राज्यसभा सांसद और सपा के नेता अमर सिंह ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समर्थक विधायकों के हस्ताक्षरों का ‘‘कोई मूल्य’’ नहीं है क्योंकि चार जनवरी को आदर्श आचार संहिता लागू हो जाने के बाद वे वास्तव में विधायक नहीं रह गए हैं। इस बीच रामगोपाल यादव ने सपा के दोनों खेमों के बीच किसी सुलह की संभावना से इंकार करते हुए कहा है कि चार-छह लोगों ने नेताजी को गुमराह किया कि उन्हें 200 विधायकों का समर्थन हासिल है। उनके रूख का अब पर्दाफाश हो गया है। उन्होंने हालांकि कहा कि उस राष्ट्रीय अधिवेशन में मुलायम को पार्टी का संरक्षक नियुक्त किया गया जिसमें अखिलेश को सपा का नया अध्यक्ष बनाया गया था। सपा में जारी विवाद में अखिलेश के साथ नजर आए रामगोपाल ने कहा कि पार्टी के दिल्ली कार्यालय में नेताजी का नेमप्लेट अब भी लगा हुआ है।
अमर सिंह ने दावा किया कि रामगोपाल द्वारा बुलाया गया सम्मेलन ‘‘फर्जी’’ था क्योंकि सिर्फ पार्टी के निर्वाचित अध्यक्ष ही आपात स्थिति में सम्मेलन बुलाने के लिए अधिकृत हैं। ‘‘क्या कोई इस बात पर विवाद कर सकता है कि मुलायम अब भी सपा के एकमात्र निर्वाचित अध्यक्ष हैं।’’ अमर सिंह ने इस बात को खारिज कर दिया कि पार्टी में उनकी वजह से विवाद है। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने परिवार को एकजुट रखने के लिए इस्तीफे की पेशकश की।’’ दिल्ली पहुंचने के बाद मुलायम ने अमर, शिवपाल सिंह यादव और कुछ वकीलों के साथ सलाह मशविरा किया। वे संभवतरू आज चुनाव आयोग से मिलने के पहले रणनीति पर विचार कर रहे थे।
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