क्या होती हैं एफडीसी दवाएं?
इसका अर्थ है फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन यानी वे दवाएं, जो दो या अधिक दवाओं के कॉम्बिनेशन से बनी हों। हिंदुस्तान में बिना क्लीनिकल ट्रायल के ये दवाएं बिकती हैं, लेकिन इनका शरीर पर काफ़ी दुष्प्रभाव होता है। अन्य राष्ट्रों के मुक़ाबले हिंदुस्तान में ही सबसे अधिक ये दवाएं बिकती हैं।डॉक्टर्स कहते हैं कि बैन इन दवाओं पर नहीं, इनके कॉम्बिनेशन पर लगा है यानी यही दवाएं भिन्न-भिन्न सॉल्ट में बाज़ार में अभी भी उपलब्ध हैं, पर वो सिंगल सॉल्ट हैं। अमेरिका और अन्य विकसित राष्ट्रों में एफडीसी दवाएं काफ़ी कम और सीमित मात्रा में ही बिकती हैं, जबकि हिंदुस्तान में ये सबसे अधिक बिकती हैं। अन्य राष्ट्रों में सख़्त नियम और क़ानून तथा प्रशासन की जागरूकता इसकी बड़ी वजह है। हिंदुस्तान में इन चीज़ों के अभाव के चलते अब तक सब कुछ चल रहा था। हालांकि साल 2016 में भी सरकार ने इन दवाओं को प्रतिबंधित करने का कोशिश किया था, लेकिन दवा कंपनियां इस ़फैसले के ख़िलाफ़ न्यायालय में चली गई थीं।
क्यों बनाती हैं कंपनियां ऐसी दवाएं?
दवा कंपनियों को इन दवाओं से भारी मुनाफ़ा होता है, क्योंकि इन्हें बनाना सस्ता और सरल होता है। ये पहले से टेस्ट किए गए सॉल्ट पर बनती हैं, ऐसे में नया सॉल्ट ढूंढ़ने की मश़क्क़त और ज़रूरत नहीं पड़ती। साथ ही ये बिकती भी अधिक हैं, क्योंकि ओवर द काउंटर इन्हें ख़रीदा जाता है, जहां डॉक्टरी प्रिस्क्रिप्शन की ज़रूरत नहीं।
सख़्त नियमों की कमी भी है एक वजह
नियमों की बात की जाए, तो क्लीनिकल टेस्ट और ड्रग कंट्रोलर की मंज़ूरी के बाद ही इन दवाओं को बाज़ार में उतारा जाना चाहिए। परंतु केन्द्र से मंज़ूरी न मिलने के भय से ये कंपनियां प्रदेश सरकार के ड्रग कंट्रोलर से मंज़ूरी ले लेती हैं, क्योंकि हर प्रदेश के नियम भिन्न-भिन्न हैं, जिससे इन्हें परमिशन सरलता से मिल जाती है। हालांकि केन्द्र की मंज़ूरी के बिना इनका बाज़ार में खुलेआम बिकना ग़ैरक़ानूनी ही है।
बेहद नुक़सानदेह होती है एफडीसी दवाएं
आपको अपनी समस्या के लिए एक ही दवा की ज़रूरत है, लेकिन यदि आप एफडीसी दवा लेते हैं, तो बेवजह दूसरे सॉल्ट यानी दवाएं भी आपके शरीर में जा रही हैं। एक दवा से किडनी या लिवर पर यदि असर पड़ता है, तो अन्य दवाओं के साथ में शरीर में जाने से यह नुक़सान बढ़ जाता है।
मरीज़ अपने चिकित्सक से पूछें ये सवाल…
- आपको जो भी दवाएं लिखी जाती हैं, आपका हक़ है कि अपने चिकित्सक से उसकी पूरी जानकारी लें।
- उनसे पूछ लें कि ये किस तरह की दवाएं हैं?
- क्या इनमें से कोई एफडीसी भी हैं? यदि हां, तो इन्हें लेना कितना ज़रूरी है?
- उनके विकल्प के बारे में पूछें।
- दवाओं के साइड इफेक्ट्स की जानकारी लें।
- आपको किन चीज़ों से एलर्जी है, यह भी चिकित्सक को बता दें।
- यदि दवा से कोई समस्या महसूस हो रही हो, तो फ़ौरन चिकित्सक को बताएं।
- यदि आप किसी अन्य बीमारी के लिए पहले से कोई दवा ले रहे हैं, तो उसके बारे में भी चिकित्सक को बताएं व उससे पूछें कि उस दवा के साथ आप इन दवाओं का सेवन कर सकते हैं या नहीं।
निमेस्यूलाइड: यह प्रतिबंधित दवा है, इसके बावजूद बिक रही है। यह दर्द, शोथ और बुख़ार के लिए दी जाती है। पैरासिटामॉल जहां 4-6 घंटे तक ही प्रभाव दिखाती है, वहीं निमेस्यूलाइड 12-18 घंटे तक असरकारक होती है, लेकिन लिवर पर इसके दुष्प्रभाव को देखते हुए यूनियन हेल्थ मिनिस्ट्री ने साल 2011 में इस पर रोक लगाई थी, पर यह अब भी सरलता से उपलब्ध है।
एनाल्जिन: यह पेनकिलर है व विश्वभर में प्रतिबंधित है, पर हिंदुस्तान में नहीं। बोन मैरो पर इसका बुरा असर देखते हुए इस पर रोक लगी हुई है, पर हिंदुस्तान में इस पर रोक नहीं है।
फिनाइलप्रोपनॉलअमाइन (ब्रांड – डिकोल्ड/ विक्स): वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन द्वारा विक्स वेपोरब को टॉक्सिक घोषित किया गया है। इससे अस्थमा और टीबी जैसे रोग तक होने की संभावना रहती है। यही वजह है कि नॉर्थ अमेरिका और यूरोप के कई राष्ट्रों में इस पर प्रतिबंध लगया हुआ है। इसी तरह से डिकोल्ड और विक्स एक्शन 500 हिंदुस्तान में छोड़कर कई जगहों पर बैन्ड है, क्योंकि इनसे ब्रेन हैमरेज का ख़तरा रहता है।
डिस्प्रिन: ब्रेन और लिवर में सूजन की एक वजह बन सकती है यह दवा, इसीलिए अमेरिकी सरकार ने साल 2002 में इस पर प्रतिबंध लगाया था। इसकी वजह से नींद की ख़ुमारी, मतली, उल्टी जैसे लक्षण भी उभर सकते हैं। लेकिन यह हिंदुस्तान में सबसे फेवरेट पेनकिलर है।
नाइट्रोफ्यूराज़ोन: यह एंटीबैक्टीरियल मेडिसिन है, लेकिन इससे कैंसर का ख़तरा होने कि सम्भावना है।
ड्रॉपेरिडॉल: एंटीडिप्रेसेंट मेडिसिन है यह, जिससे अनियमित हार्ट बीट की समस्या हो सकती है व यही इसके प्रतिबंध का कारण है।
इसी तरह से व भी कुछ दवाएं हैं, जो ग्लोबली बैन्ड हैं, पर हिंदुस्तान में उपलब्ध हैं।
भारत में प्रतिबंधित कुछ कॉमन दवाएं
सैरिडॉन: यह प्रॉपीफैनाज़ॉन, पैरासिटामॉल व कैफीन के कॉम्बिनेशन से बनती है। यह एकमात्र पेनकिलर है, जो तीन एक्टिव केमिकल के मिलावट से बनी है, जिसमें कैफीन भी एक है।प्रॉपीफैनाज़ॉन ब्लड सेल्स को कम कर सकता है। बोन मैरो पर बुरा प्रभाव डाल सकती है यह दवा।
डोलामाइड: यह जॉइंट पेन के लिए यूज़ होती है, जिसमें प्रतिबंधित निमेस्यूलाइड भी है।
रिलीफ/एलकोल्ड: किडनी और लिवर पर बुरा प्रभाव, साथ ही सिरदर्द और कब्ज़ जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
एज़िथ्रोमाइसिन के 6 कॉम्बिनेशन्स को भी बैन किया गया है। इसी तरह से कैल्शियम ग्लूकोनेट व कैफीन के भी कुछ कॉम्बिनेशन्स हैं। निमेस्यूलाइड व पैरासिटामॉल के बहुत सारे कॉम्बिनेशन्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। लिस्ट बहुत लंबी है व सभी प्रतिबंधित दवाओं की जानकारी आप सीडीएससीओ यानी सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन की साइट पर जाकर चेक कर सकते हैं।
आप क्या कर सकते हैं?
- प्रतिबंधित दवाओं की जानकारी हासिल करें।
- मामूली सिरदर्द और बुख़ार के लिए सिंगल सॉल्टवाली दवा लें। बेतहरीन विकल्प है- पैरासिटामॉल।
- बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक्स न लें।
- डॉक्टर द्वारा बताई दवा का पूरा कोर्स करें।
- दवा लेते समय एक्सपायरी डेट चेक करें।
- दवाओं को स्टोर करने के नियमों का भी ठीक पालन करें।
- ओवर द काउंटर यानी अपनी मर्ज़ी से बिना डॉक्टरी सलाह के दवा लेना बंद कर दें।
ओवर द काउंटर सस्ता और सरल विकल्प लगता है…
केमिस्ट शॉप ओनर का बोलना है कि एक फार्मासिस्ट को सभी बैन्ड ड्रग्स के बारे में पता होता है, लेकिन छोटे केमिस्ट बैन्ड ड्रग्स को भी बेचने से हिचकिचाते नहीं व वो भी मनचाहे दाम पर।
भारत में दूसरी ओर लोगों की प्रवृत्ति कुछ ऐसी है कि वो ओवर द काउंटर मेडिसिन्स पर ही अधिक निर्भर रहते हैं, क्योंकि उन्हें यह सरल व सस्ता विकल्प लगता है।
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- अधिकांश ग़रीब और सामान्य वर्ग के लोग सीधे केमिस्ट से दवाएं लेते हैं, क्योंकि बड़े चिकित्सक के पास जाना उन्हें महंगा लगता है व उनकी सोच यही होती है कि जितना गली-नुक्कड़ के क्लीनिक में बैठे चिकित्सक को जानकारी है, उतनी तो केमिस्ट को भी होती है, ऐसे में चिकित्सक की फीस और भीड़ आदि से बचने के लिए वो सीधे मेडिकल से दवा लेना पसंद करते हैं।
- ऐसे लोगों को दवाओं के साइड इफेक्ट्स के बारे में पता नहीं होता व न ही वो जानने के इच्छुक होते हैं, उनमें उतनी जागरूकता ही नहीं होती। इसी का फ़ायदा केमिस्ट उठाते हैं।वो भी उन्हें बैन्ड ड्रग्स और दवाओं के साइड इफेक्ट्स के बारे में कुछ नहीं बताते। अपनी बातों से घुमा देते हैं व कहते हैं कि ये दवाएं काफ़ी असरकारी हैं।
- अधिकांश लोगों की यह भी प्रवृत्ति होती है कि उन्हें यदि पता भी हो कि दवा का कुछ साइड इफेक्ट है, तब भी वो जल्दी आराम पाने के लिए उन दवाओं के सेवन से हिचकिचाते नहीं। उनका मक़सद तुरंत आराम पाना होता है।