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उत्तर प्रदेश : भाजपा शासन में अपराध और भ्रष्टाचार की लहलहा रही फसल

लखनऊ/रायबरेली। भ्रष्टाचार व अपराधमुक्त शासन का वादा कर चौदह वर्षो का वनवास भोगकर जनता का भरोसा पाकर सत्ता में दोबारा लौटी भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकार अपने वादे पर खरी उतरती कही नही दिखाई पड़ रही है। भ्रष्टटाचार ने अपने विकास के नए मानक निर्धारित कर लिए तो अपराध जातिवाद की फ सल लहलहा उठी है। आम आदमी की पीड़ा चरम को छु रही है। प्रश्न अब यह है की आम आदमी से जुड़े मामलो में क्या पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने लगी है? क्या भू माफि याओ ने कब्जा की गयी भूमि वापस कर दी है? क्या बिना रिश्वत के राशन कार्ड, आय, जाति, निवास प्रमाण पत्र बनने लगे है? क्या जनता को बिजली मिल रही है? क्या जनता को सरकारी अस्पतालों में डाक्टर और दवाये उपलब्ध हो रहे है? हर प्रश्न का उत्तर यही है नही कुछ भी उपलब्ध नही हो रहा। कुछ नही बदला सब कुछ उसी तरह से बल्कि कहा जाये तो उसकी रफ्तार ने तेज गति पकड़ कर आम आदमी के भरोसे को तोड़ दिया।

भू-माफियाओ, दलालो, अपराधियो, नेताओ और अधिकारियो का नेटवर्क उसी तरह कार्यरत है जैसे पहले था। फर्क इतना आया की समाजवाद और बहुजनवाद का स्थान भगवावाद ने ले लिया है। पुलिस के संरक्ष्ण में जुए, सट्टे, भूमाफिआयो का कारोबार हो या तहसील में लेखपालो की रिश्वतखोरी सब अपनी गति से चल रहा है। शासन का स्थानीय प्रशासन पर कोई नियंत्रण नही मुख्यमंत्री हो या उनके मंत्री के आदेश वह यहाँ आते आते धड़ाम हो जाते है।
पीडब्लूडी, आरडीए, सिचाई, नगर पालिका, नगरपंचायतो में चोरी से टेंडर कराने और अपनों को उपकृत करने के लिए  टेंडर मैनेज करने की प्रथा अभी भी चल रही है।

जिला अस्पताल में दवाये नही, पीएचसी व सीएचसी में डाक्टर नही, तहसील में लेखपाल रिश्वतखोरी और नजूल भूमि में कब्जा करने कराने के लिए अभिलेखों में हेराफेरी के खेल में जुटे है  तो आरडीए बिल्डर लाबी की पैरोकारी में गैर कानूनी तरीके से लगी रहती। पुलिस घटनाओ को छिपाने तथ्यों को तोडऩे मरोडऩे और फरियादियो को धौस पट्टी अपराधियो को संरक्ष्ण देने कीअपनी परम्परा पर विराम नही लगा पायी। जनता त्राहि त्राहि कर रही शासक और सत्ताधारी दल के नेता अपने विकास के मार्ग तलाश करते हुए आम आदमी के मध्य से गायब है। हत्या, लूट, डकैती, छिनैती, बलात्कार का ग्राफ  पिछली सरकारो के औसत से कई गुना अधिक दर्ज किया जा रहा। राज्य की भाजपा सरकार अपने एजेंडे पर दो कदम भी नही चल पायी। जिसका परिणाम है की वह आम आदमी को त्रस्त किये निचले स्तर के भरष्टाचार को रत्ती भर नियंत्रित नही कर पायी, जिससे जनता को कही राहत नही मिली। भाजपा सरकार का इकबाल बुलन्द होने के पूर्व ही जमीन पर  आकर धराशायी हो चुका है।

कप्तान चौकस, अधीनस्थ बेलगाम
पुलिस की कार्यशैली से हटकर सोशल पुलिसिंग में भरोसा रखने और आम आदमी का दर्द महसूस करने वाले पुलिस अधीक्षक सुनील सिंह को अधीनस्थ अधिकतर मामलो में गुमराह कर असहयोग करने पर आमादा रहते हैं। थानो चौकियों में तैनात सिपाही दारोगा शासन की प्राथमिकताओं से अपने को दूर रख कार्य करने की अपनी शैली से विचलित नही हुए उन्हें किसी कार्यवाही की चिंता नही सताती। पुलिस अधीक्षक ने अपनी सरलता से विश्वास अवश्य जगाया है पर अधीनस्थ उसमे पलीता लगाने का अवसर नही छोड़ रहे है।

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