भारतीय रिजर्व बैंक ने सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) के लिए कर्ज देने की सीमा मौजूदा 1 लाख रुपए से 25 हजार बढ़ाकर 1.25 लाख रुपए कर दिया। केंद्रीय बैंक ने शुक्रवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा के तहत यह फैसला किया। आरबीआई के इस कदम से ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में कर्ज की उपलब्धता बढ़ेगी। रिजर्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) या एमएफआई से लोन लेने वाले कर्जदारों के लिए घरेलू आय की पात्रता सीमा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मौजूदा एक लाख से बढ़ाकर 1.60 लाख रुपए और शहरी एवं कस्बाई इलाकों के लिए 1.25 लाख से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया है। आरबीआई ने कहा कि इस बारे में जल्द विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
माइक्रो फाइनेंस यूनिट्स के प्लेटफॉर्म एमएफआईएन के अध्यक्ष मनोज नांबियार ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, ‘यह अच्छा फैसला है। यह परिवारों की आय में 2015 से हुए बदलाव को दर्शाता है। इससे माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के ग्राहक पहले से ज्यादा कर्ज ले सकेंगे। उन्होंने कहा कि माइक्रो फाइनेंस संस्थाएं 5 करोड़ से अधिक लोगों की मदद करके वित्तीय समावेश बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान कर रही हैं।
2011 से अलग श्रेणी-
रिजर्व बैंक ने 2010 में आंध्र प्रदेश के माइक्रो फाइनेंस संकट के बाद वाईएच मालेगम की अध्यक्षता में एक उप-समिति का गठन किया था। इसे माइक्रो फाइनेंस सेक्टर के मसले और चुनौतियों का अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी गई थी। उप-समिति के सुझावों के आधार पर ही एनबीएफसी-एमएफआई की अलग श्रेणी गठित की गई थी और दिसंबर 2011 में विस्तृत नियामकीय दिशानिर्देश जारी किए गए थे।
भारतीय रुपए में लेनदेन को बढ़ावा-
रिजर्व बैंक ने कहा कि वह भारतीय रुपए में विदेशी लेन-देन, खास तौर पर ईसीबी (एक्सटर्नल कॉमर्शियल बारोइंग), ट्रेड क्रेडिट और निर्यात एवं आयात को प्रोत्साहित करने के कदम उठा रहा है। विदेश में रुपए के बाजार के संबंध में रिजर्व बैंक ने उषा थोराट समिति की रिपोर्ट के सुझावों का अध्ययन किया और उनमें से कुछ को स्वीकार कर लिया। इनमें घरेलू बैंकों को किसी भी समय अनिवासी भारतीयों को भारतीय खाते से बाहर घरेलू बिक्री टीम या विदेशी शाखाओं के जरिये विदेशी विनिमय की पेशकश शामिल है।