दूसरी बार सत्ता में आई नरेंद्र नरेन्द्र मोदी सरकार का यह पहला बजट था. बजट पेश होने के एक सप्ताह बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हिन्दुस्तान टाइम्स से वार्ता की. उन्होंने बजट के ग्रोथ को लेकर विजन, निवेश व उपभोग बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम व कर को लेकर चर्चा की. पेश है वार्ता के अंशसवाल: बजट से पहले ऐसा माना जा रहा था कि राजकोषीय घाटे के आंकड़ों को लेकर सरकार थोड़ा इधर-उधर मैनेज कर सकती है क्योंकि सरकार का पहली चिंता ग्रोथ है. आप बजट तैयार करने से पहले क्या सोच रही थी? आप राजकोषीय घाटे के आंकड़ों को लेकर अटकी। । क्या टारगेट को न पाना भी विकल्प था?
जवाब: सरकार का पूरा फोकस ग्रोथ पर था व ऐसे कदम उठाए जाएं जिससे अर्थव्यवस्था में ग्रोथ आए. फरवरी में अंतरिम बजट पास किया गया था. ये 14वें वित्त आयोग का आखिरी वर्ष है. हमारा कुछ विजन अंतरिम बजट में पहले ही बताया गया था. मैंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि सरकार के फ्लैगशिप वेलफेयर कार्यक्रम न रुके, ताकि, उपभोग बढ़े. ऐसा करने का यही एक उपाय था क्योंकि इससे पैसा ठीक हाथों में जाता है.
मेरा उद्देश्य उपभोग बढ़ाना था क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था के साइकिल में तेजी आती है. इसमें पहले से चल रहे वेलफेयर कार्यक्रम के जरिए मदद मिलती क्योंकि इससे लोगों के पास पैसा जाता. यहा डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के जरिए सीधे उनके पास जाता इसलिए इन्हें टॉप प्रॉयोरिटी में रखा गया. इसकेअतिरिक्त मेरे पास राजकोषीय उत्तरदायित्व व बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम) था. एक मंत्री होने के नाते ये मेरा कार्य था कि इसके नियमों का पालन करूं. राजकोषीय घाटे को लेकर एक रास्ता पहले से ही बताया गया है, तो मैं उसका उल्लंघन कैसे कर सकती हूं?
इसलिए मैंने इस बात की पूरी प्रयास की है कि उपभोग का लॉजिक कार्य करे. ये फ्लैगशिप वेलफेयर कार्यक्रम के जरिए होने कि सम्भावना था क्योंकि इससे पैसा लोगों के पास जाता. साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर पर पब्लिक इन्वेस्टमेंट से ग्रोथ फिर से प्रारम्भ होती. ये सारे ढंग से साफ था कि मुझे क्या करना है. मुझे एक बड़ी पिक्चर पेश करनी थी व साफ मैसेज देना था कि उपभोग को बढ़ाना है. इसके साथ ही रिफॉर्म भी जुड़ा हुआ था.
सवाल: जैसा आपने कहा रिफॉर्म पर फोकस था, बिजनेस को सरल बनाने के लिए कदम उठाए ताकि प्राइवेट इन्वेस्टमेंट गैप को भर सके। ।
जवाब: हमने अभी इस बारे में बात नहीं की है व इसे छोड़ दिया है लेकिन एक रास्ता जरूर दिखाया है. रेलवे एक ऐसा एरिया है जहां हम चाहते हैं कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप आए. डिसइनवेस्टमेंट जरिया है। ।
सवाल: लोगों का ऐसा मानना है कि सरकार राजकोषीय घाटे को लेकर चिंतित नहीं है क्योंकि प्राइवेट सेक्टर निवेश के मोड में नहीं है. ज्यादातर सभी भारतीय कंपनियों की बैलेंस शीट पर लोन है. जो कि बहुत अच्छी कंपनियों की गिनती में आती हैं, वह भी बहुत अच्छे हाल में नहीं है. कई इन्वेस्टमेंट कर चुकी है व वह कुछ वर्षों तक नए इन्वेस्टमेंट करने की हालत में नहीं है. ऐसे में प्राइवेट इन्वेस्टेमेंट आएगा कैसे?
जवाब: यही कारण है कि हम हिंदुस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट के लिए बाहर देख रहे हैं. राज्यों को भी बाहर से उधार लेने का विकल्प दिया है. इस बात ध्यान रखा जा रहा है कि एनबीएफसी के संकट को देखा जाए, ताकि छोटे निवेश हो सकें.
सवाल: व विदेशी निवेश? आपने एफडीआई नॉर्म्स में ढील दी है। ।
जवाब: हां ये ठीक है. हमने व करने का स्कोप दिया है.
सवाल: बाहर से उधार लेने पर चल रही बहस नयी नहीं हैं, लेकिन हम हमेशा से ही बाहर से फंड लेने को लेकर बहुत ज्यादा रूढ़िवादी रहे हैं क्योंकि इससे जोखिमों की तरफ ज्यादा उजागर होते हैं। ।
जवाब: हां इस पर बहुत ज्यादा बहस होती रहती है. विदेशों में कई ऐसी बाजार है सैचुरेटेड है. उनके पास फंड्स बहुत हैं लेकिन नया इन्वेस्टमेंट नहीं है जिस परठीक रिटर्न मिल सके. ये कई द्विपक्षीय में सामने आया है. हां ये ठीक है हमारे कई फैसलों में बहुत ज्यादा सोचा जाता है.