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कृष्ण जन्माष्टमी पर जरूर पढ़ें भगवद गीता के ये श्लोक, हर समस्या का होगा समाधान

हिंदू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ भगवद गीता में दी गई शिक्षाओं को अमृत तुल्य माना जाता है। जिसमें भगवान कृष्ण ने अपने ज्ञान से अर्जुन के मन की दुविधाओं को दूर किया था।

गीता में दी गई शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी पहले थीं। भगवद गीता में मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों का समाधान छिपा है। आज कृष्ण जन्माष्टमी है ऐसे में आप भी अपने जीवन की समस्याओं को दूर करने के लिए जरूर पढ़ें भगवद गीता के ये प्रसिद्ध श्लोक।

Bhagavad Gita Shlokas In Sanskrit

1. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ- गीता के इस श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, हे अर्जुन कर्म तुम्हारा अधिकार है लेकिन फल की चिंता करना तुम्हारा अधिकार नहीं है। इसलिए फल की इच्छा छोड़कर कर्म करो।

2. योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय |
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ||
अर्थ- इस श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सफल और असफल होने की आसक्ति त्यागकर समभाव होकर अपने कर्मों को करो। इस समता की भावना को ही योग कहा जाता है।

3. दुरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धञ्जय
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ||
अर्थ- भगवान कृष्ण भगवद गीता के इस श्लोक में कहते हैं कि, हे अर्जुन बुद्धि, योग और चैतन्यता से बुरे कर्मों से दूर होकर समभाव से ईश्वर की शरण को प्राप्त करो। जो लोग अपने अच्छे कर्मों को भोगने की अभिलाषा करते हैं वह लालची हैं।

4. नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
अर्थ- इस श्लोक में कृष्ण आत्मा की अमरता को बताते हुए कहते हैं कि, आत्मा को न आग जला सकती है न पानी भिगो सकता है। इसे न हवा सुखा सकती है और नाही यह शस्त्रों से काटी जा सकती है। यह आत्मा अविनाशी और अमर है।

5. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
अर्थ- कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, धरती पर जब भी धर्म का नाश होता है और अधर्म का विकास होता है तब मैं धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए अवतार लेता हूं।

6. श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
अर्थ- भगवान कृष्ण कहते हैं कि हे पार्थ, ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले लोग अपनी इंद्रियों को वश में करके ज्ञा को उपलब्ध होते हैं और ऐसे ज्ञानी पुरुष परम शांति को प्राप्ति करते हैं।

7. प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
अहंकारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ॥
अर्थ- भगवान कृष्ण कहते हैं कि, हे अर्जुन सारे कर्म प्रकृति के गुणों के अनुसार ही किये जाते हैं। जो मनुष्य यह सोचता है कि मैं करने वाला हूं उसका अंत:करण घमंड से भर जाता है और ऐसा मनुष्य अज्ञानी होता है।

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