उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के साढ़े चार वर्षों से अधिक समय बीत चुके हैं ऐसे में महज कुछ शेष बचे महीनों के लिए मंत्रिमंडल विस्तार के क्या मायने हैं ? 53 मंत्रियों के सहारे वर्तमान की योगी सरकार क्या असहज थी? क्या योगी सरकार द्वारा अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए मंत्रिमंडल विस्तार किया गया? क्या योगी सरकार जाति के सहारे चुनाव मैदान में उतर रही है ? ऐसे अनेक सवाल हैं जो वर्तमान की योगी सरकार को कटघड़े में खड़े करने के लिए पर्याप्त है और ऐसे ही अनेक यक्ष प्रश्न आज समाज में बने हुए हैं।
योगी सरकार में उक्त क्षेत्रों से जुड़े तथ्यों का अध्ययन कर व्याप्त अव्यवस्थाओं और असफ़लतों को रेखांकित किया जा सकता है। इस कड़ी में सबसे पहले किसानों का जिक्र आता है। उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के संकल्प पत्र में जिक्र किया गया था कि गन्ना किसानों के मूल्य का भुगतान 14 दिनों के भीतर कर दिया जायेगा और गन्ना मूल्य 400 रूपये प्रति क्विंटल किया जायेगा, इसके साथ बरेली में फरवरी 2016 में किसानों की स्वाभिमान रैली को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुना करने का वादा किया था लेकिन यथा स्थिति इसके बिल्कुल उलट रही और गन्ना किसानों का सत्र 2019-20 और 2020-21 का बकाया बारह हजार करोड़ हो गया है जिस पर गन्ना एक्ट के तहत तीन हजार करोड़ का ब्याज हो गया है।
इस प्रकार योगी सरकार पर किसानों का पन्द्रह हजार करोड़ का कर्ज बकाया है। इसके लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए जुलाई 2021 में योगी सरकार से जबाब माँगा था। गन्ना किसानों की समस्या के प्रति जबाबदेही होने के बजाय जब एक आरटीआई के माध्यम के पूँछा गया तो योगी सरकार के मंत्रालय की तरफ से उत्तर दिया गया कि गन्ना किसानों का एक रुपया भी बकाया नही है। इसी प्रकार गन्ना का मूल्य योगी सरकार द्वारा साढ़े चार वर्षों में एक भी बार भी नही बढ़ाया गया और अब जब चुनाव के कुछ महीने शेष हैं ऐसे में गन्ना मूल्य में 25 रूपये की वृद्धि महज सरकार की असफल नीतियों का द्योतक है और आज उत्तर प्रदेश का किसान आय के मामले में सूची में सबसे नीचे रहने वाले राज्यों में शामिल है।
किसी भी सरकार की उपलब्धियों रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करने का अधिकार मीडिया का होता है क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण है लेकिन योगी सरकार में उत्तर प्रदेश पत्रकारों की हत्या और उत्पीड़न में नम्बर एक बन गया जिससे सरकार से जुड़ी अव्यवस्था और भ्रष्टाचार की रिपोर्ट को रोका जा सके। इन साढ़े चार वर्षों में हम अपने पत्रकार बंधुओं की स्थिति पर नजर डाले तो उनकी हो रही हत्या और उत्पीड़न उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के महिमा मंडन को कलंकित करने में सक्षम हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट 2021 के अनुसार योगी सरकार में हत्या के 3779 मामले, दलितों के खिलाफ अपराध के 12714 मामले, अपहरण के सबसे ज्यादा 12913 मामले, महिलाओं के खिलाफ अपराध के 49385 मामले एवं हिंसक अपराध के 51983 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश इन क्षेत्रों में नंबर वन बन गया। इन संकटों के बीच यूपी में मंत्रिमंडल विस्तार में ब्राह्मण नेता जितिन प्रसाद को कैबिनेट मंत्री बनाया गया जिसके बाद योगी मंत्रिमंडल में ब्राह्मण मंत्रियों की संख्या 08 हो गई लेकिन पहले साढ़े चार वर्षों में सात ब्राह्मण मंत्रियों के बावजूद यूपी में 500 से अधिक ब्राह्मणों की हत्या तथा 42 संतो-महंतों की हत्या कर दी गयी। अब ब्राह्मण मंत्री जितिन प्रसाद के चेहरे के माध्यम से योगी सरकार अपने कलंकित काम पर पर्दा डालने की असफल कोशिश करने जा रही है।
इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में प्रति व्यक्ति कर्ज लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2020-21 के मुकाबले 1968 रूपये बढ़कर वर्ष 2021-22 में 26572 रूपये हो जायेगा। इन साढ़े चार वर्षों में उत्तर प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़कर 398359 हो गयी जो देश में सबसे अधिक है। कैग द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार इन वर्षों में उत्तर प्रदेश में कई प्रमुख घोटाले हुए जिनमे 2019 में कुम्भ में शौचालय, ड्रोन कैमरा, एलईडी लाइटों की खरीद एवं अन्य कार्यों में करोड़ों का घोटाला; वाहन, माल व यात्रियों से टैक्स वसूली में 14148 करोड़ का घोटाला; अयोग्य कंपनियों को लाभ पहुँचाने में यूपी सेतु निगम को 2.20 करोड़ का घाटा; यूपी सरकार को मिली केन्द्रीय सड़क निधि कहाँ गयी, इन सब घोटालों को कैग ने प्रमुखता से उठाया है। इसके अतिरिक्त योगी सरकार में हुए घोटालों में स्मार्ट मीटर घोटाला, डीएचएफएल घोटाला, छात्रवृति घोटाला, पशुधन घोटाला आदि का जिक्र भी किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में बीते अप्रैल, मई और जून के महीने में कोरोना की दूसरी लहर में जो भयानक अव्यवस्था फैली वह आम जनमानस के दर्द एवं स्वास्थ्य विभाग की जर्जर व्यवस्था को दर्शाने में सक्षम था। इस भयक्रांत समय के महज दो महीने बीतने के बाद सरकार द्वारा अपनी पीठ थपथपाने के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत करना क्या न्याय संगत है वह भी तब जब यूपी डेंगू के डंक ने बदहाली एवं अव्यवस्था को पुनः उजागर करने में सक्षम है। इन प्रमुख संकटों के बीच अपने को श्रेष्ठ राज्य के रूप में प्रस्तुत करना तथा 53 मंत्रियों के कंधे पर इन समस्याओं के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए 07 और मंत्रियों की नियुक्ति इतने कम समय के लिए करना आने वाले चुनाव में जातीय समीकरण को साधने की कोशिश मात्र है।