टोक्यो ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने जैवलिन थ्रोअर (भाला फेंक एथलीट) में देश के लिए सोना जीतकर इतिहास रच दिया। भारत के ओलंपिक इतिहास में पहली बार किसी एथलीट ने जैवलिन थ्रो प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है। इस खेल में नीरज से पहले किसी भी एथलीट ने ये कामयाबी हासिल नहीं की। वो देश के लिए गोल्ड मैडल जीतने वाले पहले एथलीट बन गए।
इस जीत के साथ ही उन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत को पहला गोल्ड मेडल भी दिलाया। इसके अलावा वो भारत की तरफ से ओलंपिक इतिहास में गोल्ड मेडल जीतने वाले दूसरे खिलाड़ी बने। उनसे पहले शूटर अभिनव बिंद्रा ने ये कमाल 2008 बीजिंग ओलिंपिक में 10 मीटर एयर राइफल में किया था। फाइनल मुकाबले में नीरज की शुरुआत अच्छी रही और उन्होंने पहले थ्रो में 87.03 मीटर भाला फेंककर अपने इरादे जाहिर कर दिए। पहला थ्रो (राउंड) खत्म होने के बाद वो पहले स्थान पर रहे। दूसरे थ्रो में नीरज ने पहले से ज्यादा दम दिखाते हुए भाले को 87.58 मीटर दूर फेंका।
दूसरे राउंड में वो पहले स्थान पर रहने में कामयाब रहे। तीसरे थ्रो में नीरज थोड़ा नीचे आ गए और 76.89 मीटर भाला ही फेंक पाए, लेकिन वो टॉप पर बने रहे। चौथे राउंड में उनके थ्रो को अमान्य करार दिया गया, लेकिन इसके बावजूद वो पहले स्थान पर बने रहे। पांचवें राउंड में नीरज चोपड़ा का थ्रो फिर से अमान्य करार दिया गया इसके बावजूद वो टॉप पर मौजूद रहे। फाइनल के छह राउंड में नीरज ने सबसे ज्यादा दूर 87.58 मीटर भाला दूसरे राउंड में फेंका था और किसी अन्य खिलाड़ी ने इस दूरी को पार करने में कामयाबी हासिल नहीं की और इसके आधार पर उन्हें गोल्ड मेडल विनर करार दिया गया।
नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक के सफर की शुरुआत ही जीत के साथ की थी। उन्होंने अपने पहले ही प्रयास में 86.65 मीटर भाला फेंका था जबकि क्वालिफाई के लिए 83.50 मीटर की सीमा तय की गई थी। नीरज ग्रुप ए में टॉप पर रहे और फाइनल में पहुंचे थे। वहीं ग्रुप बी में पाकिस्तान के अरशद नदीम ने 85.16 मीटर भाला फेंका था और अपने ग्रुप (बी) में तीसरे नंबर पर रहे थे। दोनों ग्रुप मिलाकर कुल 12 खिलाड़ियों ने फाइनल में जगह बनाई थी।