लखनऊ। 2014 का लोकसभा चुनाव के बागियों को अमित शाह और मोदी की जोड़ी ने खूब निपटाया था, न किसी की एक सुनी थी और न ही किसी की नाराजगी की परवाह की थी। 2019 के पहले एक बार फिर मोदी और शाह की जोड़ी के सामने तकरीबन वैसी ही स्थिति है पर इस बार पार्टी के लोगों से ज्यादा नाराज सहयोगी दल हैं। मुंबई में शिवसेना है, बिहार में कुशवाहा की पार्टी है तो यूपी में ओम प्रकाश राजभर ,Rajbhar ,भी इसी कड़ी में जुड़ चुके हैं।
Rajbhar के बारे में तो
राजभर Rajbhar के बारे में तो कहा जा रहा है कि वह गठबंधन तोड़ने का पूरी तरह मन बना चुके हैं। ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी भी शायद उनसे निपटने का मन बना चुके हैं। योगी आदित्यनाथ ओम प्रकाश राजभर को नहीं संभाल पाए तो अब खुद नरेन्द्र मोदी इस संकट को दूर करने के लिये उतरे हैं।
29 दिसम्बर को वह गाजीपुर में राजभर समाज की एक बड़ी जनसभा से इसकी शुरुआत करेंगे। इसमें पूरे देश से समाज के लोगों को बुलाया जा रहा है। यहां उनके ईष्टदेव महाराजा सुहेलदेव पर एक डाक टिकट भी जारी किया जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से अपने परंपरागत वोटों के अलावा ओबीसी और दलित वोटों में सेंधमारी कर जीत हासिल की थी, वह 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव भी जारी रहा। गैर यादव व गैर जाटव जातियों को गोलबंद कर प्रचंड बहुमत हासिल किया।
312 भाजपा के खाते में आयीं तो सहयोगी अपना दल एस ने नो व ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा चार सीटें जीत कर पहली बार अपना खाता खोला। चूंकि यूपी की कई सीटों पर राजभर वोटों की तादाद 5 से 50 हजार तक बतायी जाती है ऐसे में सुभासपा से गठबंधन का बीजेपी को फायदा मिला। लोकसभा चुनाव में 2014 जैसी मोदी लहर नहीं, ऐसे में बने हुए समीकरण बिगड़े तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है।