होलसेल मार्केट व अपने मसाला कारोबारियों को बीस रुपये किलो में नकली जीरा बेचा करता था. आगे मसाला कारोबारी 100 रुपये किलो में खुला बेच देते थे. पुलिस को पता चला कि नकली जीरा बनाने के लिए सिर्फ तीन चीजों की जरूरत पड़ती है. सबसे पहले जंगली घास. यह घास नदियों के किनारे उगती है. इस घास की खासियत है कि इसमें जीरे के साइज की छोटी-छोटी हजारों पत्तियां चिपकी होती हैं. इस घास को फूल झाड़ू में भी इस्तेमाल किया जाता है. नकली जीरे के धंधे से जुड़े अधिकतर लोग जंगली घास को यूपी में नदियों व नहर किनारे से लाते हैं.
यूपी में 5 रुपये किलो में यह घास मिल जाती है. वहां से ट्रकों और ट्रैक्टरों में पशुओं के लिए या फूल झाड़ू बनाने की बताकर फैक्ट्री तक लाया जाता है. उसकी घास को झाड़ लिया जाता है. जिसमें से बड़ी मात्रा में जीरे के आकार की पत्तियां झड़ जाती हैं. गुड़ को गर्म कर उसका शीरा बना लिया जाता था. उसमें वहीं दाने डाल दिए जाते हैं. दोनों को मिलाने के बाद कुछ देर बाद बाहर निकाल दिया जाता है. फिर उसे सुखाया जाता है. जिसमें बाद में पत्थर का पाउडर मिलाया जाता है.
लोहे की बड़ी छलनी ली जाती है. मिक्स सामान को डालकर छलनी से छाना जाता है. जिसमें से नकली जीरा निकलता है. जिसको बाद में सुखाया जाता है. जीरे जैसा रंग आ जाए इसके लिए पत्थरों व स्लरी का पाउडर फिर से डाला जाता है. खास बात यह कि सामान्य जीरे की तरह इसमें किसी तरह की खुशबू नहीं होती. फैक्ट्री में मजदूरों को दो रुपये किलो के हिसाब से मजदूरी दी जाती है. नकली जीरे बनाने की फैक्ट्री चलाने के मास्टरमाइंड ज्यादातर यूपी के शाहजहांपुर स्थित जलालाबाद के हैं.