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भाषा विवि में हुआ बज़मे अदब के तत्वावधान में साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन

लखनऊ। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय (Khwaja Moinuddin Chishti Bhasha University) के उर्दू विभाग में साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस साहित्यिक कार्यक्रम के अवसर पर प्रोफेसर फ़ख्ररे आलम (Professor Fakhre Alam) ने अपने अध्यक्षीय भाषण में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि ग़ज़ल का चमत्कार यह है कि यह उन विषयों को शुद्ध करती है जिनकी अभिव्यक्ति हमारे समाज में दोष मानी जाती है।

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इसीलिए ग़ज़ल के कवि ऐसे कई विषयों, भावनाओं और अनुभूतियों को ग़ज़ल के रूप में व्यक्त करते हैं जिन्हें किसी अन्य माध्यम से व्यक्त करना कठिन लगता है। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि ग़ज़ल बाहरी घटनाओं,समस्याओं और विषयों को आंतरिक भावनाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करके निर्मित की जाती है।

वास्तव में ग़ज़लें स्वयं को समझने से लेकर ब्रह्मांड को समझने तक का सफ़र तय करती हैं और पाठक को नई दुनिया की सैर कराती हैं। इसके साथ ही उन्होंने उर्दू ग़ज़ल के क्रमिक विकास पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। प्रोफेसर फ़ख़रे आलम ने कहा कि उर्दू ग़ज़ल के विकास का इतिहास बहुत ही रोचक और आश्चर्यजनक है।

इस इतिहास में कुछ ऐसे स्थान हैं जो यह साबित करते हैं कि ग़ज़ल की विकास यात्रा आलोचकों के इस विधा के प्रति असंतुलित रवैये के बावजूद जारी रही। उन्होंने कहा कि ग़ज़ल की दो पंक्तियों में अर्थों की एक दुनिया बसती है, जिसे केवल एक परिपक्व नज़र ही समझ सकती है जो ग़ज़ल की परंपरा और इस परंपरा से जुड़ी सभ्यता से परिचित हो, जो ग़ज़ल के चरित्र और सार को आकार देने में महत्वपूर्ण हैं।

प्रोफेसर फ़ख़रे आलम ने अमीर खुसरो और दक्कन के प्राचीन कवियों का उल्लेख करते हुए कहा कि उर्दू ग़ज़ल अपने आरंभ से ही कविता और साहित्य प्रेमियों के स्वाद को संतुष्ट करती रही है और जब यह परंपरा दिल्ली और लखनऊ के माध्यम से वर्तमान युग में पहुंची तो इस शैली ने शाब्दिक और अर्थ के स्तर पर इतनी विविधता प्राप्त कर ली कि यह हर युग की समस्याओं और मुद्दों की व्याख्या करने का एक प्रभावी साधन बन गई।

उन्होंने ग़ज़ल की रूमानी मधुरता को इसकी विशिष्टता बताते हुए कहा कि शायरी में विधाओं के स्तर पर जितने भी प्रयोग हुए, वे मधुरता के स्तर पर वह विशिष्टता हासिल नहीं कर सके जो उर्दू ग़ज़ल की नियति बन गई और भाषा के परिष्कार के बावजूद यह विशिष्टता आज भी इस विधा के लिए अद्वितीय है।

डॉ मोहम्मद वसी आज़म अंसारी ने बज़्मे अदब के उद्देश्यों पर बात करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन का मुख्य उद्देश्य छात्रों की साहित्यिक और काव्यात्मक रुचि को बढ़ाना है और साथ ही छात्रों के भीतर छिपे हुए प्रतिभाओं को बाहर निकालना है।

भाषा विवि में हुआ बज़मे अदब के तत्वावधान में साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन

उन्होंने बज़्मे अदब के सदस्यों को एक सुंदर और सार्थक उत्सव के आयोजन के लिए बधाई भी दी। इस साहित्यिक कार्यक्रम में हसन अकबर ने “अलामत, इस्तेआरा और तशबीह”, ताहिरा ख़ातून ने “समकालीन समय में उर्दू गज़ल गोई”, उर्फी खानम ने “उर्दू ग़ज़ल में अलामत निगारी” और अनवरी खान ने “ग़ज़ल के अहम मौज़ुआत” के विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किया।

इस कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में बीए, एमए और शोध छात्रों औन मोहम्मद, हसन अकबर, अलीशा रिज़वी मुहम्मद तरीफ, ज़ाकिर हुसैन, महवश, अनम अब्दुल्ला, आमना परवीन और निदा परवीन ने अलग-अलग कवियों की ग़ज़लों को पेश किया।

इस अवसर पर प्रो सौबान सईद, डॉ अकमल शादाब, डॉ आज़म अंसारी, डॉ ज़फरुन नकी, डॉ मुनव्वर हुसैन, डॉ सिद्धार्थ सुदीप, डॉ मूसी रज़ा और डॉ खेसाल ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और इस कार्यक्रम को सफल बनाया।

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