Lucknow। ज्योतिर्विज्ञान विभाग, (Department of Astrology) लखनऊ विश्वविद्यालय में 23 अप्रैल 2025 को कला संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर अरविंद मोहन (Professor Arvind Mohan) की अध्यक्षता में ‘वास्तुशास्त्र के शास्त्रीय सिद्धान्तों का व्यावहारिक उपयोग’ (Practical use of classical principles of Vastu Shastra) विषयक व्याख्यान (lecture) किया गया। व्याख्यान का शुभारम्भ मंगलाचरण एवं दीप प्रज्ज्वलन से किया गया। तत्पश्चात् ज्योतिर्विज्ञान के संयोजक डॉ सत्यकेतु (Dr Satyaketu) द्वारा वास्तुशास्त्र के विशिष्ट वक्ता अजय गौर का परिचय एवं वाचिक स्वागत करते हुए वास्तुशास्त्र की महत्ता का प्रतिपादन किया।
डॉ सत्यकेतु ने कहा कि वास्तुशास्त्र भारतीय ज्ञान परम्परा का अभिन्न अंग है। ऋषि-मुनियों ने बहुत ही सूक्ष्मरूप से पंचतत्त्वों के शरीर एवं मन पर प्रभाव का अध्ययन कर इस शास्त्र का निर्माण किया है।
विशिष्ट वक्ता अजय गौर ने कहा कि वास्तु और ज्योतिष एक दूसरे के पूरक है। वास्तु में एक शब्द आता है दिक्काल यानि दिक और काल। दिक् का अर्थ होता है दिशा और काल का अर्थ होता है समय। ज्योतिष में समय का ज्ञान किया जाता है और वास्तु में दिशाओं पर अध्ययन किया जाता है।
अजय गौर ने कहा कि यदि किसी की जन्मपत्री में सूर्य लग्न में हो तो जातक के घर में ऊर्जा पूर्व की दिशा से आए यानी पूर्व दिशा में खुला होगा या खिड़कियाँ अधिक होंगी और सूर्य के साथ मंगल और केतु भी बैठा है तो जातक के घर के सामने रोड आ रही होगी। इसी प्रकार से यदि किसी की कुंडली में प्रथम भाव में शनि बैठा है तो जातक के घर की पूर्व दिशा में प्रकाश की कमी होगी यानी खिड़कियां नहीं होगी या फिर सामने कोई भारी मकान बना होगा जिससे घर में प्रकाश नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि जैसे हर व्यक्ति की कुंडली भिन्न-भिन्न होती है इसी प्रकार से हर व्यक्ति का वास्तु अलग होता है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ अनिल कुमार पोरवाल ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ सत्यकेतु ने किया। ज्योतिर्विज्ञान विभाग के अन्य अध्यापक डॉ बिपिन कुमार पांडेय, डॉ अनुज कुमार शुक्ल, डॉ प्रवीण कुमार बाजपेई, कोमल सिंह तथा 100 के लगभग छात्र-छात्राएं एवं अध्यापक उपस्थित रहे।