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आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाक के लिए अमेरिका से संबंध बेहतर के अतिरिक्त नही हैं…

पाक के पीएम इमरान खान अग्नि इम्तिहान देने के लिए शनिवार को अमरीका पहुंच चुके हैं. अमरीकी भूमि पर कदम रखते ही पाकिस्तान पीएम के लिए चुनौती होगी कि वह इस दौरे को कितना भुना सकते हैं. मन में देश की गिरती हालात का बोझ लिए वे ट्रंप से 22 जुलाई को मुलाकात करेंगे. यह उनके लिए सुनहरा मौका होगा. आपकों बता दें कि इमरान खान तीन दिनों के दौरे पर वाशिंगटन पहुंच चुके हैं. यहां पर वह पाकिस्तानी समुदाय को संबोधित भी करेंगे.

यात्रा को लेकर कितने संजीदा

इमरान खान यात्रा को लेकर कितने संजीदा हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके आने से पहले सरकारी अमला पूरी मुस्तैदी से वाशिंगटन में डटा हुआ है.पाकिस्तान पीएम के साथ शाह महमूद कुरैशी, व्यापार  निवेश सलाहकार रज्जाक दाऊद, वित्त सलाहकार हाफ़िज पाशा  सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा, आईएसआई प्रमुख फ़ैज हयाद  आईएसपीआर के प्रमुख जनरल आसिफ गफ़ूर सहित कई बड़े ऑफिसर उपस्थित हैं. यात्रा को पास बनाने  पाकिस्तान की जनता को भरोसे में लेने के लिए यात्रा का खूब प्रचार भी हो रहा है.

दोनों राष्ट्रों के बीच कड़वाहट बढ़ गई

गौरतलब है कि बीते बहुत ज्यादा समय से दोनों राष्ट्रों के बीच कड़वाहट बढ़ गई है. आतंकवाद के मामले को लेकर अमरीका लगातार पाक पर शिकंजा कस रहा है. अमरीकी रक्षा मंत्री माइक पोंपियो ने बीते एक वर्ष में पाक को करीब 17 बार आतंकवादी पर कार्रवाई को लेकर चेतावनी जारी की है. उन्होंने आतंकवाद को लेकर कई बार पाकिस्तान को घेरने की प्रयासकी है. मगर अब तक पाक ने ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जिससे अमरीका सहमत हो सके.

अमरीका संतुष्ट नहीं दिखा

हाल ही में जमात-उद-दावा आतंकवादी संगठन के मुखिया हाफिज़ सईद की गिरफ्तारी को लेकर भी अमरीका संतुष्ट नहीं दिखा. ट्रंप प्रशासन का बोलना है कि यह ढकोसला था.पाकिस्तान के इतिहास को देखा जाए तो उसने कभी हाफिज़ सईद को अरैस्ट नहीं किया. उसने दबाव पड़ने पर केवल उसे नजरबंद किया है. यह पहला मौका है कि जब हाफिज़ सईद की गिरफ्तारी हुई. मगर इसके बावजूद ट्रंप प्रशासन इसे पाक का नाटक मान रहा है.

ट्रंप की मेजबानी के कई अर्थ

इमरान की मेजबानी के लिए ट्रंप की ख़्वाहिश से पता चलता है कि दोनों पक्षों में कुछ खास मुद्दों पर चर्चा हो सकती हैै. अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई में पाक की किरदार को जरूरी मान रहे हैं. विशेष रूप से युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में इस्लामाबाद की किरदार सबसे अहम हैं. मगर अभी तक पाक कभी भी अमरीका की कसौटी पर खरा नहीं उतरा है. एक वर्ष पहले ट्रंप ने हक्कानी नेटवर्क को लेकर पाक के रवैये पर असहमति जताई थी. इसके बाद से उसने पाकिस्तान पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे.

पाकिस्तान के पास समझौता ही विकल्प

अमरीका के साथ मीटिंग को लेकर इमरान खान के पास विकल्प बहुत कम हैं. आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाक के लिए अब अमरीका से अपने संबंध बेहतर करने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं हैं. अमरीका का बोलना है कि पाक आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई करे. इसके साथ उसके वित्तपोषण को भी बंद करे.

इस मीटिंग में ट्रंप इमरान से किसी खास मुहिम पर मुहर लगवा सकते हैं. खास तौर लश्कर  जमात-उद-दावा जैसे बड़े आतंकवादी संगठन को खात्मे को लेकर इमरान से हामी ले सकते हैं. इसके बदले पाक को राहत पैकेज की मंजूरी की शर्त रखी जा सकती है. ट्रंप इसके साथ अफगानिस्तान की समस्या का हल भी निकलना चाहते हैं. इसमें पाक की सेना अहम किरदार अदा कर सकती है.

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