Lucknow। पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) से पहले एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी ने सतत ऊर्जा अनुसंधान (Sustainable Energy Research) में दो प्रमुख प्रगति की घोषणा की है। गन्ने के रस (Sugarcane Juice) से सीधे हरित हाइड्रोजन (Green Hydrogen) उत्पन्न करने की एक अनोखी प्रक्रिया और एग्रो-वेस्ट आधारित हेटेरोजीनियस कैटालिस्ट (Heterogeneous Catalysts) का उपयोग करते हुए बायोडीजल उत्पादन (Biodiesel Production) के लिए एक अभिनव बैच रिएक्टर प्रणाली। ये दोनों विकास भारत की हरित ऊर्जा संक्रमण और सतत भविष्य की दिशा में एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
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विश्वविद्यालय ने गन्ने के रस से सूक्ष्मजीवों की सहायता से हाइड्रोजन उत्पन्न करने की एक विशेष प्रक्रिया विकसित की है, जो कार्बन डाइऑक्साइड को भी एसिटिक एसिड में परिवर्तित करती है, जिससे यह प्रक्रिया और अधिक सतत बन जाती है। यह शोध भारत सरकार के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का समर्थन करता है और चीनी उद्योगों को हाइड्रोजन उत्पादन का अवसर देता है, जिससे आयातित जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम हो सकती है। इस तकनीक के लिए पेटेंट पहले ही दायर किया जा चुका है और परियोजना प्रस्ताव को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय को फंडिंग के लिए प्रस्तुत किया गया है।
ग्रीन हाइड्रोजन पर उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव भी एमएनआरई को भेजा गया है। डॉ भारत काले, एमेरिटस प्रोफेसर और मैटेरियल साइंस केंद्र के निदेशक ने बताया, ‘हमारी बायोप्रोसेस तकनीक कमरे के तापमान पर गन्ने का रस, समुद्री जल और अपशिष्ट जल का उपयोग कर कार्य करती है, जिससे वैश्विक स्तर पर हाइड्रोजन लागत को $1 प्रति किलोग्राम तक लाने के प्रयासों को बल मिलता है। पारंपरिक जल-विच्छेदन विधियों की तुलना में यह प्रक्रिया मूल्यवान उप-उत्पाद उत्पन्न करती है, जिससे शून्य अपशिष्ट सुनिश्चित होता है और यह भारत की ऊर्जा रूपांतरण यात्रा के लिए एक व्यवहारिक समाधान बनती है। हम इस तकनीक को लैब स्तर पर विकसित करने और उद्योगों को हस्तांतरण के लिए भागीदारों की तलाश कर रहे हैं।’
हाइड्रोजन भंडारण के लिए मेटालो-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOF) का उपयोग कर अनुसंधान कार्य भी प्रगति पर है, जिसमें CO2 कैप्चर पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। विश्वविद्यालय का लक्ष्य उद्योगों को इस तकनीक के स्केल-अप में सहयोग करना है, और यह अगले एक वर्ष के भीतर व्यावसायिक रूप से सक्षम हो सकती है। इस परियोजना का नेतृत्व डॉ सागर कानेकर, डॉ भारत काले, डॉ आनंद कुलकर्णी, प्रो निरज टोपरे, डॉ संतोष पाटिल, डॉ देव थापा, डॉ बिस्वास और डॉ रत्नदीप जोशी कर रहे हैं।
इसके अलावा, एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी ने कृषि अपशिष्ट आधारित हेटेरोजीनियस कैटालिस्ट का उपयोग कर टिकाऊ बायोडीजल उत्पादन के लिए एक कुशल बैच रिएक्टर प्रणाली विकसित की है। इस कैटालिस्ट और प्रणाली को पेटेंट कराया गया है, जो अपशिष्ट उत्पादन को समाप्त कर पर्यावरण-अनुकूल समाधान प्रदान करती है और कृषि अवशेषों का किफायती व प्रभावी उपयोग करती है। इस कैटालिस्ट की छिद्रयुक्त संरचना सतह क्षेत्र को बढ़ाती है, जिससे उत्पादन की दक्षता और तापीय स्थिरता में सुधार होता है।
डॉ काले ने आगे कहा कि इस प्रणाली से उत्पादित बायोडीजल जीवाश्म ईंधनों के लिए एक सस्ता और प्रभावी विकल्प है। पेटेंट में कैटालिस्ट और प्रक्रिया डिजाइन दोनों को शामिल किया गया है, जो उत्पादन में दक्षता सुनिश्चित करता है। जबकि उद्योग भागीदारी की चर्चा जारी है, तकनीक हस्तांतरण के छह महीनों के भीतर व्यावसायीकरण की उम्मीद है। बड़े पैमाने पर बायोडीजल उत्पादन उद्योगों की सहभागिता और सरकारी नीतियों पर निर्भर करेगा। यह प्रक्रिया पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में बायोमास जलाने की समस्या को हल करने में भी सहायक हो सकती है।
इन दोनों परियोजनाओं का नेतृत्व प्रो निरज टोपरे, डॉ संतोष पाटिल और डॉ भारत काले कर रहे हैं। ये नवाचार सतत ऊर्जा समाधानों को उजागर करते हैं, जो जीवाश्म ईंधनों के व्यवहारिक विकल्प प्रदान करते हैं और भारत के ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन को सहयोग करते हैं। विश्वविद्यालय इन तकनीकों के त्वरित व्यवसायीकरण के लिए उद्योग सहयोग की लगातार तलाश कर रहा है।