गणपति उत्सव ऐसे समय में जब हर साल बड़ा होता जा रहा है, पर्यावरण में प्रदूषण की चिंता भी बढ़ती जा रही है. विशाल गणपति मूर्तियां स्थापित करने और अधिक से अधिक भीड़ को आकर्षित करने के लिए मंडलों में होड़ भी बढ़ती जा रही है. ज्यादातर ये मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी होती हैं. उत्सव के आख़िर में सभी गणपति मूर्तियों को अरब सागर में विसर्जित कर दिया जाता है. हालांकि मुंबई में ऐसे लोग और कुछ मंडल हैं जो पर्यावरण के बारे में जागरूक हैं और वे इको फ्रेंडली गणपति मूर्तियां स्थापित कर रहे हैं. इंडिया टुडे ऐसी वर्कशॉप पर पहुंचा जहां मूर्तियों को कागज से बनाया जा रहा है. लालबाग में एक प्रसिद्ध मंडल है जो कागज और मिट्टी से गणपति की 22 फीट ऊंची विशाल मूर्ति बना रहा है.
मुंबई में दो हजार से अधिक पंजीकृत गणपति मंडल हैं. लेकिन जब घरों और अन्य स्थानों की बात करें जहां गणपति की स्थापना की जाती है तो ये संख्या बहुत बड़ी हो जाती है, लेकिन बीएमसी की ओर से जो पर्यावरण के अनुकूल विसर्जन स्थल निर्धारित किए गए हैं उन्हें लेकर लोगों में कम ही जागरूकता है. हालांकि गणपति की अधिकतर मूर्तियां विशाल हैं और उन्हें पर्यावरण के अनुकूल छोटे तालाबों में नहीं विसर्जित किया जा सकता. इसलिए ज़्यादातर गणपति मूर्तियों को अरब सागर में विसर्जित किया जाता है.
प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी और पेंट हुई मूर्तियां रसायनों की वजह से समुद्र में नहीं घुलती हैं. अरब सागर महाराष्ट्र के लिए समुद्री भोजन का प्रमुख स्रोत है. अगर पिछले साल की ही बात करें तो, गणपति विसर्जन के सातवें दिन ही मुंबई के समुद्र तटों पर कई मछलियां, पानी के सांप और कछुए मृत देखे गए. समुद्री विशेषज्ञों के मुताबिक इन जीवों का मरना ऐसे रसायनों के शरीर में पहुंचने की वजह से हुआ जिससे सांस लेना बंद हो जाता है. इतना ही नहीं, गणपति मूर्तियों के जो हिस्से नहीं घुलते वो वापस समुद्र तट पर आ जाते हैं. ये दृश्य लोगों की भावनाओं को आहत करता है.
माटुंगा में मूर्ति निर्माता सागर चितले कागज से गणपति की मूर्तियां बनाते हैं. सागर चितले ने बताया, “यह लंबी प्रक्रिया है. नवरात्रि का त्योहार खत्म होने के बाद, मैंने मूर्तियां बनाना शुरू कर दिया. कागज से बनी इको फ्रेंडली मूर्तियों की कीमत प्लास्टर ऑफ पेरिस की तुलना में अधिक है लेकिन अगर किसी को पर्यावरण को बचाना है तो यह कीमत कुछ भी नहीं है. अच्छा यह है कि लोग जागरूक हो रहे हैं और कागज के गणपति की भारी मांग है. विशाल गणपति मूर्तियां भी कागज की बनी हो सकती हैं और वे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं. मूर्तियों के आभूषण वाला हिस्सा भी कागज़ का बना हुआ है. हम कीलों का इस्तेमाल भी नहीं करते हैं और इसकी जगह गोंद और छोटी लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं. सरकार को भी इस पहल में मदद करनी चाहिए और ऐसी मूर्तियों को बनाने के लिए जगह उपलब्ध करानी चाहिए.”
इंडिया टुडे इसके बाद लालबाग में तेजुकया गणपति मंडल पहुंचा. यह विशाल गणपति मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है. इस साल भी ये मंडल विशाल गणपति मूर्ति स्थापित कर रहा है, लेकिन इस बार यह कागज और मिट्टी से बनी होगी. 22 फीट ऊंची ये गणपति मूर्ति इको फ्रेंडली है. यही नहीं, इस बार ये मंडल थर्मोकोल या प्लास्टिक का भी इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. सजावट भी कागज़ और रूई से की जा रही है. असल में मंडल की ओर से श्रद्धालुओं से अपील की जा रही है कि वे मूर्ति के लिए अगरबत्ती और फूल ना लाएं बल्कि पेंसिल, कलम, नोटबुक और ऐसी अन्य उपयोगी चीज़ें लाएं जो कोल्हापुर और सांगली के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों को दान की जा सकें. ये मंडल, जो अब अपने 53वें वर्ष में है, पर्यावरण को समय की जरूरत मानता है.