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आंदोलन की जीत ही देश को कारपोरेट गुलामी के शिकंजे में फंसने से रोक सकता है: सुनील सिंह

प्रधानमंत्री के भाषण पर आंदोलन के बारे में ऐसी असभ्य भाषा कोई तानाशाही बोल सकता है जो सपने में भी जन आंदोलन से डरता है कृषि कानून के खिलाफ आंदोलनरत किसान और नागरिकों को प्रधानमंत्री द्वारा कल संसद में परजीवी और आंदोलन जीवी कहे जाने पर लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील सिंह ने तीखी निंदा की है और ऐसी अलोकतांत्रिक भाषा के लिए अन्नदाताओं से माफी मांगने और किसान विरोधी कानून को वापस लेने की मांग की है।

उन्होंने कहा है कि इन कानून को बनाने से पहले किसी भी किसान संगठन या राज्य सरकार तक से सलाह मशवरा नहीं लिया गया और न ही किसी संसदीय प्रक्रिया का पालन किया गया यही सरकार पर देशी-विदेशी कारपोरेट पूंजी की जकड़ को बताता है इसलिए इस देश में किसान आंदोलन के लिए प्रधानमंत्री पूरी तरह से जिम्मेदार हैं देश में कृषि संकट इतना गहरा रहा है कि हर 2 घंटे में किसान आत्महत्या करने के लिए बाध्य हो रहे हैं लाभकारी समर्थन मूल के अभाव में और कर्ज के बढ़ते बोझ के कारण कृषि अवाहनीय हो गई है देश के किसान का 86% हिस्सा लघु और सीमांत किसानों का है जिसका बाजार में निर्मम शोषण होता है।

खेती किसानी छोड़कर प्रवासी मजदूर बनने के लिए बाध्य हैं इन तथ्यों की अनदेखी कर किसान आंदोलन को बदनाम करना संघ और भाजपा की सुनियोजित चाल है।

सुनील सिंह ने कहा है कि देशव्यापी किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए केंद्र सरकार की कोशिशों का विरोध करें और किसान विरोधी काले कानून को वापस लेने और सभी किसानों को और सभी फसलों के लिए कानून C2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के आंदोलन को और ज्यादा से ज्यादा मजबूत करें इस आंदोलन की जीत ही देश की अर्थव्यवस्था को कारपोरेट गुलामी के शिकंजे में फंसने से रोक सकता है।

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