ये लेख आप उस वक्त पढ़ रहे हैं जब पूरे देश में एक सवाल पूछा जा रहा है कि राम मंदिर बनेगा या नहीं… सब अपनी आस्था के हिसाब से अपने तर्क दे रहे हैं… हालांकि ये लेख केवल राम मंदिर से नहीं.. बल्कि सीता, हनुमान, शिव, गणेश, कृष्ण और ऐसे ही करोड़ों भगवानों के मंदिरों और इतनी ही क्यों तमाम दूसरे धार्मिक स्थलों और उनकी साफ-सफाई से जुड़ा हुआ है,,,? क्या आपने कभी सोचा है कि जिस फूल-पत्ती को आप पूजा सामग्री के साथ मंदिरों में भगवान को अर्पित करते हैं उनका उसके बाद क्या होता है? जाहिर है पंडित जी भी उसको घर ले जाकर क्या करेंगे.. अगर नहीं तो सोचिये क्योंकि ये इस वक्त बहुत बड़ा सवाल बन चुका है।
कुछ ऐसा ही सवाल कौंधा बिहार के समस्तीपुर में स्थित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के कुलपति डा. रमेश चंद्र श्रीवास्तव के जहन में, जब वो सपत्निक देवघर पहुंचे थे बाबा वैद्यनाथ के दर्शन करने। ये एक ज्योर्तिलिंग हैं और देश के कोने-कोने से श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने यहां आते हैं। श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाये गये फूल बेलपत्र मंदिर के लिये एक बड़ी समस्या थी। फूल बेलपत्र की सड़न से मंदिर और आस-पास के इलाकों में दुर्गन्ध फैली रहती थी। हालांकि कमल भी कीचड़ में ही खिलता है, यहां भी खिला।
डॉ रमेश के मन में कूड़े कचरे में पड़े दुर्गन्ध देते आस्था के प्रतिरूप फूल और बेलपत्र देखकर जैविक खाद बनाने की योजना ने आकार लिया.. वैसे तो ये काम उनके लिए ज्यादा कठिन नहीं था क्योंकि वो विश्विद्यालय परिसर में मौजूद घरों से कूड़ा इकट्ठा कर उससे ना केवल जैविक खाद बना रहे थे बल्कि पिछले साल उससे 55 लाख रुपए की भारी-भरकम कमाई भी की। यहां भी देवघर मंदिर प्रशासन से बातचीत करने पर वो तुरंत तैयार हो गया लेकिन सबसे बड़ी समस्या थी ऐसी जगह.. जहाँ केंचुए से बनने वाली जैविक खाद का संयंत्र लगाया जा सके। डॉ. श्रीवास्तव ने इसके लिए झारखंड सरकार के कृषि सचिव से मदद मांगी। क्योंकि देवघर मंदिर एक प्रसिद्ध मनोकामना मंदिर है जहाँ लाखों श्रद्धालु आाते है और हजारों क्विंटल फूल बेलपत्र रोज मंदिर में चढ़ाया जाता है। ऐसे में ऐसी जगह की जरूरत थी जहाँ सैकड़ो टन कचरे को इकटठा किया जा सके और वह मंदिर से ज्यादा दूरी पर भी ना हो ताकि ट्राँस्पोर्टेशन की लागत कम आये।
ऐसे में मंदिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर झारखंड के कृषि विज्ञान केन्द्र में केंचुआ खाद का संयंत्र लगाना सबसे उपयुक्त समझा गया। अब बारी थी झारखंड सरकार और मंदिर प्रशासन से एक सहमति-पत्र हस्ताक्षर कराने की। डा. श्रीवास्तव के इस प्रयास में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्वाइल साइंस, भोपाल ने भी सहयोग किया और देवघर में केंचुआ संयत्र की स्थापना हो गई। अब देवघर के मंदिर एवं आस पास के क्षेत्रों से विश्वविद्यालय अपने खर्च पर कूड़े का उठाव कराता है और उससे जैविक खाद बनाई जाती है। जैविक खाद की बिक्री भी झारखंड सरकार के सहयोग से शुरू हो गई है जिससे कमाई होनी भी शुरु हो गयी है। डॉ रमेश चंद्र की माने तो इसके कई सारे फायदे हैं.. उनके मुताबिक –
- कचरे से आय की योजना फायदे का व्यवसाय है इसलिए इसमें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की भी काफी गुंजाईश है। जब लोगों को लगेगा कि कूड़े से करोड़ों रूपये कमाए जा सकते है तो इस व्यवसाय में कई बड़े औद्योगिक घराने निवेश करेंगे जिससे बड़े स्तर पर रोजगार पैदा होगा।
- कचरे से बनने वाली जैविक खाद से यूरिया जैसी रासायनिक खाद का उपयोग कम करने में भी मदद मिलेगी। रासायनिक खाद के उपयोग से नुकसान की बातें अक्सर उठती रहती हैं। यहां तक कि खेतों की पैदावार क्षमता भी कम होती है।
- जैविक खाद के उपयोग से इंसानों में होने वाली बीमारियों में भी कमी होगी क्योंकि उसमें कोई रासायनिक अवशेष नहीं होगा।
- इससे भारत सरकार के आयात बिल में भी कटौती होगी क्योंकि रासायनिक खाद बनाने में लगने वाला कच्चा माल बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है।
- और सबसे जल्दी वो फायदा होगा जो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल के बेहद करीब है.. स्वच्छता.. जी हां.. जब कचरा ही नहीं फैलेगा तो मंदिरों और आस-पास के इलाके साफ-सुथरे रहेंगे औऱ उससे होने वाली बीमारियां भी कम होंगी।
- और सबसे बड़ा फायदा इससे होने वाली कमाई जो जन कल्याण के लिए इस्तेमाल की जा सकेगी
इतना ही नहीं.. डॉ. श्रीवास्तव की येाजना है कि देवघर से मिलने वाली आय से मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को छोटे गमले में तुलसी का पौधा लगाकर प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाये। इसके अतिरिक्त कचरे से होने वाली आय का 25 फीसदी मंदिर प्रशासन को भी दिया जाय।
इसके अलावा देवघर मंदिर में कचरे के सफल प्रबंधन के बाद मुजफ्फरपुर के प्रसिद्ध बाबा गरीबनाथ मंदिर में भी कचरे के प्रबंधन की योजना शुरू की गई है। इसके लिये विश्विद्यालय गरीबनाथ मंदिर प्रशासन से समझौता कर रहा है मुजफ्फरपुर के गरीबनाथ मंदिर में भी रोज हजारों श्रद्धालु आते हैं और सैकड़ो क्विंटल फूल बेलपत्र चढ़ाया जाता है।
हालांकि ऐसा नहीं हैं कि ये कोई पहली बार हुआ है.. देश के कुछ हिस्सों में ये हो रहा है.. लेकिन बहुत छोटे स्तर पर.. जबकि 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में 20 लाख हिंदू मंदिर हैं.. और एक आंकड़े के मुताबिक देश भर के मंदिर, मस्जिद और दूसरे धार्मिक स्थलों में 80 करोड़ टन फूल-पत्ती हर साल चढ़ाया जाता है। सोचिये अगर इन सब ने ये प्रक्रिया अपना ली.. तो कितने बड़े स्तर पर कचरे से सोना बनाया जा सकता है।