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Lucknow University: विक्रम संवत् 2082 सिद्धार्थी संवत्सर के कैलेंडर का हुआ विमोचन

लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो आलोक कुमार राय (VC Pro Alok Kumar Rai) ने संस्कृत तथा प्राकृत भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अभिमन्यु सिंह (Dr Abhimanyu Singh), ज्योतिर्विज्ञान विभाग के समन्वयक डॉ सत्यकेतु एवं ज्योतिर्विज्ञान विभाग के शिक्षकगण डॉ अनिल कुमार पोरवाल, डॉ अनुज कुमार शुक्ल, डॉ प्रवीण कुमार बाजपेई (Dr Praveen Kumar Bajpai) की उपस्थिति में सिद्धार्थ नामक संवत्सर (Siddharthi Samvatsara) के ज्योतिषशास्त्र आधारित तिथिपत्र (Calendar) का विमोचन किया। इस तिथिपत्र में ज्योतिषशास्त्र के पंचांगों- तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण का समावेश किया गया है।

भारत एक उत्सवधर्मी देश है भारत की उत्सव धर्मिता काल के अनादि प्रवाह में सतत गतिमान है त्रुटि, पल, विपल, कला, होरा, मुहूर्त, याम, तिथि, नक्षत्र, वार, मास, संवत्सर, युग, कल्प, मन्वन्तर आदि विभिन्न कोटियों में विभाजित काल की रेखाओं को भारतीय मनीषा ने बहुत सूक्ष्मता से देखा था। भारतीय ऋषियों आचार्यों ने अपने परिवेश का अध्ययन कर चंद्रमा की गति पर आधारित तिथियों, सूर्य की गति पर आधारित राशियों एवं पृथ्वी की गति पर आधारित दिन और रात का स्वरुप प्रस्तुत किया। काल गणना पद्धति केवल मात्र आंकड़े नहीं हैं अपितु उसके चारों ओर के परिवेश में प्रकृति में होने वाले परिवर्तन की साक्षात् सूचना है।

इस कैलेंडर में ज्योतिषशास्त्र से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों के चित्रों का प्रदर्शन किया गया है। यहाँ एक चित्र के माध्यम से ज्योतिष शब्द एवं ज्योतिषशास्त्र का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। अगले चित्र में ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक आद्य आचार्यों के नामों का स्मरण किया गया है। उसके आगे के चित्र में ज्योतिष शास्त्र के संहिता, होरा और सिद्धान्त नामक तीनों भेदों को चित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इसके अनन्तर का परिचय दिया गया है। काल के स्थूल और सूक्ष्म भेदों का भी चित्र के माध्यम से प्रदर्शन किया गया है।

ज्योतिष-शास्त्र में काल के सूक्ष्म से सूक्ष्म इकाई को त्रुटि कहा गया है और और वृहत्तम इकाई के रूप में प्रलय। का प्रदर्शन किया गया है तत्पश्चात्। इसी कैलेंडर में भू केंद्रिक ग्रहों की कक्षाओं के क्रम का प्रदर्शन किया गया है। यह कालांतर यही तिथि पत्र भू-भ्रमण के सिद्धांत का प्रामाणिक प्रदर्शन भी करता है। इसमें चित्र के माध्यम से याम्योत्तर वृत्त सिद्धान्त मैरीडियन को भी प्रदर्शित किया गया है। इसी को सामान्य व्यवहार में एएम ( anti meridiam) एवं पीएम ( post meridiam) के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके पश्चात् एक चित्र भू भ्रमण के सिद्धांत को बहुत ही प्रभावशीलता के साथ प्रदर्शित करता है।

इस तिथि पत्र में पृथ्वी, सूर्य एवं चन्द्रमा के कटान बिन्दुओं के आरोह एवं अवरोह को प्रदर्शित करने वाले राहू और केतु का प्रदर्शन भी चित्र के माध्यम से यहां किया गया है। आकाश में दृश्यमान वक्री ग्रहों के स्वरूप। को भी एक चित्र के माध्यम से दिखाया गया है। इस प्रकार से यह तिथिपत्र न केवल सामान्य रूप से भारतीय परंपरागत तिथियों का प्रदर्शन करता है अपितु ज्योतिष शास्त्र के वैज्ञानिक सिद्धान्तों का भी चित्रों के माध्यम से मानकीकृत स्पष्टीकरण देता है।

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