आज अधिकतर लोगों के वैवाहिक ज़िंदगी में आपसी तालमेल की कमी आ गई है. इस कारण पति व पत्नी मानसिक तनाव व परेशानियों का सामना करते हैं. ऐसी स्थिति में ज़िंदगी बोझ लगने लगता है व निराशा हावी हो जाती है. इन परिस्थितियों से बचने के लिए पति व पत्नी, दोनों को यहां बताई जा रही तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
– बुरे समय में न छोड़ें एक-दूसरे का साथ
– पति-पत्नी को समझनी चाहिए एक-दूसरे के मन की बात
– गलत कार्य करने से रोकना चाहिए
जब श्रीराम को मिला वनवास तो सीता ने दिया साथ
रामायण में जब कैकयी ने राजा दशरथ से दो वरदानों में भरत के लिए राज्याभिषेक व श्रीराम के लिए चौदह साल का वनवास मांगा व दशरथ को यह दोनों बातें मानना पड़ी थी. तब श्रीराम वनवास जाने के लिए तैयार हो गए. उस समय लक्ष्मण के साथ ही सीता भी श्रीराम के साथ वनवास जाने के लिए तैयार हो गईं. सीता सुकोमल राजकुमारी थीं, इस कारण सभी ने उन्हें वनवास पर न जाने के लिए रोकना चाहा था. वन में नंगे पैर चलना, खुले वातावरण में रहना, सीता के संभव नहीं था. फिर भी सीता ने अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए श्रीराम के दुख में भी साथ देने के लिए वनवास पर गईं. उस काल में श्रीराम व सीता ने कई दुखों का सामना साथ-साथ किया.
आज भी पति-पत्नी के संबंध में यह बात होना महत्वपूर्ण है. सुख के दिनों में तो सभी साथ देते हैं, लेकिन दुख के दिनों में पति-पत्नी के सच्चे प्रेम व सरेंडर की इम्तिहान होती है. इस इम्तिहान में पास होने के बाद वैवाहिक ज़िंदगी सुखद व आनंद से भरपूर हो जाता है.
जब सीता ने समझ ली थी श्रीराम के मन की बात
वनवास पर जाते समय श्रीराम, लक्ष्मण व सीता के साथ ही निषादराज को केवट ने अपनी नाव से गंगा नदी पार करवाई थी. जब केवट ने उन्हें गंगा नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचा दिया तब श्रीराम उसे भेंट स्वरूप कुछ देना चाहते थे. श्रीराम के पास केवट को देने के लिए कुछ नहीं था. श्रीराम के कहे बिना ही सीता ने उनकी मन:स्थिति को समझकर अपनी अंगूठी उतारकर केवट को भेंट करने के लिए आगे बढ़ा दी.
इस प्रसंग से समझा जा सकता है कि पति-पत्नी के बीच ऐसा तालमेल होना चाहिए कि बिना कुछ कहे ही वे एक-दूसरे की ख़्वाहिश समझ सके. जो दंपत्ति ये बात ध्यान रखते हैं, उनके ज़िंदगी में चाहे कितनी भी परेशानियां क्यों न आए, उनका वैवाहिक ज़िंदगी सुखद ही रहता है.
मंदोदरी ने रावण को समझाया था श्रीराम से बैर न करें
जब श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ समुद्र पार कर लंका पहुंच गए थे तब मंदोदरी समझ गई थी कि लंकापति रावण की हार तय है. इस कारण मंदोदरी ने रावण को समझाने का बहुत कोशिश किया कि वे श्रीराम से युद्ध ना करें. सीता को लौटा दें. श्रीराम खुद भगवान का अवतार हैं. मंदोदरी में कई बार रावण को समझाने का कोशिश किया कि श्रीराम से युद्ध करने पर कल्याण नहीं होगा, लेकिन रावण नहीं माना. श्रीराम के साथ युद्ध किया व अपने सभी पुत्रों व भाई कुम्भकर्ण के साथ ही खुद भी मौत को प्राप्त हुआ.
पति-पत्नी के ज़िंदगी में यह बात भी जरूरी है कि एक-दूसरे को गलत कार्य करने से रोकना चाहिए. गलत कार्य का बुरा नतीजा ही आता है. सही-गलत को समझते हुए एक-दूसरे को ठीक सलाह देनी चाहिए. साथ ही, दोनों को ही एक-दूसरे की ठीक सलाह माननी भी चाहिए. पति-पत्नी ही एक-दूसरे के श्रेष्ठ सलाहकार होते हैं.