बसपा सुप्रीमो मायावती ने बहुत बड़ा राजनीति दांव खेलते हुए दलितों और पिछड़ों के आरक्षण में बदलाव की मांग की है। उन्होंने कहा है कि बसपा हमेशा से मानती रही है कि जिसकी जितनी समाज में भागीदारी हो उसकी उतनी हिस्सेदारी भी होनी चाहिए। साथ ही मोदी सरकार के आरक्षण नीति पर कहा कि जब सरकार ने 50 फीसद दायरे को तोड़ दिया तो अब तय करने का वक्त आ गया है कि आबादी के हिसाब से आरक्षण पर चर्चा होनी चाहिए।
मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से इस पक्ष में रही है कि भागिदारी के अनुसार ही आरक्षण व्यवस्था होनी चाहिए। बसपा सुप्रीमो आज लखनऊ में मंडल स्तरीय नेताओं को संबोधित कर रही थी। उन्होंने योगी सरकार के उस फैसले को राजनीति से प्रेरित कहा जिसमें 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का निर्णय लिया था। उन्होंने कहा कि यह फैसला आगामी उपचुनाव को देखते हुए लिया गया है। उन्होंने बसपा कार्यकर्ता से अपील की है कि जनता के बीच जाकर इस मुद्दे पर विरोध जताने को कहा।
इस बीच केंद्रीय मंत्री ने राज्यसभा में योगी सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया है। उन्होंने कहा कि योगी सरकार को तय मापदंड को मानना चाहिए जिसमें संसद को अधिकार है कि किसी जाति को किसी विशेष वर्ग में डाला जाए अथवा नहीं। यह किसी भी राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। लेकिन यदि राज्य सरकार इस तरह का प्रस्ताव भेजेगी तो उस पर विचार किया जा सकता है।
कुछ दिन ही पहले 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का योगी सरकार ने फैसला किया था। इन 17 जाति में शामिल हैः कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, वाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआरा ।