सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक बार ट्रायल कोर्ट से दंडित हो जाने के बाद दोषियों को जमानत देन पर विचार नहीं किया जा सकता। ट्रायल में दंडित होने के बाद वे निर्दोष होने की मान्यता खो देते हैं, इस मान्यता का अपील पर सुनवाई करते हुए और जमानत देते हुए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
दंडित ठहराये जाने के बाद निर्दोष होने की मान्यता समाप्त हो जाने को देखते हुए हत्या जैसे गंभीर अपराधों में जमानत देते समय हाईकोर्ट को बेहद धीमा होना चाहिए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड तथा एमआर शाह की पीठ ने ये सामान्य निर्देश इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हत्या के चार दोषियों को दी गई जमानत के मामले में दिए।
हाईकोर्ट ने इस आधार पर दोषियों को जमातन दे दी थी कि दोषी ठहराए जाने के फैसले के खिलाफ उनकी अपील हाईकोर्ट में लंबित हैं। ट्रायल कोर्ट ने चारों को उम्रकैद की सजा दी थी। इस मामले हाईकोर्ट ने यह भी नहीं देखा कि दोषी ठहराए जाने के बाद दोषी कुछ ही दिन जेल में रहे थे।
वहीं कोर्ट ने यह भी स्पष्ट नहीं किया था कि मामला लंबित रहने के दौरान उन्हें छोड़ा जा रहा है जबकि उन्होंने मुकदमे की जांच के दौरान उसे प्रभावित करने और पटरी से उतारने की कोशिश भी की थी। साथ ही पोस्टामार्टम की रिपोर्ट से छेड़छाड़ की करवाई थी।
हालांकि इससे कुछ दिन पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि उन दोषियों को हाईकोर्ट को जमानत पर रिहा करना चाहिए जिन्होंने अपने जुर्म की आधी से ज्यादा सजा जेल में काट ली है। या ऐसे अभियुक्त जो 60 वर्ष से ऊपर के हैं, उन्हें जामनत दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट इस हफ्ते के शुरू में ही आगरा और वाराणसी की जेलों में बंद उम्रकैद की सजा काट रहे 97 दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया था। ये दोषी 14 वर्ष से ज्यादा जेल में गुजार चुके थे जबकि आईपीसी, 1860 की धारा 55 के अनुसार उनकी उम्रकैद की सजा 14 साल से ज्यादा नहीं हो सकती। कोर्ट ने यूपी सरकार को आदेश दिया था कि वह 14 साल की सजा काट चुके लोगों को रिहा करने की नीति भी बनाए।