यह सर्वविदित है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई एकजुटता से ही जीती जानी संभव है। इसके लिए जितनी गंभीरता योगी सरकार दिखा रही है, उतना ही अस्पताल प्रबंधन, स्वास्थ्य कर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर और आम जनता को भी दिखानी होगी।
2020 में महामारी के पहले चरण में ज्यादा चुनौतियों के बावजूद हम सब ने मिलकर इसे हराया ही है। मगर अब 2021 में दूसरे चरण में काफी लापरवाही हो रही है।
जरा सोचिए कि जिस शख्स की कोरोना जांच रिपोर्ट 03 दिन में आएगी तब तक वो कहां जाए, क्या करें। स्वाभाविक ही वह घर में रहेगा, कामकाजी लोग बाहर भी आएंगे-जाएंगे। इस बीच यदि रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई तो उससे जुड़ी संक्रमण की चैन को खोजना कितना कठिन होगा।
यह विशुद्ध लापरवाही है कि व्यक्ति की निजी लैब में कोरोना जांच हो तो रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाए और सरकारी लैब से नेगेटिव। आरटीपीसीआर जांच में नेगेटिव आए, एंटीजन टेस्ट में पॉजिटिव। कोरोना की दूसरी मार के बीच कई जिलों से ऐसे उलट-पुलट उदाहरण आ चुके हैं। लखनऊ में तो एक शख्स को कोरोना टीका लगा ही नहीं और उसके पास उसका टीकाकरण सफल रहने का संदेश आ गया।
आरटीपीसीआर से हुई जांच की रिपोर्ट अपलोड होने से अभी तक 36 से 72 घंटे लगाए जा रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी 24 घंटे में रिपोर्ट देने का दावा करते आए हैं। अगर रिपोर्ट समय पर दी जा रही है, तो लोग नाहक शिकायतें क्यों करने लगे। उचित होगा कि कोरोना प्रबंधन से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी चेक कराएं कि तय समय पर जांच रिपोर्ट अपलोड नहीं हो पाने के पीछे कोई तकनीकी खामी तो नहीं है, अगर है तो इसे तुरंत दूर कराएं। कोई मानवीय बाधा है तो उसमें जिम्मेदारी बदलने में तनिक भी देरी नहीं होनी चाहिए।
बेड के इंतजार में कुछ मरीजों को घंटों एंबुलेंस में ही पड़े रहने जैसी भी खबरे सामने आई है। अब देखना ये चाहिए की जब सरकार निर्देश दे चुकी की जांच की गति और अस्पतालों में बिस्तर बढ़ाए जाए तो स्थानीय अधिकारी इसे नजरअंदाज कैसे कर रहे हैं। इसकी बेहतर परख के लिए मंत्रियों को एक बार फिर मैदान में उतारने में देरी नहीं करनी चाहिए।