कुवैत की सरकार ने एक क़ानून का मसौदा तैयार किया है, जिसमें विदेशी लोगों को देश में काम करने की इजाज़त दी जाएगी. इस निर्णय से वहां पर काम कर रहे भारतीयों को बड़ी राहत मिलेगी, भारतीयों के लिए 15 फीसदी नौकरी का कोटा तय किया गया है. कुवैत अपने नागरिकों और बाहर से आए लोगों के बीच रोजग़ार का संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है.
अंग्रेज़ी अख़बार अरब न्यूज के अनुसार, नए क़ानून के तहत घरेलू कामगारों, गल्फ़ कॉर्पोरेशन काउंसिल के सदस्य देशों के नागरिकों, सरकारी ठेकों में काम करने वाले लोगों, राजनयिकों और कुवैती नागरिकों के रिश्तेदारों को कोटा सिस्टम से बाहर रखा जाएगा.
स्थानीय अख़बार कुवैत टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क़ानून का मक़सद दूसरे देशों के लोगों को कुवैत में नौकरी हासिल करने से रोकना है. हालांकि नियोक्ताओं को एक निश्चित संख्या में विदेशी लोगों को नौकरी देने की छूट दी गई है.
भारतीयों के लिए 15 फीसदी का कोटा
विदेशियों की भर्ती के लिए निर्धारित कोटा से ज़्यादा लोगों की भर्ती करने पर नियोक्ताओं के लिए जेल की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. प्रस्तावित क़ानून के तहत कुवैत में काम करने वाले भारतीय लोगों के लिए 15 फीसदी का कोटा तय किया गया है.
श्रीलंका, फिलीपींस, मिस्र के लिए दस-दस फ़ीसद का कोटा तय किया गया जबकि बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और वियतनाम के लिए पाँच-पाँच फ़ीसद का कोटा तय किया गया है. प्रस्तावित क़ानून का मसौदा कुवैत की मानव संसाधन विकास कमिटी के पास विचार के लिए भेजा गया है.
अरब न्यूज के अनुसार, कमिटी ने कहा है कि नए क़ानून के लागू हो जाने के बाद निर्धारित कोटा से ज़्यादा हो गए लोगों को अपने देश जाने के लिए नहीं कहा जाएगा, लेकिन उन देशों से नियुक्ति तब तक रुकी रहेगी जब तक कि ये निर्धारित कोटा के अनुरूप न हो जाए.
कुवैत में सबसे अधिक प्रवासी भारतीय
समझा जाता है कि वहां रहने वाले तकऱीबन 10 लाख प्रवासी भारतीयों में से आठ या साढ़े आठ लाख लोगों को बिल के पास होने की सूरत में वापस लौटना पड़ सकता है.
सऊदी अरब के उत्तर और इराक़ के दक्षिण में बसे इस छोटे से मुल्क की तकऱीबन 45 लाख की कुल आबादी में मूल कुवैतियों की जनसंख्या महज़ तेरह-साढ़े तेरह लाख ही है.
यहां रहने वाले मिस्र, फिलीपीन्स, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और दूसरे मुल्कों के प्रवासियों में सबसे अधिक भारतीय हैं. कुवैत की नेशनल एसेंबली में 50 सांसद चुनकर आते हैं. हालांकि माना जाता है कि वहां अमीर ही फ़ैसला लेने वाली भूमिका में हैं.
19वीं सदी के अंत से 1961 तक ब्रिटेन के संरक्षण में रहे कुवैत में भारतीयों का जाना लंबे समय से शुरू हो गया था. इस समय व्यापार से लेकर तकऱीबन सारे क्षेत्रों में वहां भारतीय मौजूद हैं, कुवैती घरों में ड्राइवर, बावर्ची से लेकर आया तक का काम करने वालों की संख्या साढ़े तीन लाख तक बताई जाती है. लोगों का मानना है कि जल्दी-जल्दी में दूसरे लोगों से उनकी जगह भर पाना इतना आसान न होगा.