मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी घोषणा की है कि वह भी अपने यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिन्दी में कराने की तैयारी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में कराये जाने का साहसिक निर्णय लिया है उसका अनुसरण अन्य राज्यों में भी होना जरूरी है।
फिलहाल तो मध्य प्रदेश पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में शुरू हो रही है। यह अच्छी बात है कि जब हमारे यहां अपनी मातृ भाषा में पढ़कर डाक्टर इंजीनियर बाहर निकलेंगे तो उनका आम जनता से जुड़ाव भी बेहतर तरीके से हो सकेगा। इसी लिए मध्य प्रदेश सरकार के फैसले का स्वागत हो रहा है। जश्न भी मनाया जा रहा है,लेकिन सवाल यह है कि यह सब तो आजादी के बाद ही हो जाना चाहिए था,इसके लिए 75 वर्षो तक यदि इंतजार करना पड़ा तो इसका जिम्मेदार कौन है। क्या यह सच नहीं है कि 1947 में हमें अंग्रेजों की गुलामी से भले ही आजादी मिल गई थी,लेकिन दो सौ वर्ष की गुलामी का असर आज भी हमारी मानसिकता और रहन-सहन पर हावी है।
इसकी सबसे बड़ी कीमत हमारी मातृ भाषा हिन्दी और तमाम राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं को चुकानी पड़ी। निश्चित रूप से आजादी के पश्चात हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए हमारे सिस्टम और उस दौर की सरकारों को भूमिका भी अच्छी नहीं रही होगी,नहीं तो हालात ऐसे नहीं होते। अपने ही देश में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए जब हिन्दी पखवाड़ा मनाना पड़े तो समझा जा सकता है कि हिन्दी के प्रति हमारी कैसी उदासीनता रही होगी।
हिन्दुस्तान में अंग्रेजी योंही नहीं फलीफूली। अपने देश में आम धारणा है कि देश पर शासन करने के लिए या फिर रोजी-रोजगार और समाज में आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी मील का पत्थर साबित होती है,जिसका आना जरूरी हैं। यह सोच सरकार में बैठे हुक्मरानों ने बनाई तो अन्य लोग इसके पीछे चल पड़े।
आज भी भारत में अंग्रेजी बोलने-जानने वालों को आसानी से नौकरी मिल जाती है। उनका वेतन भी अन्य भाषा भाषियों से अधिक होता है। अंग्रेजी में धाराप्रवाह होने से पुरुषों के वेतन में 34 प्रतिशत और महिलाओं के वेतन में 22 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो जाती है। लेकिन ये प्रभाव अलग-अलग होते हैं।अधिक आयु वाले और अधिक शिक्षित श्रमिकों के लिए प्रतिफल(फायदा) अधिक हैं और कम शिक्षित तथा कम आयु के श्रमिकों के लिए ये प्रतिफल कम हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि अंग्रेजी कौशल और शिक्षा के बीच समय के साथ मजबूत हुई है।
गौरतलब हो भारत एक बहुभाषी देश है जहां हजारों भाषाएं हैं। इनमें से 122 भाषाओं के मूल भाषी 10,000 से अधिक हैं (2001 की जनगणना के अनुसार) और बोलने वालों की संख्या के हिसाब से भारत में भाषाओं की सूची में अंग्रेजी 44वें स्थान पर है। एक सर्वे के अनुसार अपने देश में पांच में से एक भारतीय वयस्क अंग्रेजी बोल सकता है। चार प्रतिशत अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोल सकते हैं और अतिरिक्त 16 फीसदी अंग्रेजी में थोड़ी-बहुत बातचीत कर सकते हैं। अंग्रेजी बोलने की क्षमता पुरुषों में अधिक होती है। 26 प्रतिशत पुरुष थोड़ी-बहुत अंग्रेजी बोल सकते हैं जबकि महिलाओं में यह आकड़ा 14 फीसदी है। तथाकथित उच्च जातियों, शहरी निवासियों, युवा और बेहतर शिक्षित आबादी से संबंधित लोगों के लिए भी यही सच है। ऐसे व्यक्ति जिनके पास कम से कम स्नातक की डिग्री है, उनमें से लगभग 89 प्रतिशत लोग अंग्रेजी बोल सकते हैं जबकि जिन्होंने 5-9 साल की स्कूली शिक्षा पूरी की है, उनमें से केवल 11 परसेंट लोग ही अंग्रेजी बोल सकते हैं। उन लोगों के लिए यह प्रतिशत लगभग शून्य है, जिनकी स्कूली शिक्षा चार साल से कम है। इसका कारण यह है कि भारत के कई सार्वजनिक विद्यालय केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए त्रिभाषा सूत्र का पालन करते हैं, जिसके अनुसार आम तौर पर अंग्रेजी भाषा का शिक्षण मिडिल स्कूल स्तर पर आरंभ होता है।
चूंकि देश पूर्व में एक ब्रिटिश उपनिवेश था, इसलिए अंग्रेजी संघ सरकार की एक राजभाषा और इसके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा का माध्यम बनी हुई है। इसलिए सरकारी अधिकारी या शिक्षक होने के लिए (निम्न स्तरों के अलावा), व्यक्ति को अंग्रेजी में प्रवीण होना चाहिए।
भारत में ये नौकरियां आकर्षक मानी जाती हैं क्योंकि ये सफेदपोश नौकरियां हैं जो सुरक्षित रोजगार और अच्छे लाभ प्रदान करती हैं। इसके अलावा, उदारीकरण के बाद के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आउटसोर्सिंग के तेजी से विस्तार होने के कारण अंग्रेजी भाषा-कौशल का महत्त्वपूर्ण होना और भी अधिक आकर्षक हो गया है। इसके बावजूद आश्चर्यजनक रूप से भारत में अंग्रेजी कौशल के लिए वेतन प्रतिफल का कोई अनुमान नहीं है।
बहरहाल, अंग्रेजी के वर्चस्व के बीच मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ऐलान किया है कि उनके यहां भी मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी में करवाई जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया कि उत्तर प्रदेश में कुछ मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबों का हिंदी में अनुवाद किया गया है। आने वाले एकेडमिक ईयर से इन प्रोग्राम्स के सब्जेक्ट को यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि इन्हें हिंदी में भी पढ़ा जा सके।
बात जहां तक शिवराज सिंह चौहान सरकार की है तो उसको इसके लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए कि उसके प्रयासों से देश में पहली बार मध्य प्रदेश में चिकित्सा की पढ़ाई हिंदी में शुरू होने जा रही है। इस प्रयोग की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी, क्योंकि कई देशों में जिसमें चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस,रूस जैसे देश विकसित देश शामिल हैं, अपनी भाषा में उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।उनके सामने कहीं कोई भाषा की रूकावट नहीं आ रही है। अच्छा होता कि भारत में इसकी पहल स्वतंत्रता के बाद ही की जाती,फिर भी देर आए दुरूस्त आए।
आजादी के बाद की सरकारों ने यदि समय रहते हिन्दी में शिक्षा की महत्ता को समझ लिया होता तो आज जैसे हालात कभी नहीं बनते। संभवतः आज उच्च शिक्षा की पढ़ाई हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में हो रही होती। देर से ही सही, चिकित्सा की हिंदी में पढ़ाई का शुभारंभ भारतीय भाषाओं को सम्मान प्रदान करने की दृष्टि से एक मील का पत्थर है। इस प्रयोग की सफलता के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। साथ ही जो शुरुआत मध्य प्रदेश से हो रही है वह देश भर में तेजी से आगे बढ़े। यह उत्साहजनक है कि चिकित्सा के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिंदी में शुरू करने के कदम उठाए जा रहे हैं। अन्य राज्यों की सरकारों को भी राजनैतिक मतभेद भुलाकर तकनीकी और चिकित्सा की पढ़ाई के लिए हिन्दी को बढ़ावा देना चाहिए।
इसके अलावा कानून, विज्ञान, वाणिज्य आदि विषयों की पढ़ाई हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में शुरू करने का प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि हिन्दी या क्षेत्रीय भाषा आमजन के जुड़ाव की भाषा है। जब अन्य अनेक देशों में अपनी मातृ भाषा में पढ़ाई हो सकती है तो भारत में क्यों नहीं ऐसा हो सकता। आवश्यकता है तो वैसी इच्छाशक्ति की जैसी केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने दिखाई। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा की पढ़ाई में प्रारंभ में कुछ समस्याएं आ सकती हैं, लेकिन उनसे आसानी से पार पाया जा सकता है। इस क्रम में इस पर विशेष ध्यान देना होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता न होने पाए।
लब्बोलुआब यह है कि मातृभाषा में पढ़ाई की महत्ता किसी से छिपी नहीं। कई देशों ने यह सिद्ध किया है कि मातृभाषा में उच्च शिक्षा प्रदान कर उन्नति की जा सकती है। मातृभाषा में शिक्षा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि एक तो छात्रों को अंग्रेजी में दक्षता प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा नहीं खपानी पड़ती और दूसरे वे पाठ्य सामग्री को कहीं सुगमता से आत्मसात करने में सक्षम होते हैं। इसी के साथ वे स्वयं को कहीं सरलता से अभिव्यक्त कर पाते हैं।
इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि एक बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली छात्रों को भी चिकित्सा, इंजीनियरिंग एवं ऐसे ही अन्य विषयों की पढ़ाई में अंग्रेजी की बाधा का सामना करना पड़ता है। चिकित्सा, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई की सुविधा प्रदान करते समय इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि भाषा सहज-सरल हो और उसमें अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग करने में संकोच नहीं दिखाया जाए।कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा पूरी तरह से आमजन की बोली में हो।हिन्दी में उच्च शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो गया तो कई ऐसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आएंगी जो अंग्रेजी के अभाव में अपनी प्रतिभा को कहीं उजागर नहीं कर पाते हैं।