भारत में कोरोना वायरस की दो वैक्सीन कोवैक्सीन (COVAXIN) और कोविशील्ड (Covishield) को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है. वैसे तो ये दोनों वैक्सीन कोरोना वायरस पर काम करेंगी लेकिन ये दोनों एक-दूसरे से कई चीजों में अलग है. आइए जानते हैं इन दोनों वैक्सीन की खासियत के बारे में.
कोवैक्सीन– कोवैक्सीन को भारत बायोटक (Bharat Biotech) ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर बनाया है.
वैक्सीन प्लेटफॉर्म– कोवैक्सीन इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है. बीमारी पैदा करने वाले वायरस को निष्क्रिय करके ये वैक्सीन बनाई गई है.
ट्रायल– जानवरों पर हुए ट्रायल के अलावा कोवैक्सीन के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल में 800 वॉलंटियर्स ने हिस्सा लिया था जबकि तीसरे चरण का ट्रायल 26000 लोगों पर किया गया है.
ट्रायल के नतीजे– कोवैक्सीन का एफिकेसी डेटा अभी तक जारी नहीं किया गया है. कंपनी का कहना है कि तीसरे चरण का एफीकेसी डेटा (Efficacy data) मार्च के अंत तक आएगा. इसके बाद इसकी रेगुलेटरी मंजूरी ली जाएगी. कंपनी इसका चौथा चरण भी जारी रखेगी जिसमें कुछ सालों तक प्रतिभागियों की निगरानी की जाएगी.
कोविशील्ड– कोविशील्ड वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) ने ब्रिटिश-स्वीडिश कंपनी एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) के साथ मिलकर बनाई है. भारत में सीरम इंस्टीट्यूट इनका मैन्युफैक्चरिंग और ट्रायल पार्टनर है.
वैक्सीन प्लेटफॉर्म– कोविशील्ड चिम्पांजी एडेनोवायरस वेक्टर पर आधारित वैक्सीन है. इसमें चिम्पांजी को संक्रमित करने वाले वायरस को आनुवांशिक तौर पर संशोधित किया गया है ताकि ये इंसानों में ना फैल सके. इस संशोधित वायरस में एक हिस्सा कोरोना वायरस का है जिसे स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) कहा जाता है. ये वैक्सीन शरीर में इम्यून रिस्पॉन्स बनाती है जो स्पाइक प्रोटीन पर काम करता है. ये वैक्सीन एंटीबॉडी और मेमोरी सेल्स बनाती है जिससे Covid-19 के वायरस को पहचानने में मदद मिलती है.
ट्रायल- सीरम इंस्टीट्यूट ने 23,745 से अधिक लोगों पर पहले चरण का क्लिनिकल ट्रायल किया है. नतीजों में इसे 70.42 फीसदी प्रभावकारिता वाला बताया गया है. इसके दूसरे और तीसरे चरण का ट्रायल 1600 लोगों पर अभी भी चल रहा है.