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‘ए कंट्री कॉल्ड चाइल्डहुड’ मैंने बतौर लेखक लिखी है न कि बतौर सिलेब्रिटी : दीप्ति नवल

लखनऊ। प्रेम का आदर्श तो अमृता और इमरोज थे और मुझे लगता था रिश्ते ऐसे ही होने चाहिए ये मानना है प्रसिद्ध अभिनेत्री दीप्ति नवल का मौका था होटल हयात में फिक्की फ्लो द्वारा आयोजित उनके साथ संवाद कार्यक्रम का। इस संवाद कार्यक्रम को यतीन्द्र मिश्र ने संचालित किया। दीप्ति नवल ने अपने बचपन से अभी तक के सफर के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि मैं अक्सर अमृताजी के यहां जाती थी। बड़ा प्यारा सा रिश्ता था उन दोनों के बीच। हालांकि ‘एक मुलाकात’ नाम का जो मैंने प्ले किया, वह अमृता और साहिर को लेकर है। लेकिन निजी तौर पर मैं अमृता और इमरोज की प्रेम कहानी को एक आदर्श की तरह देखा करती थी।

प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री दीप्ति नवल जब बच्ची थीं तो अपनी नानी से बार-बार चीनी मांगतीं। नानी मना कर देतीं तो कहतीं, फिर नमक ही दे दो। अपनी नई किताब ‘ए कंट्री कॉल्ड चाइल्डहुड’ में उन्होंने ऐसी ही अपनी ढेरों यादें सहेजी हैं। मशहूर कवयित्री अमृता प्रीतम से भी उनकी बड़ी अच्छी बनती थी। दीप्ति नवल स्वयं भी कवयित्री हैं। साहित्य, कला, बचपन और संस्मरणों पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि अमृता प्रीतम से मुझे #बासु-भट्टाचार्य ने मिलवाया था। हम लोग इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल के दौरान जब सिरी फोर्ट में थे, तब बासु दा ने कहा कि मैं तुम्हें अमृता जी से मिलवाना चाहता हूं।

बासु दा अमृता जी को बहुत अच्छी तरह जानते थे, तो वह मुझको अमृता जी से मिलवाने दिल्ली में उनके घर ले गए। वहां बासु दा ने ऐसे ही बोल दिया कि यह लड़की वैसे तो न्यूयॉर्क से है, लेकिन अच्छी-खासी उर्दूआईज्ड हिंदुस्तानी में कविताएं भी लिखती है। तब अमृता जी बोलीं, ‘तो कुछ सुना फिर।’ मैंने उनसे कहा कि अभी तो एक ही कविता याद है। दस दिन में वापस आना है एक शूट पर, तो उस वक्त अपनी डायरी लाऊंगी और आपको सुनाऊंगी। अगली ट्रिप में मैंने उनको अपनी कविताएं सुनाईं तो उन्होंने फौरन अपने पब्लिशर को फोन किया। बोलीं कि ये लड़की तो लिखती है और इसकी इमेजरी बहुत अच्छी है। आप इसकी नज्में छापो।

अपनी किताब के बारे में उन्होंने कहा कि यह काम मैंने करीब इक्कीस साल पहले शुरू किया था। तब सिर्फ चार चैप्टर लिखे थे। वे चैप्टर्स थोड़े लंबे वाले थे। तभी पता चला कि ऐसे नहीं हो पाएगा। इसमें बहुत सारी इंफॉर्मेशन कलेक्ट करनी है, बहुत सारी रिसर्च करनी होगी, कई चीजें क्रॉस चेक करनी पड़ेंगी। तब वह प्रॉसेस स्टार्ट हुई और एक याद से दूसरी याद ट्रिगर होने लगी। तभी लग गया था कि यह कोई रातोंरात लिख ली जाने वाली किताब नहीं होगी। तो काम चलता रहा, थोड़ा रुक-रुक कर। लगकर काम तो पिछले पांच सालों में हुआ। इसमें पैंडेमिक का बड़ा रोल मैं मानती हूं।

उन्होंने बताया कि इस किताब को मैंने आत्मकथा की तरह नहीं लिखा है। ऐसा नहीं कि अभी मैं बचपन के बारे में लिख रही हूं तो आगे चल के कॉलेज लाइफ और फिर फिल्म लाइफ। ऐसा मैंने नहीं सोचा। मुझे लगा कि मेरी लाइफ का जो सबसे ज्यादा शेयर करने लायक है- वह बचपन है। फिर मैं सई परांजपे से मिली, फिर ऋषि दा ने मुझे बासु दा से मिलवाया। फिर मैंने पंचवटी की। तब तक मेरी वह फिल्म हिट हो चुकी थी। मतलब अब मुझे आत्मकथा लिखना ही नहीं था, क्योंकि वह मुझे उतना आकर्षित नहीं करती। वह फ्लैट राइटिंग है। मैं सोच रही थी कि बतौर लेखक मैं खुद को अगले लेवल पर कैसे लेकर जाऊं। मैं पहले कविताएं लिखती थी। फिर मैंने शॉर्ट स्टोरीज की एक किताब लिखी, जिसमें मुझे प्रोज लिखने में भी बहुत मजा आया।

मैं यह बिलकुल नहीं चाहती थी कि कुछ ऐसा लिखा जाए कि जब हम बच्चे थे तो हम ऐसा करते थे, या वैसा करते थे। मैं इसे एक स्क्रिप्ट की तरह ट्रीट करना चाह रही थी, जिसमें मैं एक सीन, फिर दूसरा, फिर तीसरा सीन दिखाते हुए अपने रीडर को साथ लेकर चल रही हूं। यह कहानी बचपन से होती हुई टीनेज खत्म होने के साथ खत्म हो जाती है। यानी मेरी 19 साल की उम्र तक जब मेरे पिता अमेरिका चले गए और अमृतसर का एक अध्याय पूरा हुआ। यह किताब मैंने बतौर लेखक लिखी है न कि बतौर सिलेब्रिटी। क्योंकि बतौर लेखक, जब तक मैं लिटरेरी कंटेंट नहीं बना पाती। मैं हमेशा अपने बचपन के बारे में एक राइटर के तौर पर ही लिखना चाहती थी। अपनी किताब में #दीप्ती-नवल ने गोल्डन टेम्पल और जालियांवाला बाग का भी जिक्र किया है। हालांकि किताब लिखते समय वे इन दोनों ही जगहों पर नहीं गईं क्योंकि वे बचपन की यादों के साथ ही उसे लिखना चाहती थीं। इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “मैं सच्चाई लिखना चाहती थी. मुझे जिस तरह से याद है, मैं उसे वैसे ही लिख पाऊं। कुछ नया देख कर मेरी मेमोरी कहीं धुंधली न हो जाए। जैसा मैंने बचपन में जैसा अनुभव किया था वैसे ही लिखना चाहती थी। किताब जब खत्म हो गई फिर मैं गोल्डन टेम्पल देखने गई”।

साथ ही दीप्ति नवल ने बताया कि उन्हें फिल्में देखने का भी बहुत शौक था। वे बचपन में माता-पिता के साथ फिल्में देखने जाया करती थीं। इस कार्यक्रम में फिक्की फ्लो लखनऊ चैप्टर की चेयरपर्सन सिमू घई, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी संगीता सिंह, सीनियर वाइस चेयर स्वाति वर्मा, पूजा गर्ग, माधुरी हलवासिया, सवनित गुरनानी, अंजू नारायण,पूजा गर्ग ,विभा अग्रवाल, वंदिता अग्रवाल सहित कई सदस्यों ने भाग लिया।

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