निर्जला एकादशी का व्रतज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है. हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है. ये व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है. इस एकादशी का व्रत करके श्रद्धा व सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए. इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को सारे वर्ष की एकादशियों का फल मिलता है. इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है.
- एकादशी व्रत का इतिहास
एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यासजीके मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया कि ‘महाराज! मुझसे कोई व्रत नही किया जाता.दिन भर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है. अतः आप कोई ऐसा तरीका बतला दीजिये जिसके असर से स्वत: सद्गति हो जाय.‘ तब व्यासजी ने बोला कि ‘तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला कर लो, इसीसे सालभर की एकादशी करने के समान फल हो जायगा.’ तब भीम ने वैसा ही किया व स्वर्ग को गये. इसलिए यह एकादशी ‘ भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है.
- निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए व उपवास रखकर किया जाता है. इसलिए यह व्रत मुश्किल तप व साधना के समान महत्त्व रखता है. हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ व मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है. इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यता है कि पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था व वैकुंठ को गए थे.इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ.
सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित वर्ष की 25 एकादशी व्रत का फल मिलता है. जहाँ वर्ष भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार धैर्य का महत्त्व है. वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का धैर्य भी ज़रूरी है. इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है. यह व्रत मन को धैर्य सिखाता है व शरीर को नयी ऊर्जा देता है. यह व्रत पुरुष व स्त्रियों दोनों द्वारा किया जा सकता है. व्रत का विधान है.
- दिनभर इन बातों का ध्यान रखें
1. पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अतिरिक्त अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीएं.
2. दिनभर कम बोलें व हो सके तो मौन रहने की प्रयास करें.
3. दिनभर न सोएं.
4. ब्रह्मचर्य का पालन करें.
5. झूठ न बोलें, गुस्सा व टकराव न करें.
व्रत कथा
- जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, कार्य व मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था. तब युधिष्ठिर ने बोला – जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिए. भगवान श्रीकृष्ण ने बोला हे राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ ववेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् हैं.
- तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण व शुक्ल पक्ष की एकादशी में अनाज खाना वर्जित है. द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें. फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में खुद भोजन करें. यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिए. राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल व सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं ठीक जाएगी.
- भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा- यदि तुम नरक को दूषित समझते हो व तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है व तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना.
- भीमसेन कहे महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने हकीकत कहता हूँ. मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ. मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है. इसलिए महामुनि ! मैं सारे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ. जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये. मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा.
- व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो. केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, वरना व्रत खत्म हो जाता है. एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है. इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल व सुवर्ण का दान करे.इस प्रकार सब काम पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें. वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है. शंख, चक्र व गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे बोला था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय वएकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है.“
- कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान व कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो. उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन वजलमयी धेनु यानी पानी में खड़ी गौ माता का दान करना चाहिए, सामान्य गौ माता या घी से बनी गौ माता का दान भी किया जा सकता है. इस दिन दक्षिणा व कई तरह की मिठाइयों से ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए. उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं.
- जिन्होंने श्रीहरि की पूजा व रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को व आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है. निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए. जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है. जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है. चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है.
- भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए. उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए.ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के नजदीक पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है. इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद खुद भोजन करे. जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है. यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत शुरुआत कर दिया.