लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन की गाड़ी पटरी से उतर गई है। मुख्यमंत्री जी चाहे जितने बढ़-बढ़कर दावे करें, अधिकारियों पर उनका अंकुश नहीं दिखाई देता है। कानून व्यवस्था बदतर है। स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है। इस सबकी किसी को फिक्र नहीं। पूरी सरकार और सरकारी सेवाएं रामभरोसे चल रही है।
अपराधी अपराध करके पुलिस की नाक के नीचे से फरार
एटा में महिला थाना के स्टाफ क्वार्टर में रहने वाली सहायक अभियोजन अधिकारी (एपीओ) नूतन यादव की गोली मार कर हत्या कर दी गई। वह जलेसर कोर्ट में अभी एक साल पहले ही एपीओ बनी थी। एक अन्य घटना लखनऊ के सरोजनीनगर तहसील में समाधान दिवस पर हुई जब न्याय की गुहार लगाती महिला अंततः डीएम के सामने आत्मदाह की कोशिश करने लगी। हुसैनगंज लखनऊ के बरफखाना मुहल्ले में भी एक महिला की चाकू से गोदकर हत्या कर दी गई। महिलाओं और बच्चियों से दुष्कर्म की घटनाएं थम नहीं रही है। अपराधी अपराध करके पुलिस की नाक के नीचे से फरार हो जा रहे हैं। पुलिस तंत्र पंगु है क्योंकि समाजवादी सरकार में यूपी डायल 100 नं0 की जो व्यवस्था की गई थी उसे भी बर्बाद कर दिया गया है।
अस्पतालों में दवाओं का भी अभाव
स्वास्थ्य सेवाओं का हाल तो और भी बुरा है। अस्पतालों में पर्याप्त संख्या में डाक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ की कमी तो पहले से है अब विभागीय लापरवाही से अस्पतालों में दवाओं का भी अभाव हो गया है। रक्तचाप, शूगर और बुखार तक की दवाएं जब नहीं उपलब्ध है तो यह उम्मीद करना कि कैंसर, हार्ट, लीवर किडनी के गम्भीर रोगों की दवाएं आसानी से उपलब्ध होगी दिवास्वप्न ही है। समाजवादी सरकार में तो इन सभी बीमारियों के इलाज मुफ्त थे। पैथालाॅजी लैब में जांचे निःशुल्क थी। रोगियों को दवाओं का अभाव भी नहीं झेलना पड़ता था। भाजपा सरकार को इसका जवाब देना पड़ेगा।
पीजीआई के समान भत्तों की मांग पर लोहिया संस्थान के
सपा अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा की राज्य सरकार कितनी संवेदनहीन है इसी से जाहिर है कि लखनऊ में पीजीआई के समान भत्तों की मांग पर लोहिया संस्थान के डाक्टरों को हड़ताल पर जाना पड़ा। इलाज के लिए आए मरीज तड़पते रहे। केजीएमयू में, लारी कार्डियोंलाॅजी में दिल के मरीज तड़प कर मरते रहे। वहां एक विवाद के बाद तालाबंदी कर दी गई थी। आपरेशन टल गए। मरीजों की जांचे बंद हो गई। इससे पूर्व भी अस्पतालों में हड़ताल के कारण मरीज मुसीबत में फंस चुके है। कितनों ने अस्पतालों के गेट पर दम तोड़ दिया। कई की सांसे तो एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल की दौड़ के बीच में ही थम गई। आश्चर्य है कि मुख्यमंत्री जी को यह सब नहीं दिखाई देता है। वे अपने ही राग में मगन हैं। जनता के दुःख दर्द से उन्हें कोई लेना देना नहीं है। सत्ता के मद में भाजपा के मंत्रियों की भी संवेदनाएं मर गई है। स्वास्थ्यमंत्री मरीजों के दुःखदर्द के प्रति बेपरवाह हैं।