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सर्दी के मौसम में में गौवंशों को बचाना एक बड़ी चुनौती

   दया शंकर चौधरी

दिसंबर महीने में ठंड ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। लोगों ने स्वेटर जैकेट मफलर शाले कंबल रजाई का प्रयोग करना शुरू कर दिया है।अभी आगे ठंड अपना प्रकोप और दिखाएगी। ठंड का मौसम पशुओं खासतौर पर गौमाता के लिए बहुत ही कष्टकारी होता है। ठंड के मौसम में कई गौ पालक अपनी गौ माताओं को शाम को दूध निकालने के बाद बाहर छुट्टा छोड़ देते है। परिणामस्वरूप गौ माताओं को भोजन की तलाश में इधर उधर भटकने के साथ साथ सब्जी मंडी के आसपास भोजन गोभी मूली के पत्ते आदि खाने के लिए भटकना पड़ता है। इसके बाद पूरी रात उन्हें भीषण ठंड में खुले में रात गुजारनी पड़ती है और ठंड के कारण बीमार पड़ जाती है। परिणामस्वरूप कई गौ माताओं को अपनी जान गवानी पड़ती है फिर उनका इलाज गौ सेवको के लिए एक बड़ी चुनौती हो जाता है।

उत्तर प्रदेश की स्वयंसेवी संस्था लोक परमार्थ सेवा समिति के सेवादार लालू भाई सर्दी के मद्देनजर चिंता जताते हुए कहा है कि अभी हाल में ही लखनऊ छावनी में दो गौ माता ठंड से अपनी जान गंवा चुकी है। कई सामाजिक संस्थाओं ने गौ माता को ठंड से बचाने हेतु कंबल और बोरे उड़ाने का अभियान अभी से शुरू कर दिया है। इस अभियान में गौ सेवको और आमजन को भी अपनी सहभागिता निभानी चाहिए। उन्होंंने बताया कि सरकार से कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं ने चोकर और भूसा की बिक्री पर सब्सिडी देने की मांग की है। वर्तमान समय में गौ माताओं के भोजन चोकर भूसा हरा चारा के दाम काफी उचाइयो पर है। पिछले वर्ष जो चोकर की बोरी 900 रुपए से 1000 रुपए तक थी वह इस समय लगभग 1200 रुपए में बिक रही है। ऐसी स्थित में गौ माताओं को भोजन कराना गौ पालकों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं ने पिछले वर्षो में गौ के भोजन पर सब्सिडी देने गौ माताओं के लिए चारा भूमि का प्रबंध करने और उनके लिए शमशान भूमि की मांग के साथ वार्ड और ग्राम्य स्तर पर निगरानी कमेटी भी बनाने की मांग की है।

बताते चलें कि सर्दी का मौसम आवारा जानवरों के साथ साथ पशुधन के लिए भी घातक मौसम होता है। क्योंकि कई बार अच्छे रखरखाव एवं प्रबंधन की कमी की वजह से पशुधन के लिए सर्दी मौत का कारण बनती है। कई पैमानों पर किसानों को पशुओं के लिए सर्दियों में तनाव का प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है। बहुत सारे रोग, जो कि जीवाणु, विषाणु एवं परजीवी जनित होते हैं जिन का प्रकोप सर्दियों के तनाव की वजह से बढ़ जाता है। सामान्यतया सभी जानवर ठंडी जलवायु की परिस्थिति में प्रभावित होते हैं।

परंतु कुछ जानवर मोटी खाल एवं ऊन की वजह से खुद का बचाव करने में सक्षम होते हैं किंतु कुछ जानवर सर्दियों में अत्यधिक प्रभावित होते हैं और इस ठंड के प्रमुख कारणों पर यदि नजर डाली जाये तो समझा जा सकता है कि नवजात पशु बेहद संवेदनशील होते हैं एवं सर्दी मौसम और ठंडी हवा कई बार मृत्यु का कारण बन जाती है।

गौवंशों में ठंडी मौसम की वजह से निमोनिया या सांस की बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। पशुओं के शेड में साफ सफाई ना होने की वजह से वाह्य एवं अंतः परजीवी के होने की स्थिति भी होती है। अंतः परजीवी संक्रमण एवं उनका उचित प्रबंधन ना होना भी एक प्रमुख कारण है। आवारा जानवरों के पास इस मौसम में कोई आश्रय ना होना भी चिंता का कारण होता है।

सर्दी के मौसम में रोगों का प्रकोप

पशु पालन एवं डेयरी विभाग  के पशु चिकित्सा सहायक, शल्यज्ञ (सर्जन) डॉ. मनीष जाटव और डॉ. प्रीति वर्मा के अनुसार इस मौसम में गेस्ट्रो इंटेन्सटीनल रोग भी अत्यधिक होते हैं। जीवाणु जनित रोग जैसे कि बोटुलिजीम, काला पैर, टिटनेस आदि।

विषाणु जनित रोग: रोग जैसे की एफ एम डी, पी पी आर, बी वी डी, लम्पी स्किन बीमारी आदि।

परजीवी रोग: इस मौसम के दौरान पशुओं मे बाल खुरदरे, दस्त खुजली आदि लक्षण दिखाई देते हैं अतः परजीवी जैसे कि पेट के कीड़े हुकवर्म टोकसोकेरा लँगफ्लूक लिवरफ्लूक और हेमचेनस होते है। वाह्य परजीवी संक्रमण में जू, टिक, मक्खियां और मच्छरों इन सभी का प्रजनन सामान्यता सर्दियों के मौसम में ही होता है जिसके कारण कई नुकसान पहुंचाने वाले प्रोटोजोआ रोगों का कारण बनते हैं।

निमोनिया एवं श्वसन रोग: उचित रखरखाव एवं वेंटीलेसन ना होने की वजह से अधिकांश बार जानवर निमोनिया एवं साँस संबंधी रोगों के शिकार होते हैं। मौसम में तनाव के कारण रोगों के प्रकोप का खतरा बढ़ जाता है। श्वसन संबंधी रोग, जैसे रेल्स नाक से गाढ़ा श्लेष्मा खांसी छीकना उच्च तापमान के लक्षण दिखाई देते है।

समाज के उत्थान और सुधार में स्कूल और धार्मिक संस्थान

कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले जानवर जैसे रोगी जानवर, नवजात, बूढ़े जानवर, आवारा जानवर सर्दी के मौसम में अधिक प्रभावित होते हैं। सर्दी की वजह से कापना, असामान्य तापमान और पीली श्लेष्मा झिल्ली के साथ नीचे गिरना और रक्त संचार ना होना रोग के लक्षण हो सकते हैं। शरीर ठंडा पड़ जाना, सिकुड़ा हुआ नेत्र गोलक, स्वशन एवं नाड़ी की दर अत्यधिक कम होने के साथ-साथ पशु की मृत्यु भी हो जाती है।

प्राथमिक उपचार: सर्दी में ग्रसित पशु को बाहरी एवं आंतरिक ऊर्जा प्रदान करने हेतु रगड़ना चाहिए जिससे शरीर गर्म हो जाए। पशुओं को मालिश हेतु गर्म पानी का उपयोग कर सकते हैं। पशु को शॉक से बचाने हेतु तरल पदार्थ जैसे कैल्शियम लिवर टॉनिक को सहायक चिकित्सा के रूप में देना चाहिए। निमोनिया से बचाने हेतु उचित एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करना आवश्यक है।आवश्यकता पड़ने पर नेबूलाइजेसन का उपयोग कर सकते हैं।

पशुधन को सर्दियों से बचाने हेतु प्रबंधन

पशुओं को उचित रखरखाव एवं वेरीकेतन के साथ-साथ आश्रय उपलब्ध कराया जाना चाहिए। आश्रय हवादार होना चाहिए जिससे अमोनिया एवं नाइट्रोजन गैस इकट्ठे ना हो सके जोकि निमोनिया एवं अन्य बीमारी का कारण हो सकती है। आश्रय के आसपास के क्षेत्र की नियमित साफ सफाई होनी चाहिए जिससे मच्छर मक्खी के होने की संभावना कम हो।पशुओं को सामान्य तापमान का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना चाहिए एवं ठंडे पानी से बचाना चाहिए। भोजन की उचित व्यवस्था कराना चाहिए जो कि सर्दियों के मौसम में तापमान कम होने की वजह से भोजन की आवश्यकता बढ़ जाती है। नवजात बछड़ों में कठोर ठंडी जलवायु परिस्थितियों से बचाने एवं शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिए उच्च गुणवत्ता और दूध की उचित मात्रा देनी चाहिए। मक्का जाई गेहूं जैसे अनाज खिलाना चाहिए। छोटे जानवरों जैसे छोटे बछड़ों बकरिया आदि को रेत के थेलों बोरियों और कंबलों से ढकना चाहिए ताकि शरीर गरम बना रहे। फर्श साफ सुथरा होना चाहिए। सभी जानवरों का नियमित रूप से डिवार्मिंग किया जाना चाहिए। उचित रखरखाव एवं प्रबंधन ही पशुओं को सर्दी से होने वाले प्रकोप एवं पशुओं की हानि से बचाव का एकमात्र उपाय है।

छुट्टा गोवंश की समस्या के स्थायी समाधान पर विचार कर रही यूपी सरकार, पीएम मोदी ने दिलाया था भरोसा

योगी सरकार छुट्टा गोवंश की समस्या के स्थायी समाधान के लिए नए सिरे से विचार कर रही है। उत्तर प्रदेश के पशु चिकित्सा संघ ने गोवंश संरक्षण के लिए कई अहम सुझाव दिए हैं।

“मैत्री दिवस” ढाका भारतीय उच्चायोग ने मनाई 51वीं वर्षगांठ

यूपी विधानसभा चुनाव में छुट्टा #गोवंश से किसानों के नुकसान की समस्या का अंदाजा होने के बाद प्रदेश सरकार इसके समाधान को लेकर नए सिरे से विचार कर रही है। विधानसभा चुनाव में छुट्टा गोवंश से किसानों की फसलों के नुकसान का मामला जोरशोर से सामने आया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनावी रैलियों में इस समस्या के समाधान के लिए आश्वासन भी देना पड़ा था।

चुनाव नतीजे आने के साथ ही पशुपालन विभाग इस समस्या के स्थायी समाधान को लेकर विचार कर रहा है। इसके लिए विभिन्न स्तर पर चर्चा व सुझाव लिए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में गौवंश संरक्षण के मॉडल की जानकारी ली जा रही है। पशु चिकित्सा संघ ने छुट्टा गोवंश की समस्या के समाधान के लिए कई अहम सुझाव दिए हैं। संघ के अध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार के अनुसार इस संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया है। इसमें सुझावों पर विचार कर आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया गया है।

ये हैं महत्वपूर्ण सुझाव

* निराश्रित गोवंश की संख्या पर नियंत्रण के लिए गोवंश में ‘सेक्सड सीमेन’ के उपयोग को नि:शुल्क किया जाए।
* गोवंश के गोबर व गोमूत्र की व्यवसायिक उत्पादों के रूप में बिक्री हो। इसके लिए सहकारी समितियों के नेटवर्क का उपयोग किया जाए।
* हर ब्लॉक में एक आर्गेनिक विलेज स्थापित हो। वहां केवल गोबर, गोमूत्र आधारित खाद और पेस्टिसाइड उपयोग हो।
*स्वदेशी गाय को राजकीय विरासत पशु घोषित किया जाए।*
(उत्तर प्रदेश की सामाजिक संस्था लोक परमार्थ सेवा समिति एक लंबे अरसे से यूपी में गाय को राज्यमाता का दर्जा दिए जाने की मांग कर रही है।)
* घरों में गाय पालने वालों को स्वदेशी गोवंश रक्षक के रूप में मासिक वित्तीय सहायता दी जाए। गोबर व गोमूत्र की खरीद कर उन्हें स्वावलंबी बनाया जाए।
* गोबर और गौमूत्र आधारित वर्मी कंपोस्ट को सब्सिडी देकर यूरिया, डीएपी के साथ 10 फीसदी उपयोग की अनिवार्यता की जाए। इसे राज्य नीति में शामिल किया जाए।
* प्रधानमंत्री के गोवर्धन मॉडल को लागू करते हुए गोबर से बायो सीएनजी के उत्पादन व सिलिंडर में पैकिंग कर विपणन के लिए ऊर्जा विभाग को निर्देशित किया जाए।
* बछड़ा पैदा करने वाले सीमेन स्ट्रॉ के उपयोग को रोका जाए, इसके लिए ब्रीडिंग एक्ट बनाया जाए।
* गोवंश की सही संख्या के लिए रीफेड चिप का उपयोग अनिवार्य किया जाए।

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