जिस दौर की पत्रकारिता की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता पर ढेरों सवाल हों, ऐसे समय में हेमन्त शर्मा की उपस्थिति हमें आश्वस्त करती है कि सारा कुछ खत्म नहीं हुआ है। सही मायने में उनकी मौजूदगी हिन्दी पत्रकारिता की उस परंपरा की याद दिलाती है, जो बाबूराव विष्णुराव पराड़कर से होती हुई राजेन्द्र माथुर और प्रभाष जोशी तक जाती है।
देश के जाने-माने पत्रकार में शुमार हेमन्त शर्मा का पूरा जीवन रचना, सृजन और संघर्ष का अनूठा उदाहरण रहा है। बनारस में जन्मे शर्माजी सही मायने में पत्रकारिता क्षेत्र में शुचिता और पवित्रता के जीवंत उदाहरण हैं। वे एक अध्येता, लेखक, दृष्टि संपन्न संपादक, मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रेरक छवि रखते हैं। भारतीय जीवन मूल्यों और पत्रकारिता के उच्च आदर्शों को जीवन में उतारने वाले हेमन्त शर्मा ने राजनीति के शिखर पुरुषों से रिश्तों के बावजूद कभी कलम को ठिठकने नहीं दिया। उन्होंने वही लिखा और कहा जो सच था।
जनसत्ता से आपने अपनी पत्रकारीय पारी की एक सार्थक शुरुआत की। हिन्दुस्तान में समूह संपादक के रूप में अपनी सेवाएं देने के उपरांत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ओर रुझान हुआ। इंडिया टीवी से जुड़ने के बाद चैनल को पत्रकारिता क्षेत्र में शिखर तक पहुंचाया। वर्तमान में टीवी 9 भारतवर्ष में समाचार संपादक के पद को सुशोभित कर रहे है।
पहले प्रिंट और बाद में टेलीविजन पत्रकारिता में शोहरत बटोरने वाले शर्मा जी देश के मूर्धन्य शीर्ष पत्रकारों, राजनैतिक सामाजिक विश्लेषकों और स्वतंत्र टिप्पणीकारों में शामिल है। सहृदय, निर्भीक, निष्पक्ष, बेबाक और विशिष्ठ शैलीकार के रूप में पहचान रखने वाले शर्माजी ने व्यक्तित्व, लेखन और पत्रकारिता में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को मजबूत किया।
शर्मा जी ने तमाशा मेरे आगे, द्वितीयोनास्ती- यात्रा वृत्तांत, युद्ध में अयोध्या, अयोध्या का चश्मदीद, एकदा भारतवर्ष: सरीखे कई ग्रंथों का संपादन किया। आपकी सामाजिक सेवाओं और पत्रकारीय योगदान के लिए आपको कई सम्मानों से नवाजा गया है जिनमें उत्तर प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान यश भारती भी शामिल है। भारतीय पत्रकारिता की उजली परंपरा के नायक के रूप में हेमंत शर्मा आज भी निराश नहीं हैं, बदलाव और परिवर्तन की चेतना उनमें आज भी जिंदा है।