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संसद में विपक्ष की नकारात्मक राजनीति

 राकेश कुमार मिश्र

अंततः विपक्ष के मनसूबे कामयाब हुए और संसद का मानसून सत्र हंगामें एवं अराजकता की भेंट चढ़ गया। मानसून सत्र में संसद का कामकाज महज 22 प्रतिशत हुआ। कोरोना संक्रमण की त्रासदी, मंहगाई, कृषि कानून एवं अफगानिस्तान में वर्तमान हालात से उत्पन्न चुनौत जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी विपक्ष ने कोई सार्थक बहस करना और सरकार को कठघरे में खड़ा करना उचित नहीं समझा।

ओबीसी संविधान संशोधन बिल अवश्य दोनों सदनों से परिचर्चा के साथ बिना एक भी वोट विरोध में पड़े पारित हो गया। जो विपक्ष बिना प्रेगासस पर परिचर्चा एवं जाँच के आदेश किसी विषय पर बात करने के लिए तैयार नहीं था, उसने अपने सदस्यों को उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया।  यह विपक्ष की मजबूरी थी कि ओ बी सी बिल के विरोध या पास होने में अवरोध खड़ा करना उसके चुनाव हितों के लिए नुकसानदेह हो सकता था। इससे विपक्ष का चेहरा उजागर हो गया कि उसके लिए जातीय समीकरण एवं चुनाव हित से बढ़कर देश का कोई मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं चाहे कृषि कानूनों की बात हो या कोरोना त्रासदी एवं मंहगाई की।

संसद के मानसून सत्र के दौरान पहले दिन से ही विपक्ष का रवैया पूर्णतया नकारात्मक रहा। प्रधानमंत्री द्वारा नए मंत्रियों के परिचय कराने के समय भी हंगामा एवं नारेबाजी करना यह बताता है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष को किसी भी संवैधानिक परम्परा की न तो परवाह है और न ही किसी संवैधानिक पद के लिए कोई सम्मान। यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है कि जिस पेगासस मुद्दे को तूल देकर मानसून सत्र को हंगामें एवं अवरोध की भेंट चढा दिया गया, वह सर्वदलीय बैठक एवं बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में कहीं था ही नहीं। सर्वदलीय बैठक में तीन मुद्दों पर चर्चा की सहमति बनी थी, कोरोना प्रबन्धन, कृषि कानून एवं मंहगाई।

एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट पर आधारित लेख को लेकर पेगासस मुद्दे पर जो हंगामा खड़ा किया गया, उसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगता है कि लेख छपने के दो दिन में ही एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सफाई देकर कहा कि उसने जो लिस्ट दी, वह संभावित टारगेट हैं और उसने किसी की भी जासूसी की बात नहीं कही। माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी पेगासस मुद्दे पर जनहित याचिका की सुनवाई करते कहा कि यदि ऐसा हुआ तो मामला गंभीर है परन्तु यह समझ से परे है कि इस मुद्दे पर आज तक कोई एफ आई आर दर्ज क्यों नहीं कराई गई। यही नहीं जब सूचना तकनीक मंत्री ने अपना बयान राज्यसभा में देना चालू किया तो एक विपक्षी सांसद ने उनका कागज छीनकर फाड़ दिया। किसानों पर परिचर्चा के समय राज्यसभा में अध्यक्ष की मेज पर चढ़ जाना, रुलबुक फेंकना एवं नारेबाजी हो हल्ला करना आखिर किस संसदीय गरिमा का अनुपालन है। अन्तिम दिन जिस तरह मार्शल से हाथापाई की तस्वीर आईं और एक महिला मार्शल शीशे का दरवाजा टूटने से चोटिल हुई एवं धक्का मुक्की की गई, उसे संसदीय प्रणाली के इतिहास का काला दिन कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी।

हकीकत यह है कि विपक्ष कभी भी किसी देशहित के मुद्दे पर चर्चा के लिए गंभीर नहीं दिखा।किसानों के लिए आंसू बहाने का नाटक करने वाले एक दिन भी कृषि कानूनों पर सार्थक बहस करने की हिम्मत नहीं दिखा सके। शायद राहुल गांधी सहित विपक्ष के नेता जानते थे कि कृषि कानूनों पर बहस में वे स्वतः घिर जायेंगे क्योंकि इन कानूनों का विरोध राजनीतिक दुराग्रह से झूठे दुष्प्रचार के सहारे किया जा रहा था। तर्क के आधार पर कृषि कानूनों पर सरकार को घेरना विपक्ष के लिए कठिन था क्योंकि ठेके पर खेती पहले से ही अनेक राज्यों में हो रही है। नए कानून में किसानों के हितों के लिए नियमों को एकरूप एवं किसानों को शोषण से बचाने के प्रावधान किए गए हैं। भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए आइलो बनाने का काम डा मनमोहन सिंह के समय से चल रहा है तब यह कैसे कहा जाता है कि मोदी सरकार अडानी अम्बानी के लिए कानून लायी है। कुछ कमियां अगर कानून में हैं तो सरकार परिचर्चा करके संशोधन का प्रस्ताव किसान नेताओं को दे चुकी है। कृषि कानूनों पर यदि बहस होती तो कांग्रेस एवं विपक्ष के इस दुष्प्रचार की पोल खुल जाती कि यह काले कानून हैं एवं किसानों के हित के विरुद्ध हैं।

कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतें दुखद है और इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि दूसरी लहर के दौरान 10-12 दिन के लिए स्थितियाँ नियंत्रण के बाहर जाती दिखीं। हजारों लोगों ने दवा, बेड एवं आक्सीजन की कमी से दम तोड़ दिया परन्तु इस पर संसद में सरकार से सवाल पूछने से विपक्ष क्यों बचता रहा, यह समझ से परे है। शायद महाराष्ट्र एवं केरल में कोरोना संक्रमण के हालात देखकर विपक्ष ने चर्चा से बचना ही बेहतर समझा। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि इस सबके बावजूद देश में कोरोना से मौतों के मामले में हम अमेरिका एवं यूरोपीय देशों से बहुत बेहतर स्थित में हैं। इस सबके बावजूद इतने गंभीर विषय पर विपक्ष ने संसद की कार्यवाही बाधित कर देश एवं जनता के प्रति गद्दारी का काम किया।

आज राहुल गांधी ने 15 विपक्षी दलों के नेताओं के साथ संसद से जंतर मंतर तक पैदल मार्च किया और यह आरोप लगाया कि सरकार संसद में उन्हें बोलने नहीं देती।उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी लोगों को बुलाकर सांसदो के साथ मारपीट की गई। उन्हें कृषि कानूनों, कोरोना प्रबन्धन जैसे मुद्दे पर बहस से वंचित रखा गया। यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। संसद आपने नहीं चलने दी, मानसून सत्र को हंगामें की भेंट चढा दिया और इल्जाम सरकार पर। शायद वह यह झूठ कार्यवाही से बचने और सरकार को बदनाम करने के लिए बोल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने सत्र प्रारम्भ होने के पहले ही कहा था कि मैं चाहता हूँ कि विपक्ष सकारात्मक चर्चा करे और तीखे सवाल पूँछे। अब राहुल गांधी और विपक्ष को कौन समझाए कि आप सवाल तो तब करेंगे जब सत्र चलने देंगे और परिचर्चा में शामिल होंगे। सत्र बाधित करके आप भले अपने को जीता समझें कि आपने सरकार को अपनी शक्ति दिखा दी परन्तु हकीकत यह है कि आपने सरकार की राह आसान की और सरकार को कोरोना, कृषि कानून, मंहगाई जैसे जनता के मुद्दों पर घेरने एवं तीखे सवालों का सामना करने से मोहलत दे दी। देश की जनता भी आपके इस गैर जिम्मेदाराना व्यवहार एवं निर्णय से आहत महसूस कर रही है।

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