कोरोना से लड़ाई के नाम पर मेडिकल पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष के छात्रों से यूपी सरकार मजाक कर रही है। सरकार का विज्ञापन बताता है कि छात्रों को अपनी जान जोखिम में डालकर काम करना होगा और इसके लिए उन्हें मिलेंगे केवल 300 रुपए। यानि महीने के केवल नौ हजार रुपये। जबकि वार्ड ब्वॉय को मेहनताने के तौर पर 359 रुपये रोजाना का भुगतान किये जाने का विज्ञापन निकाला गया है।
मजेदार बात है कि एमबीबीएस के अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए जो मेहनताना निर्धारित किया गया है वो वार्ड ब्वॉय को मिलने वाले वेतन से भी कम है। यूपी में वार्ड ब्वॉय को मेहनताने के तौर पर 359 रुपये रोजाना का भुगतान किया जाता है। यानि जो छात्र अपनी जान को जोखिम में डालकर कोरोना मरीजों को ठीक करेंगे सरकार उनके लिए कोई ढंग का पैकेज तक तय नहीं कर सकी। सोशल मीडिया पर इसे सरकार की लालफीताशाही बताया जा रहा है। लोगों का कहना है कि सरकार को ये तो देखना चाहिए कि ये छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। ये जान को जोखिम में डालकर काम करेंगे।
यूपी सरकार का यह विज्ञापन 8 मई 2021 को निकाला गया था। इसे कार्यालय महानिरीक्षक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण, यूपी की तरफ से निकाला गया है। इसमें कोविड-19 महामारी के संघर्ष में स्वास्थ्य कर्मियों को सेवा का अवसर देने की बात कही गई है। विज्ञापन को देखें तो 1 नंबर पर फिजिशियन, चेस्ट फिजिशियन का जिक्र है। इनके लिए 5 हजार रुपये प्रतिदिन के तय किए गए है। चिकित्सक के लिए दो हजार रुपये प्रतिदिन देने की बात की गई है।
चार नंबर पर एमबीबीएस अंतिम वर्ष के छात्रों का जिक्र है। उनके लिए मेहनताना 300 रुपये रखा गया है। विज्ञापन में स्टाफ नर्स को प्रतिदिन 750 रुपये, एमएससी नर्सिंग छात्र-छात्राओं के लिए 400 रुपये प्रतिदिन का मेहनताना तय किया गया है। 9 नंबर पर वार्ड ब्वॉय\सफाई कर्मचारी का जिक्र है। उनके लिए मेहनताना 359 रुपये प्रतिदिन का तय किया गया है। इसी विज्ञापन में डाटा एंट्री ऑपरेटर को प्रतिदिन 421 और लैब अटेंडेंट को 350 रुपये देने की बात की गई है। यानि सबसे नीचे एमबीबीएस छात्रों को रखा गया है।
गौरतलब है कि यूपी में कोरोना की रफ्तार बेकाबू हो चुकी है। न तो अस्पतालों में बेड हैं और न ही ऑक्सिजन की व्यवस्था। योगी सरकार ने लगातार हो रही आलोचनाओं के बाद एमबीबीएस छात्रों की सेवाएं इस लड़ाई में लेने का मन बनाया है। सरकार की कोशिश है कि मेडिकल ढांचे को मजबूत किया जाए, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या इतना भत्ता देकर सरकार छात्रों के साथ न्याय कर रही है।