सात सितंबर की आधी रात जब पूरा देश नींद के आगोश में होगा, तब धरती से 3,84,000 किमी दूर मिशन चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कदम रखेगा। यह चांद का वह सबसे ठंडा हिस्सा है, जहां भी करोड़ों सालों से सूरज की रोशनी नहीं पड़ी है और अभी तक कोई देश वहां तक नहीं पहुंचा है। वहीं इस चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के बाद पूरा दारोमदार विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर पर होगा।
रात 01:40 बजे शुरू होगी लैंडिंग रात 01:40 बजे विक्रम लैंडर चांद की धरती से 35 किमी की ऊंचाई पर लगभग 6,000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से नीचे उतरना शुरू करेगा। मात्र 10 मिनट में ही विक्रम लैंडर 7.4 किमी की ऊंचाई तक पहुंच जाएगा और इसकी गति घट कर लगभग 526 किमी प्रति घंटा हो जाएगी। अगले 38 सेकेंड में विक्रम की स्पीड घट कर 331.2 किमी प्रति घंटा हो जाएगी और यह पांच किमी की ऊंचार पर पहुंच जाएगा।
25 सेकेंड का वक्त लेगा अगले डेढ़ मिनट में विक्रम लैंडर चांद की धरती से 400 मीटर ऊपर होगा और रफ्तार घट कर 100 किमी प्रति घंटा तक पहुंच जाएगी। लेकिन जैसे ही विक्रम सतह से 400 मीटर ऊपर होगा तो यह गति के साथ नीचे गिरना बंद कर देगा और 12 सेकेंड तक हवा में मंडरायेगा और सेंसर्स के जरिये कुछ आंकड़े एकत्र करेगा। अगले 66 सेकेंड में यह सतह से 100 मीटर ऊपर होगा और पहले से ही तय लैंडिंग साइट तक पहुंचने के लिए 25 सेकेंड का वक्त लेगा और हवा में मंडराने के दौरान लैंडर उतरने के लिए जरूरी डाटा एकत्र करेगा।
10 मीटर की ऊंचाई से सतह तक पहुंचने में 13 सेकेंड का वक्त अगर विक्रम लैंडर उतरने के लिए पहली जगह चुनता है, तो लैंडर 65 सेकेंड में 10 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाएगा, और इसकी रफ्तार काफी कम हो जाएगी। जिसमें यह वर्टिकल तरीके से लैंडिंग करेगा। वहीं अगर यह लैंडिंग के लिए दूसरी साइट चुनता है तो सतह से 60 मीटर ऊपर तक पहुंचने में 40 सेकेंड लेगा और अगले 25 सेकेंड में 10 मीटर नीचे आएगा। 10 मीटर की ऊंचाई से सतह तक पहुंचने में 13 सेकेंड का वक्त लेगा और रफ्तार 0 किमी होगा।
प्रज्ञान रोवर की खासियतें लैंडिंग के 15 मिनट बाद विक्रम पहली फोटोग्राफ्स भेजेगा। लैंडिंग के चार घंटे बाद 27 किलो वजह वाला प्रज्ञान रोवर विक्रम लैंडर से बाहर निकलेगा। ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस प्रज्ञान रोवर में छह रोबोटिक पहिये हैं। यह करीब 500 मीटर तक सफर कर सकता है। यह एक सेंटीमीटर चलने में एक सेकेंड का वक्त लेगा। इसके फ्रंट में एक मैगापिक्सल के दो मोनोक्रोमेटिक नैवकैम लगे होंगे। नीचे इसरो स्टेशन में बैठे वैज्ञानिकों को आसपास की जगह का 3डी व्यू देगा। आईआईटी कानपुर ने इसके लिए खास लाइट बेस्ड मैप जेनरेशन सिस्टम डेवलप किया है।